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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 74 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 74/ मन्त्र 3
    ऋषिः - कक्षीवान् देवता - पवमानः सोमः छन्दः - पादनिचृज्ज्गती स्वरः - निषादः

    महि॒ प्सर॒: सुकृ॑तं सो॒म्यं मधू॒र्वी गव्यू॑ति॒रदि॑तेॠ॒तं य॒ते । ईशे॒ यो वृ॒ष्टेरि॒त उ॒स्रियो॒ वृषा॒पां ने॒ता य इ॒तऊ॑तिॠ॒ग्मिय॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    महि॑ । प्सरः॑ । सुऽकृ॑तम् । सो॒म्यम् । मधु॑ । उ॒र्वी । गव्यू॑तिः । अदि॑तेः । ऋ॒तम् । य॒ते । ईशे॑ । यः । वृ॒ष्टेः । इ॒तः । उ॒स्रियः॑ । वृषा॑ । अ॒पाम् । ने॒ता । यः । इ॒तःऽऊ॑तिः । ऋ॒ग्मियः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    महि प्सर: सुकृतं सोम्यं मधूर्वी गव्यूतिरदितेॠतं यते । ईशे यो वृष्टेरित उस्रियो वृषापां नेता य इतऊतिॠग्मिय: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    महि । प्सरः । सुऽकृतम् । सोम्यम् । मधु । उर्वी । गव्यूतिः । अदितेः । ऋतम् । यते । ईशे । यः । वृष्टेः । इतः । उस्रियः । वृषा । अपाम् । नेता । यः । इतःऽऊतिः । ऋग्मियः ॥ ९.७४.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 74; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 31; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ऋग्मियः) स्तुत्यः (इत ऊतिः) सर्वविधरक्षकः (यः) यः (नेता) नियन्तास्ति अथ च (अपां वृषा) सम्पूर्णकर्मणां फलदः (उस्रियः) प्रकाशस्वरूपोऽस्ति स परमेश्वरः (इतः) द्युलोकाद् उत्पन्नस्य (वृष्टेः) वृष्ट्यादिकस्य (ईशे) ईश्वरोऽस्ति। (महि) महीयान् (प्सरः) सर्वस्यादनकर्तास्ति। तथा (सुकृतम्) शोभनकर्म्मास्ति। (सोम्यम्) सौम्यस्वभाववान् अस्ति। (अदितेः) तस्मात् ज्ञानस्वरूपात् परमात्मनः (गव्यूतिः) अस्य जीवात्मनो मार्गः (मधु) मधुरः अथ च (उर्वी) विस्तृतो भवति। अथ च (ऋतं यते) सत्ययज्ञं प्राप्तवते पुरुषाय स परमात्मा शुभं विदधाति ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ऋग्मियः) स्तुतियोग्य (इत ऊतिः) सब प्रकार का रक्षक (यः) जो (नेता) नियन्ता है और (अपां वृषा) सब प्रकार के कर्मों का फल देनेवाला (उस्त्रियः) प्रकाशस्वरूप है (इतः) द्युलोक से उत्पन्न (वृष्टेः) वृष्ट्यादि का (ईशे) ईश्वर है। (महि) सबसे बड़ा है (प्सरः) सबका अत्ता है (सुकृतम्) शोभनकर्मा है। (सोम्यम्) सोम्य स्वभाववाला है। (अदितेः) उस ज्ञानस्वरूप परमात्मा से (गव्यूतिः) इस जीवात्मा का मार्ग (मधु) मीठा और (उर्वी) विस्तृत होता है और (ऋतं यते) सत्यरूप यज्ञ को प्राप्त होनेवाले पुरुष के लिये वह परमात्मा शुभ करता है ॥३॥

    भावार्थ

    सन्मार्ग चाहनेवाले पुरुषों को उचित है कि वे सच्चाई का यज्ञ करने के लिये परमात्मा की शरण लें ॥३॥

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    विषय

    भूलोक का रक्षक सूर्य और जल का वर्णन। अध्यात्म में प्रभु और आत्मा का वर्णन। कालमय प्रभु का अन्न जगत् है। प्रभु ही सब का परममार्ग है।

    भावार्थ

    (यः) जो (वृषा) वर्षा करने में समर्थ (उस्रियः) किरणों वाला, सूर्य (इतः) इस भूलोक से (अपां नेता) जलों को ऊपर ले जाने वाल है, (यः इतः ऊतिः) जो इस भूलोक की रक्षा करता है जो (ऋग्मियः) स्तुत्य है। (यः) जो (वृष्टेः ईशे) वृष्टि करने में समर्थ होता है। (अदितेः ऋतं यते) भूमि से अन्न और अन्तरिक्ष से जल प्राप्त कराने वाले सूर्य के लिये (सु-कृतं) उत्तम रीति से सूक्ष्म २ रूप में जलवाष्प कणों द्वारा छिन्न भिन्न, (सोम्यं मधु) जगत् उत्पादन करने वाला जल ही (महि प्सरः), उसका बड़ा भारी भोजन होता है, और उस (अदितेः) सूर्य का यह महान् आकाश ही (उर्वी गव्यूतिः) बड़ा भारी मार्ग होता है। अध्यात्म में—प्रभु परमेश्वर वा आत्मा सब सुखों का वर्षक बलवान् (अपां नेता) सब लोकों और लिङ्ग शरीरों और प्राणों का नायक है। जगत् रूप सुन्दर रचना यही उस कालमय प्रभु का बड़ा भारी अन्न है। (ऋतं यते) सत्यज्ञान, मोक्ष को प्राप्त करने वाले के लिये तो उस (अदितेः) अदीन, अविनाशी प्रभु का मार्ग ही बड़ा भारी मार्ग है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कक्षीवानृषिः। पवमानः सोमो देवता। छन्दः- १, ३ पादनिचृज्जगती। २, ६ विराड् जगती। ४, ७ जगती। ५, ९ निचज्जगती। ८ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    'उस्त्रियः वृषा' [सोमः]

    पदार्थ

    [१] (ऋतं यते) = ऋत, अर्थात् सत्य व यज्ञ की ओर जानेवाले के लिये (सुकृतम्) = बड़ी अच्छी प्रकार उत्पन्न किया हुआ (सोम्यं) = मधु-यह सोम सम्बन्धी सारभूत पदार्थ (महि प्सरः) = महान् भक्षणीय पदार्थ होती है । सोम का भक्षण, अर्थात् सोम का अपने अन्दर रक्षण ही मनुष्य को ऋत का पालन करने के योग्य बनाता है। इस सोमरक्षण से (अदितेः) = [अ-दिति-खण्डन] स्वास्थ्य का (ऊर्वी गव्यूतिः) = विशाल मार्ग होता है। अर्थात् सोमरक्षण से हम स्वस्थ व दीर्घजीवन को प्राप्त करते हैं । [२] यह सोम वह वस्तु है (यः) = जो (वृष्टेः ईशे) = धर्ममेघ समाधि में आनन्द की वर्षा को प्राप्त करानेवाली है । इतः इधर जीवन में (उस्त्रियः) = [उस्र = a ray of light] यह प्रकाश की रश्मियोंवाला है। वृषा शरीर में शक्ति का संचार करनेवाला है । (अपां) = नेता-कर्मों का यह सोम प्रणयन करनेवाला है । (यः) = जो सोम (इतः) = इस लोक से हमारा (ऊतिः) = रक्षण करनेवाला है वह (ऋग्मियः) = स्तोतव्य है। शरीर में रोगों से बचाता हुआ, मन में वासनाओं से बचाता हुआ तथा मस्तिष्क में मन्दता [Dullness] से बचाता हुआ यह सोम स्तुति के योग्य क्यों न हो ?

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम ही ऋत के अनुयायी के लिये महान् भोजन है, सोम [वीर्य] ही सर्वोत्तम रक्षणीय वस्तु है । यह सोम स्वस्थ दीर्घजीवन को देता है, धर्ममेघ समाधि में यही आनन्द की वृष्टि का कारण होता है। प्रकाश व शक्ति का यही मूल है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Of mighty form is he, generous, adorable, exceedingly refulgent controller of universal dynamics, shelter home of life who rules over the rains of living waters on earth. The honey sweets of soma homage well expressed and distilled are for him, yajamana of the yajnic wide paths of rectitude of mother earth and nature.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    सन्मार्ग इच्छिणाऱ्या पुुरुषांनी सत्याचा यज्ञ करण्यासाठी परमेश्वराला शरण जावे. ॥३॥

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