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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 96/ मन्त्र 1
    ऋषिः - प्रतर्दनो दैवोदासिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्र से॑ना॒नीः शूरो॒ अग्रे॒ रथा॑नां ग॒व्यन्ने॑ति॒ हर्ष॑ते अस्य॒ सेना॑ । भ॒द्रान्कृ॒ण्वन्नि॑न्द्रह॒वान्त्सखि॑भ्य॒ आ सोमो॒ वस्त्रा॑ रभ॒सानि॑ दत्ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । से॒ना॒ऽनीः । शूरः॑ । अग्रे॑ । रथा॑नाम् । ग॒व्यन् । ए॒ति॒ । हर्ष॑ते । अ॒स्य॒ । सेना॑ । भ॒द्रान् । कृ॒ण्वन् । इ॒न्द्र॒ऽह॒वान् । सखि॑ऽभ्यः । आ । सोमः॑ । वस्त्रा॑ । र॒भ॒सानि॑ । द॒त्ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र सेनानीः शूरो अग्रे रथानां गव्यन्नेति हर्षते अस्य सेना । भद्रान्कृण्वन्निन्द्रहवान्त्सखिभ्य आ सोमो वस्त्रा रभसानि दत्ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । सेनाऽनीः । शूरः । अग्रे । रथानाम् । गव्यन् । एति । हर्षते । अस्य । सेना । भद्रान् । कृण्वन् । इन्द्रऽहवान् । सखिऽभ्यः । आ । सोमः । वस्त्रा । रभसानि । दत्ते ॥ ९.९६.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 96; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोमः) सोमरूपः परमात्मा (रभसानि) अतिवेगेन (वस्त्रा रभसानि) आच्छादकास्त्राणि (आ, दत्ते) गृह्णाति (सखिभ्यः) अनुयायिभ्यः (इन्द्रहवान्) कर्मयोगिभ्यः (भद्राणि, कृण्वन्) कल्याणान्युत्पादयन् आस्ते यथा (शूरः) भटः (सेनानीः) सेनानायकः (रथानां) सङ्ग्रामानां (अग्रे) समक्षं (गव्यन्) यजमानानामैश्वर्यमिच्छन् (एति) प्राप्नोति एवं हि परमात्मा न्यायिनामैश्वर्यमिच्छन् तान् संरक्षति। (अस्य, सेना) अस्य शूरस्य सेना (हर्षते) यथा हृष्टा भवति एवं हि परमात्मानुयायिनामपि सेना हर्षं लभते ॥१॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोमः) सोमरूप परमात्मा (सखिभ्यः) अपने अनुयायी (इन्द्रहवान्) जो कर्म्मयोगी हैं, उनके लिये (भद्राणि कृण्वन्) भलाई करता हुआ (वस्त्रा रभसानि) अन्यन्त वेगवाले शस्त्रों को (आदत्ते) ग्रहण करता है। जैसे कि (शूरः) शूरवीर (सेनानीः) जो सेनाओं का नेता है, वह (रथानाम्) संग्रामों के (अग्रे) समक्ष (गव्यन्) यजमानों के ऐश्वर्य्य की इच्छा करता हुआ (एति) प्राप्त होता है। इस प्रकार परमात्मा न्यायकारियों के ऐश्वर्य्य को चाहता हुआ अपने रूप से न्यायकारियों की रक्षा करता है। (अस्य) उस शूरवीर की (सेना) फौज (हर्षते) जैसे प्रसन्न होती है, इसी प्रकार परमात्मा के अनुयायियों की सेना भी हर्ष को प्राप्त होती है ॥१॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में राजधर्म का वर्णन है कि परमात्मपरायण पुरुष राजधर्म द्वारा अनन्त प्रकार के ऐश्वर्यों को प्राप्त होते हैं ॥१॥

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    विषय

    पवमान सोम। सेनापति का वर्णन।

    भावार्थ

    जब (सेनानीः) सेना का नेता, सेनापति (शूरः) शूरवीर शत्रुहन्ता वीर पुरुष (गव्यन्) नयी भूमियों को प्राप्त करना चाहता हुआ (रथानाम् अग्रे एति) रथों या महारथियों के आगे २ चलता है तब (अस्य सेना हर्षते) उसकी सेना हर्ष अनुभव करती है। वह (सोमः) पदाभिषिक्त शासक (सखिभ्यः) मित्र वर्गों के लिये भी (भद्रान्) सुखजनक, कल्याणसूचक (इन्द्र-हवान् कृण्वन्) ऐश्वर्यवान् राजोचित आदेशों को प्रदान करता हुआ (रभसानि) बल वीर्य के उत्पादक युद्धोपयोगी (वस्त्रा) कवचादि को (आदते) ग्रहण करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रतदनो दैवोदासिर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ११,१२, १४, १९, २३ त्रिष्टुप्। २, १७ विराट् त्रिष्टुप्। ४—१०, १३, १५, १८, २१, २४ निचृत् त्रिष्टुप्। १६ आर्ची भुरिक् त्रिष्टुप्। २०, २२ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    ज्ञान-भक्ति-शक्ति

    पदार्थ

    (सेनानी:) = प्राणों व इन्द्रियादि की सेना का नेता यह सोम (शूरः) = शत्रुओं को शीर्ण करनेवाला है । (रथानाम्) = इन शरीररूप रथों के (अग्रे) = अग्रभाग में होता हुआ, अर्थात् मस्तिष्क में स्थित होता हुआ, ऊर्ध्वगतिवाला होता हुआ सोम मस्तिष्क में ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है, यही इसका शिखर पर पहुँचना है, (गव्यन्) = इन ज्ञानदुग्ध को देनेवाली वेदवाणियों को चाहता हुआ (एति) = गति करता है । (अस्य) = इस सोम की सेना प्राण व इन्द्रियाँ मन व बुद्धि रूप सेना हर्षते आनन्दित होती है, विकसित शक्ति वाली होती है। यह (सखिभ्यः) = अपने रक्षक मित्रों के लिये (भद्रान्) = कल्याण कर (इन्द्रहवान्) = प्रभु की पुकारों को (कृण्वन्) = करता हुआ, अर्थात् हम सखाओं को प्रभुस्तुतिप्रवण करता हुआ (रभसानि) = [robust] शक्तिशाली (वस्त्रा) = वस्त्ररूप अन्नमय आदि कोशों को (आदत्ते) = ग्रहण करता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम हमे ज्ञान व प्रभु स्तवन की ओर झुकाव वाला करता हुआ शक्तिशाली बनाता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Soma, heroic brave leader, warrior and commander, marches at the head of chariots, ardently ambitious for positive gains for the commonalty, his army follows with joyous enthusiasm. Thus nobly fulfilling the divine call of Indra for the advancement and excellence of the friends of humanity, Soma takes on the robe and role of peace and protection and the arms for the defence of humanity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात राजधर्माचे वर्णन आहे की परमात्मपरायण पुरुष राजधर्माद्वारे अनंत प्रकारचे ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥१॥

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