ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 88/ मन्त्र 1
अ॒यं सोम॑ इन्द्र॒ तुभ्यं॑ सुन्वे॒ तुभ्यं॑ पवते॒ त्वम॑स्य पाहि । त्वं ह॒ यं च॑कृ॒षे त्वं व॑वृ॒ष इन्दुं॒ मदा॑य॒ युज्या॑य॒ सोम॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒यम् । सोमः॑ । इ॒न्द्र॒ । तुभ्य॑म् । सु॒न्वे॒ । तुभ्य॑म् । प॒व॒ते॒ । त्वम् । अ॒स्य॒ । पा॒हि॒ । त्वम् । ह॒ । यम् । च॒कृ॒षे । त्वम् । व॒वृ॒षे । इन्दु॑म् । मदा॑य । युज्या॑य । सोम॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अयं सोम इन्द्र तुभ्यं सुन्वे तुभ्यं पवते त्वमस्य पाहि । त्वं ह यं चकृषे त्वं ववृष इन्दुं मदाय युज्याय सोमम् ॥
स्वर रहित पद पाठअयम् । सोमः । इन्द्र । तुभ्यम् । सुन्वे । तुभ्यम् । पवते । त्वम् । अस्य । पाहि । त्वम् । ह । यम् । चकृषे । त्वम् । ववृषे । इन्दुम् । मदाय । युज्याय । सोमम् ॥ ९.८८.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 88; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्द्र) हे कर्म्मयोगिन् (तुभ्यं, सुन्वे) तव संस्काराय (अयं, सोमः) अयं सोमः परमात्मा (तुभ्यं, पवते) त्वां पवित्रयति। (त्वं) पूर्वोक्तस्त्वं (अस्य) अमुष्याज्ञा (पाहि) रक्ष। (त्वं) पूर्वोक्तस्त्वं (यं) यस्य (इन्दुं) प्रकाशस्वरूपस्य (सोमं) परमात्मनः (चकृषे) उपासनां करोषि, सः (त्वं) तव (ववृषे) वरणाय (मदाय) आनन्ददानाय च स्वीकरोति त्वाम् अतस्त्वं (युज्याय) स्वसाहाय्याय (सोमं) सोमस्वरूपपरमात्मन उपासनां कुरु ॥१॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्द्र) हे कर्म्मयोगिन् ! (तुभ्यं सुन्वे) तुम्हारे संस्कार के लिये (अयं सोमः) यह सोम परमात्मा (तुभ्यं पवते) तुमको पवित्र करता है। (त्वं) तुम (अस्य) इसकी आज्ञा को (पाहि) पालन करो। (त्वं) तुम (यं) जिस (इन्दुं) प्रकाशरूप (सोमं) परमात्मा की (चकृषे) उपासना करते हो, वह (त्वं) तुम्हारे (ववृषे) वरण करने के लिये और (मदाय) आनन्द देने के लिये स्वीकार करता है, इसलिये तुम (युज्याय) अपनी सहायता के लिये (सोमं) सोमरूप परमात्मा की उपासना करो ॥१॥
भावार्थ
जो लोग परमात्मा को शुद्धभाव से वर्णन करते हैं, परमात्मा उनको अवश्यमेव शुद्धि प्रदान करता है ॥१॥
विषय
पवमान सोम। शिष्य के प्रति आचार्य के कर्त्तव्य। शुश्रूषु शिष्य का रूप। गुरु के शिष्य रूप भूमि के प्रति कृषक के तुल्य ज्ञान-बीज वपनादि कार्य।
भावार्थ
शिष्य के प्रति आचार्य के कर्त्तव्य। हे (इन्द्र) तत्त्वज्ञान को देखने हारे ! अज्ञान के नाशक गुरो ! प्रभो ! (अयं सोमः तुभ्यं सुन्वे) यह सोम्य गुणों वाला ब्रह्मचारी तेरी सेवा के लिये दीक्षित होता है। (तुम्यं पवते) तेरे हितार्थ ही शुद्ध पवित्र होकर तेरी सेवा में आता है। (त्वम् अस्य पाहि) तू इसका पालन कर। (यं त्वं चकृषे) जिसको तू आकर्षित करता, बनाता या भूमि में हल चला कर कृषक के समान उसे ज्ञान बीज-वपनार्थ तैयार करता है, (यं त्वं ववृषे) जिसके प्रति तू मेघवत् ज्ञान जलों की वर्षा करता है उस (इन्दुम्) उत्तम सेवक (सोमम्) पुत्रवत् प्रिय उपासक, शिष्य को (मदाय) आनन्द लाभ लिये और (युज्याय) अपने साथ सत्संग करने और योग द्वारा प्राप्त होने के लिये (अस्य पाहि) उसकी रक्षा कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
उशना ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः – १ सतः पंक्ति:। २, ४, ८ विराट् त्रिष्टुप्। ३, ६, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। ५ त्रिष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्॥
विषय
मदाय युज्याय
पदार्थ
हे (इन्द्र) = जितेन्द्रिय पुरुष ! (अयं सोमः) = यह सोम (तुभ्यं सुन्वे) = तेरे लिये उत्पन्न किया जाता है, (तुभ्यं पवते) = तेरे लिये ही यह पवित्रता को करनेवाला होता है । (त्वम्) = तू (अस्य पाहि) = इसका रक्षण कर । (त्वं) = तू (ह) = निश्चय से (यं इन्दुम्) = जिस सोम को (चकृषे) = उत्पन्न करता है और जिस (सोमम्) = सोम को ववृषे तू वृत करता है [वृ] अथवा शरीर में सिक्त करता है [वृष्] वह सोम तेरे (मदाय) = उल्लास के लिये होता है और (युज्याय) = प्रभु के साथ मेल के लिये होता है ।
भावार्थ
भावार्थ-जितेन्द्रिय पुरुष ही सोम का रक्षण कर पाता है। रक्षित सोम उसे उल्लासयुक्त करता है और प्रभु प्राप्ति के योग्य बनाता है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Indra, O soul of life, O man, this soma spirit of life and light, this beauty and joy is created for you; it flows, illuminates and sanctifies, for you; take it, live it, protect and advance it, don’t destroy it. Indeed you create it, it is your choice to create it. And whatever you do and choose to do is for your mutual joy and indispensable togetherness. O man, enjoy the beauty and vibrancy of life, maintain and advance it for peace in mutual interest in a spirit of interdependence and cooperation.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक शुद्ध भावाने परमेश्वराचे वर्णन करतात. परमात्मा त्यांना अवश्य शुद्धी प्रदान करतो. ॥१॥
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