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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 72 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 72/ मन्त्र 1
    ऋषिः - हरिमन्तः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    हरिं॑ मृजन्त्यरु॒षो न यु॑ज्यते॒ सं धे॒नुभि॑: क॒लशे॒ सोमो॑ अज्यते । उद्वाच॑मी॒रय॑ति हि॒न्वते॑ म॒ती पु॑रुष्टु॒तस्य॒ कति॑ चित्परि॒प्रिय॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    हरि॑म् । मृ॒ज॒न्ति॒ । अ॒रु॒षः । न । यु॒ज्य॒ते॒ । सम् । धे॒नुऽभिः॑ । क॒लशे॑ । सोमः॑ । अ॒ज्य॒ते॒ । उत् । वाच॑म् । ई॒रय॑ति । हि॒न्वते॑ । म॒ती । पु॒रु॒ऽस्तु॒तस्य॑ । कति॑ । चि॒त् । प॒रि॒ऽप्रियः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    हरिं मृजन्त्यरुषो न युज्यते सं धेनुभि: कलशे सोमो अज्यते । उद्वाचमीरयति हिन्वते मती पुरुष्टुतस्य कति चित्परिप्रिय: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    हरिम् । मृजन्ति । अरुषः । न । युज्यते । सम् । धेनुऽभिः । कलशे । सोमः । अज्यते । उत् । वाचम् । ईरयति । हिन्वते । मती । पुरुऽस्तुतस्य । कति । चित् । परिऽप्रियः ॥ ९.७२.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 72; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 27; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमात्मोपदेशो निरूप्यते।

    पदार्थः

    (सोमः) परमेश्वरः (उद्वाचम्) सदुपदेशं (ईरयति) प्रेरयति। परमात्मा (मती) बुद्धिं (हिन्वते) प्रेरयति। अथ च (पुरुष्टुतस्य) विज्ञानिनां (परिप्रियः) सखा। तस्मै (कतिचित्) बहुधनानि प्रयच्छति (कलशे) संस्कृतान्तःकरणे (सं धेनुभिः) संस्कृतेन्द्रियैः परमात्मा (अज्यते) पूज्यते। सोऽयं परमात्मा (अरुषो न) विद्युदिव (युज्यते) सर्वत्र युक्तो भवति ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब परमात्मा के उपदेश का निरूपण करते हैं।

    पदार्थ

    (सोमः) परमात्मा (उद्वाचम्) सदुपदेश की (ईरयति) प्रेरणा करनेवाला है। (मती) बुद्धि का (हिन्वते) प्रेरक है और (पुरुष्टुतस्य) विज्ञानियों को (परिप्रियः) सर्वोपरि प्यारा परमात्मा (कतिचित्) अनन्त दान देता है। (अरुषो न) विद्युत् की तरह वह परमात्मा (युज्यते) युक्त होता है। ऐसे (हरी) परमात्मा को उपासक (मृजन्ति) ध्यानविषय करते हैं और उसका (सं धेनुभिः) इन्द्रियों के द्वारा (कलशे) अन्तःकरणों में (अज्यते) साक्षात्कार किया जाता है ॥१॥

    भावार्थ

    जो लोग अपनी इन्द्रियों को संस्कृत बनाते हैं अर्थात् शुद्ध मनवाले होते हैं, परमात्मा अवश्यमेव उनके ध्यान का विषय होता है ॥१॥

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    विषय

    पवमान सोम। अभिषेक योग्य पुरुप के विशेष गुण उसके कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    प्रजाजन (हरिम्) सबके मनों और दुःखों को हरने वाले का (मृजन्ति) अभिषेक करते हैं। वह (अरुषः न) वेगवान् अश्व वा सूर्य के समान (धेनुभिः) प्रसन्न करने वाली वाणियों द्वारा (सं युज्यते) रथ में अश्व के तुल्य, राष्ट्रकार्य में (सं युज्यते) नियुक्त किया जाता है। और यह (सोमः) उत्तम ऐश्वर्य का स्वामी अभिषेक योग्य, राष्ट्र-भार को वहन करने वाली शक्ति का स्वामी, वा उसका इच्छुक शास्ता जन, (कलशे) राष्ट्र में (अज्यते) प्रकाशित होता है, वा सन्मार्ग पर चलाया वा सुशोभित किया जाता है। वह (हिन्वते) उसको बढ़ाने वाले प्रजाजन के हितार्थ (वाचम् उत् ईरयति) उत्तम प्रभुवाणी का उपदेश करता है। (पुरु-स्तुतस्य) बहुत से प्रशंसित जन की (मती) ज्ञान वा बुद्धि द्वारा (कतिचित्) कितने ही (परिप्रियः) सबको प्रसन्न करने वाले कार्य करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    हरिमन्त ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:-१—३, ६, ७ निचृज्जगती। ४, ८ जगती। ५ विराड् जगती। ९ पादनिचृज्जगती॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    सर्वप्रिय वस्तु 'सोम'

    पदार्थ

    [१] (हरिम्) = रोगों का हरण करनेवाले इस सोम को (मृजन्ति) = शुद्ध करते हैं, इसे वासनाओं से मलिन नहीं होने देते। (अरुषः न) = अत्यन्त आरोचमान-सा होता हुआ (धेनुभिः) = ज्ञानदुग्ध को देनेवाली वेदवाणीरूप गौओं के साथ संयुज्यते संयुक्त होता है। सुरक्षित सोम हमारे ज्ञानवर्धन का साधन बनता है। (सोमः) = यह सोम (कलशे) =सोलह कलाओं के आधारभूत इस शरीर में (अज्यते) = अलंकृत होता है। [२] यह सोम (वाचम्) = प्रभु की स्तुतिवाणी को (उदीरयति) = उच्चरित करता है, अर्थात् सोमरक्षण से हमारी स्तुति की वृत्ति बनती है। (मती हिन्वते) = यह सोमरक्षक पुरुष बुद्धिपूर्वक अपने को उन्नतिपथ पर प्रेरित करता है। यह सोम पुरुष्टुतस्य अनन्त स्तुतिवाले उस प्रभु का (कितिचित्) = कितना ही (परिप्रियः) = सब दृष्टिकोणों से प्रिय है। वस्तुतः प्रभु ने यही सर्वोत्तम वस्तु हमें प्राप्त करायी है। इसी के रक्षण से हम प्रभु को भी प्राप्त करनेवाले होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें स्तुतिवाला व बुद्धि से जीवन में चलनेवाला बनाता है। यह सोम प्रभु की सर्वप्रिय वस्तु है । इसके रक्षण से ही हमारा जीवन सुन्दर बनता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Devout celebrants love Soma divine like the warmth of fire, admire it like beauty of the dawn, and exalt it like light of the sun. You join the bliss of this divinity with all your senses, mind, intelligence and awareness. And then you would realise that Soma vibrates in the heart as bliss and rolls as waves of the sea. It inspires men to burst forth in song, energises thoughts and intellect, and sharpens the vision and imagination. Indeed there are no bounds to the precious gifts of Soma, infinite are they, universally adored and exalted as it is.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक आपल्या इंद्रियांना परिष्कृत करतात अर्थात जे शुद्ध मनाचे असतात, त्यांच्या ध्यानाचा विषय परमात्माच असतो. ॥१॥

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