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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 81 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 81/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसुर्भारद्वाजः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    प्र सोम॑स्य॒ पव॑मानस्यो॒र्मय॒ इन्द्र॑स्य यन्ति ज॒ठरं॑ सु॒पेश॑सः । द॒ध्ना यदी॒मुन्नी॑ता य॒शसा॒ गवां॑ दा॒नाय॒ शूर॑मु॒दम॑न्दिषुः सु॒ताः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । सोम॑स्य । पव॑मानस्य । ऊ॒र्मयः॑ । इन्द्र॑स्य । य॒न्ति॒ । ज॒ठर॑म् । सु॒ऽपेश॑सः । द॒ध्ना । यत् । ई॒म् । उत्ऽनी॑ताः । य॒शसा॑ । गवा॑म् । दा॒नाय॑ । शूर॑म् । उ॒त्ऽअम॑न्दिषुः । सु॒ताः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र सोमस्य पवमानस्योर्मय इन्द्रस्य यन्ति जठरं सुपेशसः । दध्ना यदीमुन्नीता यशसा गवां दानाय शूरमुदमन्दिषुः सुताः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । सोमस्य । पवमानस्य । ऊर्मयः । इन्द्रस्य । यन्ति । जठरम् । सुऽपेशसः । दध्ना । यत् । ईम् । उत्ऽनीताः । यशसा । गवाम् । दानाय । शूरम् । उत्ऽअमन्दिषुः । सुताः ॥ ९.८१.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 81; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेश्वरज्ञानाधिकारिणो निरूप्यन्ते।

    पदार्थः

    (पवमानस्य) सर्वपावकस्य (सोमस्य) परमेश्वरज्ञानस्य (ऊर्मयः) वीचयः (इन्द्रस्य) ज्ञानयोगिनः (जठरम्) अन्तःकरणं (प्रयन्ति) प्राप्नुवन्ति। या वीचयः (सुपेशसः) सुन्दराः सन्ति। (गवाम्) इन्द्रियाणां (दानाय) सुज्ञानदानाय (दध्ना, यदीमुन्नीताः) सहायकसंस्कारद्वारा (यशसा) बलेन (उदमन्दिषुः) मोदे (सुताः) संस्कृताः (शूरम्) वीरं कर्मयोगिनं प्रदीप्तं कुर्वन्ति ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब ईश्वर के ज्ञान के अधिकारियों का निरूपण करते हैं।

    पदार्थ

    (पवमानस्य) सबको पवित्र करनेवाले (सोमस्य) परमात्मा के ज्ञान की (ऊर्मयः) लहरें (इन्द्रस्य) ज्ञानयोगी के (जठरं) अन्तःकरण को (प्रयन्ति) प्राप्त होती हैं। जो लहरें (सुपेशसः) सुन्दर हैं और (गवां) इन्द्रियों के (दानाय) सुन्दर ज्ञान देने के लिये (दध्ना, यदीमुन्नीताः) सहायक संस्कार द्वारा (यशसा) बल से (उदमन्दिषुः) आनन्द में (सुताः) संस्कार किये हुए (शूरं) शूरवीर कर्म्मयोगी को प्रदीप्त करती हैं ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा के सदुपदेश ज्ञानयोगी को पवित्र करते हैं और उसके उत्साह को प्रतिदिन बढ़ाते हैं ॥१॥

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    विषय

    सोम पवमान। प्रभु के आनन्द की तरङ्गे।

    भावार्थ

    (पवमानस्य) पवित्र करने वाले वा व्याप्त हुए (सोमस्य) उस सर्वशास्ता ऐश्वर्यवान् प्रभु के (ऊर्मयः) उत्तम आदेश एवं तरंग (सु-पेशसः) उत्तम, शुभरूप होकर (इन्द्रस्य जठरं यन्ति) आत्मा के हृदय तक पहुंचते हैं। (यत्) जो (दध्ना उन्नीताः) ध्यान धारणा के बल से सब ओर से ऊपर आये हुए (सुताः) उत्पन्न तरंग (गवां यशसा) वाणियों के बल से (शूरं) शूर वीर पुरुष को (दानाय) आत्मसमर्पण के लिये (उत् अमन्दिषुः) उन्मत्त, अति प्रसन्न कर देते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसुर्भारद्वाज ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः–१—३ निचृज्जगती। ४ जगती। ५ निचृत्त्रिष्टुप्॥

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    विषय

    'यश-ज्ञान- आनन्द'

    पदार्थ

    [१] (पवमानस्य) = जीवन को पवित्र बनाते हुए (सोमस्य) = सोम की (अर्मयः) = तरंगें (इन्द्रस्य) = जितेन्द्रिय पुरुष के (जठरम्) = उदर को (प्रयन्ति) = प्रकर्षेण प्राप्त होती हैं । जितेन्द्रिय पुरुष के शरीर में सोम सुरक्षित रहता है । वहाँ ये सोम की तरंगे (सुपेक्षसः) = अंग-अन्यंग का सुन्दर निर्माण करती हैं । [२] (दध्ना) = [ धत्ते] चित्तवृत्ति का धारण करनेवाले पुरुष से (यत्) = जब (ईम्) = निश्चय से (उन्नीताः) = ये सोमकण शरीर में ऊर्ध्वगतिवाले होते हैं, तब ये सोमकण यशसा यश के साथ (गवां दानाय) = ज्ञान की वाणियों के देने के लिये होते हैं। ये सोम हमारे जीवन में (सुता:) = उत्पन्न हुए- हुए (शूरं) = शक्तिशाली पुरुष को (उद् मन्दिषुः) = खूब उत्कृष्ट आनन्द प्राप्त कराते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- जितेन्द्रियता व चित्तवृत्ति निरोध द्वारा रक्षित सोम [क] शरीर का उत्तम निर्माण करते हैं, [ख] जीवन को यशस्वी बनाते हैं, [ग] हमें ज्ञानदीप्त करते हैं, [घ] उत्कृष्ट आनन्द को प्राप्त कराते हैं ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Charming vibrations of the presence and power of pure and purifying Soma, supreme spirit of light and peace, radiate to the heart core of Indra, lover of knowledge and light of divinity, when, seasoned and supplemented with experiences of senses and mind elevated through higher states of inversion and concentration in Dharma and Dhyana, they exhilarate the brave soul with strength and excellence and exhort it to divine love and total self-surrender.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराचे सदुपदेश ज्ञान योग्याला पवित्र करतात त्याचा उत्साह प्रत्येक दिवशी वाढवितात. ॥१॥

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