ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 92/ मन्त्र 1
परि॑ सुवा॒नो हरि॑रं॒शुः प॒वित्रे॒ रथो॒ न स॑र्जि स॒नये॑ हिया॒नः । आप॒च्छ्लोक॑मिन्द्रि॒यं पू॒यमा॑न॒: प्रति॑ दे॒वाँ अ॑जुषत॒ प्रयो॑भिः ॥
स्वर सहित पद पाठपरि॑ । सु॒वा॒नः । हरिः॑ । अं॒शुः । प॒वित्रे॑ । रथः॑ । न । स॒र्जि॒ । स॒नये॑ । हि॒या॒नः । आप॒त् । श्ल्लोक॑म् । इ॒न्द्रि॒यम् । पू॒यमा॑नः । प्रति॑ । दे॒वान् । अ॒जु॒ष॒त॒ । प्रयः॑ऽभिः ॥
स्वर रहित मन्त्र
परि सुवानो हरिरंशुः पवित्रे रथो न सर्जि सनये हियानः । आपच्छ्लोकमिन्द्रियं पूयमान: प्रति देवाँ अजुषत प्रयोभिः ॥
स्वर रहित पद पाठपरि । सुवानः । हरिः । अंशुः । पवित्रे । रथः । न । सर्जि । सनये । हियानः । आपत् । श्ल्लोकम् । इन्द्रियम् । पूयमानः । प्रति । देवान् । अजुषत । प्रयःऽभिः ॥ ९.९२.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 92; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सुवानः) सर्वव्यापकः (हरिः) हरणशीलः (अंशुः) अश्नुते सर्वत्रेत्यंशुः। सूत्रात्मा परमात्मा (पवित्रे) विशुद्धान्तःकरणे (रथः, न) गतिशीलपदार्था इव (परि, सर्जि) साक्षात्क्रियते, यः परमात्मा (सनये) उपासनार्थं (हियानः) प्रेरयति जनानिति शेषः, यः परमात्मा (इन्द्रियं) कर्मयोगिनं (श्लोकं) शब्दसमुदायं (आपत्) जनयति पुनश्च कीदृशः स परमात्मा (पूयमानः) सर्वपावकः (प्रयोभिः) निजैराशीर्वादैः (देवान्, प्रति) देवेभ्यः विद्वद्भ्य इत्यर्थः (अजुषत) स्नेहमुत्पादयति ॥१॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सुवानः) सर्वव्यापकः (हरिः) हरणशील (अंशुः) सूत्रात्मा परमात्मा (पवित्रे) पवित्र अन्तःकरण में (रथो न) गतिशील पदार्थों के समान (परिसर्जि) साक्षात्कार किया जाता है, (सनये) जो परमात्मा उपासना के लिये (हियानः) प्रेरणा करता है और (इन्द्रियम्) कर्म्मयोगी को (श्लोकं) शब्दसंघात को (आपत्) उत्पन्न करता है, (पूयमानः) सबको पवित्र करनेवाला परमात्मा (प्रयेभिः) अपने आशीर्वादों से (देवान्, प्रति) देवताओं के लिये (अजुषत) प्रेम को उत्पन्न करता है ॥१॥
भावार्थ
जो लोग शुद्ध अन्तःकरण से परमात्मा की उपासना करते हैं, परमात्मा उनके अन्तःकरण में पवित्र ज्ञान प्रादुर्भूत करता है ॥१॥
विषय
पवमान सोम। प्रभु की उपासना।
भावार्थ
(हरिः) सर्वदुःखहारी, (अंशुः) सर्वत्र व्याप्त, सब जगत् का भोक्ता, (सनये) नाना ऐश्वर्यों को प्राप्त करने के लिये (हियानः) प्रार्थित और (सुवानः) उपासित होता हुआ, (पवित्रे रथः न) कण्टक-शोधन के कार्य में संलग्न, युद्धरथ वा महारथी के तुल्य ही मेरे पापपरिशोधन वा पवित्रहृदय में (सर्जि) प्राप्त रहो। वह (पूयमानः) इस प्रकार पवित्र रूप से गृहीत, प्रभु (श्लोकम्) महान् स्तुति और (इन्द्रियं) ऐश्वर्य को भी (आपत्) प्राप्त करता और कराता है। हे विद्वान् पुरुषो ! आप लोग (देवान् प्रति) सभी पूज्य ज्ञानदाता गुरुजनों के प्रति (प्रयोभिः) उनको तृप्त सन्तुष्ट करने वाले अन्नादि पदार्थों से (अजुषत) प्रेमपूर्वक सेवा किया करो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कश्यप ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १ भुरिक त्रिष्टुप्। २, ४, ५ निचृत्त्रिष्टुप्। ३ विराट् त्रिष्टुप्। ६ त्रिष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥
विषय
श्लोकम् - इन्द्रियम् [आपत्]
पदार्थ
(सुवानः) = उत्पन्न किया जाता हुआ तथा (परिहियानः) = शरीर में चारों ओर प्रेरित किया जाता हुआ यह (हरिः) = सर्वदुःखहर्ता (अंशुः) = सोम (पवित्रे) = पवित्र हृदयवाले पुरुष में (सनये) = ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये (रथः न) = रथ के समान (सर्जि) = उत्पन्न किया जाता है। जैसे रथ युद्ध में विजय का कारण होता है, उसी प्रकार यह सोम शरीर में विजय का साधन बनता है। (पूयमानः) = पवित्र किया जाता हुआ वासनाओं से मलिन न होता हुआ यह सोम (श्लोकम्) = प्रभुस्तवन को तथा (इन्द्रियम्) = बल को (आपत्) = प्राप्त होता है। शरीर में सुरक्षित होने पर यह हमें प्रभुस्तवन की वृत्तिवाला तथा बल सम्पन्न बनाता है। यह सोम (प्रयोभिः) = प्रकृष्ट बलों के साथ [प्रयस्] (देवान् प्रति अजुषत) = दिव्य गुणों के प्रति प्रीतिवाला बनाता है । अर्थात् यह सोम हमें प्रयत्नशील व दिव्य वृत्तिवाला बनाता है।
भावार्थ
भावार्थ- शरीर में सुरक्षित सोम विजय प्राप्ति का साधन होता है। यह हमें प्रभुस्तवन की वृत्तिवाला शक्तिशाली बनाता है। इस से हम क्रियाशील व दिव्य गुण सम्पन्न बन पाते हैं ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Invoked and adored for the attainment of fulfilment, inspired and pleased, may the divine destroyer of suffering and frustration, unifying omnipresence of divinity, radiate as joy and bless the soul. Worshipped as pure presence, may the divine Spirit come, acknowledge and receive my song of prayer and exaltation, and bless the noble nature of humanity with food and inspiration for the body and mind, and freedom for the soul.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक शुद्ध अंत:करणाने परमेश्वराची उपासना करतात, परमेश्वर त्यांच्या अंत:करणात पवित्र ज्ञान प्रादुर्भूत करतो. ॥१॥
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