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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 91 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 91/ मन्त्र 1
    ऋषिः - कश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अस॑र्जि॒ वक्वा॒ रथ्ये॒ यथा॒जौ धि॒या म॒नोता॑ प्रथ॒मो म॑नी॒षी । दश॒ स्वसा॑रो॒ अधि॒ सानो॒ अव्येऽज॑न्ति॒ वह्निं॒ सद॑ना॒न्यच्छ॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अस॑र्जि । वक्वा॑ । रथ्ये॑ । यथा॑ । आ॒जौ । धि॒या । म॒नोता॑ । प्र॒थ॒मः । म॒नी॒षी । दश॑ । स्वसा॑रः । अधि॑ । सानौ॑ । अव्ये॑ । अज॑न्ति । वह्नि॑म् । सद॑नानि । अच्छ॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    असर्जि वक्वा रथ्ये यथाजौ धिया मनोता प्रथमो मनीषी । दश स्वसारो अधि सानो अव्येऽजन्ति वह्निं सदनान्यच्छ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    असर्जि । वक्वा । रथ्ये । यथा । आजौ । धिया । मनोता । प्रथमः । मनीषी । दश । स्वसारः । अधि । सानौ । अव्ये । अजन्ति । वह्निम् । सदनानि । अच्छ ॥ ९.९१.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 91; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (मनीषी) यो हि मनुष्यः परमात्मपरायणः किञ्च गुणेषु प्रशस्ततया (प्रथमः) मुख्योऽस्ति, (मनोता) यश्च सर्वप्रियः स (धिया) स्वकीयया बुद्ध्या (आजौ) आध्यात्मिके यज्ञे ज्ञानाहुतिं प्रदद्यात् (यथा) यथा (रथ्ये) कर्मरूपे यज्ञे (वक्का) वक्ता पुरुषो वाणीरूपकर्म (असर्जि) विदधाति, (अव्ये, अधि, सानौ) सर्वरक्षकपरमात्मरूपे यज्ञकुण्डे (दश, स्वसारः) दश प्राणाः (अधि अजन्ति) प्राणायामरूपयज्ञं कुर्वन्ति ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (मनीषी) जो परमात्मपरायण पुरुष हैं और (प्रथमः) गुणों में श्रेष्ठ होने से मुख्य हैं, (मनोता) जो सर्वप्रिय हैं, वे (धिया) अपनी बुद्धि से (आजौ) आध्यात्मिक यज्ञ में ज्ञान की आहुति प्रदान करें। (यथा) जैसे (रथ्ये) कर्म्मरूपी यज्ञ में (वक्का) वक्ता पुरुष वाणीरूपी कर्म्म को (असर्जि) करता है। (अव्ये, अधि, सानौ) सर्वरक्षक परमात्मरूप यज्ञकुण्ड में (दश स्वसारः) दश प्राणों को (अधि) उक्त यज्ञ के विषय में (अजन्ति) डालते हैं। जिस प्रकार (सदनानि) सुन्दर वेदियों के (अच्छ) प्रति (वह्निं) वह्नि को लक्ष्य बनाकर हवन किया जाता है, इस प्रकार आध्यात्मिक यज्ञ में परमात्मा को वह्निस्थानीय बनाकर हवन किया जाता है ॥१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में प्राणायाम का वर्णन किया है। जो लोग भली-भाँति प्राणायाम करते हैं, वे आध्यात्मिक यज्ञ करते हैं ॥१॥

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    विषय

    पवमान सोम। वाग्मी नेता के तुल्य वाक्पति का वर्णन।

    भावार्थ

    (रथ्ये आजौ) रथों द्वारा करने योग्य संग्राम में जिस प्रकार (धिया प्रथमः) कर्म द्वारा श्रेष्ठ, सर्वप्रथम (मनोता) उत्तम ज्ञाता, सब के मनों का आकर्षक (वक्वा) उत्तम आदेष्टा पुरुष (प्रथमः असर्जि) सब से मुख्य-नायक पुरुष बनाया जाता है, उसी प्रकार इस (रथ्ये आजौ) रथ रूप देह से विजय करने योग्य, जीवन संग्राम में भी (धिया) कर्म और ज्ञान के बल पर (वक्वा) वचन कहने वाला, (मनोता) मन, अन्तःकरण में ओत-प्रोत, (मनीषी) मन को प्रेरित करने वाला आत्मा, (प्रथमः असर्जि) सब से मुख्य निश्चित है। (दश स्वसारः) दस बहनों के तुल्य दशों प्राण उसे (अव्ये सानौ अधि) रक्षक के उत्तम पद पर (अधि अजन्ति) स्वीकार करते हैं, और उस (वह्निं) देहवाही, सब को वहन करने हारे उसको (सदनानि अच्छ) नाना आश्रयों में विराज कर भी प्राप्त होते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कश्यप ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २, ६ पादनिचृत्त्रिष्टुप्। ३ त्रिष्टुप्। ४, ५ निचृत्त्रिष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    सदनानि अच्छ [ब्रह्मलोक की ओर]

    पदार्थ

    (वक्का) = यह स्तुति करनेवाला हमें, स्तुति की वृत्तिवाला बनानेवाला सोम (यथा रथ्ये आजौ) = जैसे उत्तम रथ के योग्य संग्राम में अश्व उसी प्रकार (असर्जि) = उत्पन्न किया जाता है। सोम की जीवन संग्राम में विजय का एक मात्र आधार है। यह (धिया मनोता) = बुद्धि से बड़ा मनन करनेवाला और अतएव (प्रथमः) = सर्वमुख्य (मनीषी) = बुद्धिमान् होता है । (दश) = दस (स्वसारः) = आत्मतत्त्व की ओर चलनेवाली इन्द्रियाँ (अव्ये) = अपना रक्षण करनेवालों में उत्तम पुरुष में (सदनानि अच्छ वह्निम्) = इस मूलगृहों की ओर ब्रह्मलोक की ओर ले जानेवाले सोम को (अधि सानो) = शिखर पर मस्तिष्क रूप द्युलोक की ओर (अजन्ति) = प्रेरित करती हैं। जब सोम की गति मस्तिष्क रूप द्युलोक की ओर होती है तभी यह हमें ब्रह्मलोक रूप की ओर ले जाता है। भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें बुद्धि सम्पन्न बनाता है। जब सोम की गति मस्तिष्क रूप द्युलोक की ओर होती है, तो यह हमें ब्रह्मलोक को प्राप्त करानेवाला होता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    As in a chariot race, so in the progressive business of organised society, an eloquent speaker, prominent thinker and manager of imaginative and decisive first order is appointed to take on the business of governance and administration. Ten cooperative persons capable of independent thinking, working in perfect unison like sister powers or ten pranas or ten senses of perception and volition, in the house, assist the leader on top of the protective social order of yajnic sanctity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात प्राणायामाचे वर्णन आहे. जे लोक चांगल्या प्रकारे प्राणायाम करतात, ते आध्यात्मिक यज्ञ करतात. ॥१॥

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