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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 90 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 90/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्र हि॑न्वा॒नो ज॑नि॒ता रोद॑स्यो॒ रथो॒ न वाजं॑ सनि॒ष्यन्न॑यासीत् । इन्द्रं॒ गच्छ॒न्नायु॑धा सं॒शिशा॑नो॒ विश्वा॒ वसु॒ हस्त॑योरा॒दधा॑नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । हि॒न्वा॒नः । ज॒नि॒ता । रोद॑स्योः । रथः॑ । न । वाज॑म् । स॒नि॒ष्यन् । चया॒सी॒त् । इन्द्र॑म् । गच्छ॑न् । आयु॑धा । स॒म्ऽशिशा॑नः । विश्वा॑ । वसु॒ । हस्त॑योः । आ॒ऽदधा॑नः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र हिन्वानो जनिता रोदस्यो रथो न वाजं सनिष्यन्नयासीत् । इन्द्रं गच्छन्नायुधा संशिशानो विश्वा वसु हस्तयोरादधानः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । हिन्वानः । जनिता । रोदस्योः । रथः । न । वाजम् । सनिष्यन् । चयासीत् । इन्द्रम् । गच्छन् । आयुधा । सम्ऽशिशानः । विश्वा । वसु । हस्तयोः । आऽदधानः ॥ ९.९०.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 90; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (हिन्वानः) शुभकर्म्मणि प्रेरयन् (रोदस्योः, जनिता) द्युलोकं पृथिवीलोकञ्चोत्पादयन् (रथः, न) गतिशीलविद्युदादिपदार्था इव (वाजं) बलं (सनिष्यन्) ददन् (अयासीत्) आगत्य त्वं मम हृदये विराजस्व। हे परमात्मन् ! त्वं (आयुधा) बलप्रदशस्त्राणि (संशिशानः) सन्धुक्षयन् (इन्द्रं, गच्छन्) कर्म्मयोगिनं प्राप्नुवन् (विश्वा, वसु) सर्वप्रकाराण्यैश्वर्य्याणि (हस्तयोः) करयोः (आदधानः) धारयन् (प्र, अयासीत्) मत्साम्मुख्यमागच्छ ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (हिन्वानः) शुभ कर्मों में प्रेरणा करते हुए (रोदस्योर्जनिता) द्युलोक और पृथिवीलोक को उत्पन्न करते हुए (रथो न) गतिशील विद्युदादि पदार्थों के समान (वाजं) बल को (सनिष्यन्) देते हुए (अयासीत्) आकर आप हमारे हृदय में विराजमान हों। हे परमात्मन् ! आप (आयुधा) बलप्रद शस्त्रों को (संशिशानः) तीक्ष्ण करते हुए (इन्द्रं गच्छन्) कर्मयोगी को प्राप्त होते हुए (विश्वा वसु) सब प्रकार के ऐश्वर्य्यों को (हस्तयोः) हाथों में (आदधानः) धारण करते हुए (प्रायासीत्) हमारी ओर आयें ॥१॥

    भावार्थ

    जो-जो विभूतिवाली वस्तु हैं, उन सब में परमात्मा का तेज विराजमान है, इसलिये यहाँ परमात्मा के आयुधों का वर्णन किया है, वास्तव में परमात्मा किसी आयुध को धारण नहीं करता, क्योंकि वह निराकार है ॥१॥

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    विषय

    पवमान सोम। साधक पुरुष की ईश्वर प्राप्ति की साधना।

    भावार्थ

    (रोदस्योः) देह में प्राण और अपान दोनों का (जनिता) उत्पन्न करने वाला, (वाजं प्र हिन्वानः रथः) संग्राम की ओर आगे बढ़ने वाला, रथ के समान सन्नद्ध होकर (वाजं) ज्ञानैश्वर्य को (सनिष्यन्) प्राप्त करना चाहता हुआ वह (प्र अयासीत्) आगे ही आगे बढ़े। वह (इन्द्रं गच्छन्) उस परमैश्वर्यवान् प्रभु के पास जाता हुआ (आयुधा संशिशानः) नाना काम, क्रोधादि अन्तः-शत्रुओं को प्रहार करके मार गिराने के तपःसाधनों को (सं शिशानः) तीक्षण करता हुआ और (हस्तयोः) हाथों में (विश्वा वसु आ-दधानः) नाना प्रकार के लोक में बसाने वाले प्राणगण को भी अपने से धारण करता हुआ (प्र अयासीत्) आगे बढ़े।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ३, ४ त्रिष्टुप्। २, ६ निचृत्त्रिष्टुप्। ५ भुरिक् त्रिष्टुप्। षडृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    'वाज व वसु' का प्रदाता सोम

    पदार्थ

    (प्र हन्विानः) = प्राणसाधना आदि के द्वारा प्रकर्षेण शरीर में प्रेरित किया जाता हुआ यह सोम (रोदस्योः) = द्यावापृथिवी का, मस्तिष्क व शरीर का जनिता=प्रादुर्भाव करनेवाला है। मस्तिष्क को यह दीप्त बनाता है और शरीर को दृढ़ करता है । (रथः न) = जीवनयात्रा के लिये यह रथ के समान है । (वाजं सनिष्यन्) = शक्ति को देता हुआ यह (अयासीत्) = हमें प्राप्त होता है । (इन्द्रं गच्छन्) = जितेन्द्रिय पुरुष को प्राप्त होता हुआ (आयुधा संशिशानः) = ' इन्द्रिय, मन व बुद्धि' रूप जीवन संग्राम के अस्त्रों को तीव्र करता हुआ यह सोम हमारे लिये (विश्वा वसु) = सब धनों को (हस्तयोः आदधानः) = हाथों में धारण किये हुए है । सोमरक्षण से ही अन्नमय आदि सब कोशों का धान प्राप्त होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम सब शक्तियों व वसुओं का प्रदाता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Inspiring the celebrants to action and achievement, creator of heaven and earth, winning strength and victory like a chariot warrior, moving to the karma-yogi, sharpening and calibrating weapons of warlike action, bearing all wealth and power of the world in hands, may the spirit of peace and power come and bless us.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्या ज्या विभूतीयुक्त वस्तू आहेत त्या सर्वात परमेश्वराचे तेज आहे. त्यामुळे येथे परमेश्वराच्या आयुधांचे वर्णन आहे. वास्तविक परमेश्वर कोणतेही आयुध धारण करत नाही. कारण तो निराकार आहे. ॥१॥

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