Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 78 के मन्त्र
1 2 3 4 5
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 78/ मन्त्र 1
    ऋषिः - कविः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    प्र राजा॒ वाचं॑ ज॒नय॑न्नसिष्यदद॒पो वसा॑नो अ॒भि गा इ॑यक्षति । गृ॒भ्णाति॑ रि॒प्रमवि॑रस्य॒ तान्वा॑ शु॒द्धो दे॒वाना॒मुप॑ याति निष्कृ॒तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । राजा॑ । वाच॑म् । ज॒नय॑न् । अ॒सि॒स्य॒द॒त् । अ॒पः । वसा॑नः । अ॒भि । गाः । इ॒य॒क्ष॒ति॒ । गृ॒भ्णाति॑ । रि॒प्रम् । अविः॑ । अ॒स्य॒ । तान्वा॑ । शु॒द्धः । दे॒वाना॑म् । उप॑ । या॒ति॒ । निः॒ऽकृ॒तम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र राजा वाचं जनयन्नसिष्यददपो वसानो अभि गा इयक्षति । गृभ्णाति रिप्रमविरस्य तान्वा शुद्धो देवानामुप याति निष्कृतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । राजा । वाचम् । जनयन् । असिस्यदत् । अपः । वसानः । अभि । गाः । इयक्षति । गृभ्णाति । रिप्रम् । अविः । अस्य । तान्वा । शुद्धः । देवानाम् । उप । याति । निःऽकृतम् ॥ ९.७८.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 78; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सर्वनियामकस्येश्वरस्यैश्वर्यमुपदिश्यते।

    पदार्थः

    (राजा) सर्वप्रकाशको जगदीशः (वाचम्) वेदवाणीम् (जनयन्) उत्पादयन् (प्रासिष्यदत्) संसारमुत्पादयति। अथ च (अपः) कर्माणि (वसानः) दधानः  (गाः) पृथिव्यादिलोकानां (अभि) सम्मुखं (इयक्षति) गतिं करोति। यः पुरुषः (अस्य) परमेश्वरस्य (तान्वा) शक्त्या (रिप्रम्) स्वकीयदोषान् (गृभ्णाति) मार्ष्टि अर्थात् दोषत्वेन गृह्णाति। एवं प्रकारेण (अविः) सुरक्षितः सन् (शुद्धः) पवित्रोऽस्ति (देवानाम्) देवतानां (निष्कृतम्) स्थानं (उपयाति) प्राप्नोति ॥१॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    अब सर्वनियामक परमात्मा के ऐश्वर्य का उपदेश करते हैं।

    पदार्थ

    (राजा) सबका प्रकाशक परमात्मा (वाचम्) वेदरूपी वाणी को (जनयन्) उत्पन्न करता हुआ (प्रासिष्यदत्) संसार को उत्पन्न करता है और (अपः) कर्मों को (वसानः) धारण करता हुआ (गाः) पृथिव्यादिलोक-लोकान्तरों के (अभि) सम्मुख (इयक्षति) गति करता है। जो पुरुष (अस्य) उस परमात्मा की (तान्वा) शक्ति से (रिप्रम्) अपने दोषों को (गृभ्णाति) ग्रहण कर लेता है अर्थात् उनको समझकर मार्जन कर लेता है, इस प्रकार (अविः) सुरक्षित होकर (शुद्धः) शुद्ध है तथा (देवानाम्) देवताओं के (निष्कृतम्) पद को (उपयाति) प्राप्त होता है ॥१॥

    भावार्थ

    जो पुरुष परमात्मा के जगत्कर्तृत्व में विश्वास करता है, वह उसकी उपासना द्वारा शुद्ध होकर देवपद को प्राप्त होता है ॥१॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पवमान सोम। शासक राजा के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (राजा) तेजस्वी राजा (वाचं प्र जनयन्) वाणी को सबसे उत्कृष्ट रूप से प्रकट करता हुआ, (असिष्यदत्) निरन्तर प्रवाह के समान गम्भीरता से बहे, वाणी के प्रवाह से भावों का प्रकाश करे। वह (अपः वसानः) अभिषेक योग्य जलों के तुल्य आप्त जनों को अपने पर, वस्त्रादिवत् धारण करता हुआ, (गाः) नाना प्रजा की स्तुति वाणियों को (अभि इयक्षति) प्राप्त करता है। वह स्वयं (अविः) जगत् वा राष्ट्र का रक्षक होकर (तान्वा) अपने पटवत् विस्तृत सामर्थ्य से (अस्य) इस जगत् वा शिष्य सेवक जन के (रिप्रम्) पाप को (गृभ्णाति) थाम देता है, पाप को नहीं बढ़ने देता। प्रत्युत स्वयं (शुद्धः) सब परीक्षाओं में निर्दोष सिद्ध होकर (देवानां) विद्वानों, वीर पुरुषों के (निष्कृतम् उप याति) स्थान को प्राप्त होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कविर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ५ निचृज्जगती। २–४ जगती॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    राजा सोम

    पदार्थ

    [१] राजा हमारे जीवनों को दीप्त करनेवाला यह सोम (वाचं जनयन्) = हमारे हृदयों में प्रभु की वाणी को आविर्भूत करता हुआ (असिष्यदत्) = शरीर में प्रवाहित होता है। (अपः वसानः) = हमें कर्मों से आच्छादित करता हुआ (गाः अभि) = वेदवाणियों की ओर (इयक्षति) = जाता है। हमें क्रियाशील व ज्ञानरुचिवाला बनाता है। [२] यह सोम (रिप्रं गृभ्णाति) = सब दोषों का निग्रह करनेवाला होता है । (अस्य अवि:) = इस सोम का रक्षक पुरुष तान्वा शक्तियों के विस्तार के द्वारा (शुद्धः) = शुद्ध हुआ- हुआ (देवानाम्) = देवों के (निष्कृतम्) = संस्कृत स्थान को (उपयाति) = प्राप्त होता है, अर्थात् देव लोग जैसे यज्ञादि के लिये पवित्र स्थानों में एकत्रित होते हैं इसी प्रकार यह सोमरक्षक पुरुष पवित्र स्थानों में ही उपस्थित होता है, उन पवित्र कार्यों में ही रुचि रखता है।

    भावार्थ

    भावार्थ-सोमरक्षण से हृदय में प्रभु की वाणी सुन पड़ती है, ज्ञान बढ़ता है, दोष दूर होते हैं और रुचि पवित्र कर्मों की ही ओर होती है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma, creative ruling spirit of the universe, self moved with will and desire, producing the cosmic sound of speech, releasing the flow of cosmic energies, pleased and pervasive, proceeds to the yajnic formation of stars and planets. The kind protective sun fertilises the manifestive earthly forms with its own living energy and the immaculate soul proceeds to nature’s womb of divinities for their manifestation and self-realisation.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जो पुरुष परमेश्वराच्या जगत्कर्तृत्वावर विश्वास ठेवतो तो त्याच्या उपासनेद्वारे शुद्ध होऊन देवपद प्राप्त करतो. ॥१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top