ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 97/ मन्त्र 1
अ॒स्य प्रे॒षा हे॒मना॑ पू॒यमा॑नो दे॒वो दे॒वेभि॒: सम॑पृक्त॒ रस॑म् । सु॒तः प॒वित्रं॒ पर्ये॑ति॒ रेभ॑न्मि॒तेव॒ सद्म॑ पशु॒मान्ति॒ होता॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्य । प्रे॒षा । हे॒मना॑ । पू॒यमा॑नः । दे॒वः । दे॒वेभिः॑ । सम् । अ॒पृ॒क्त॒ । रस॑म् । सु॒तः । प॒वित्र॑म् । परि॑ । ए॒ति॒ । रेभ॑न् । मि॒ताऽइव । सद्म॑ । प॒शु॒ऽमन्ति॑ । होता॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्य प्रेषा हेमना पूयमानो देवो देवेभि: समपृक्त रसम् । सुतः पवित्रं पर्येति रेभन्मितेव सद्म पशुमान्ति होता ॥
स्वर रहित पद पाठअस्य । प्रेषा । हेमना । पूयमानः । देवः । देवेभिः । सम् । अपृक्त । रसम् । सुतः । पवित्रम् । परि । एति । रेभन् । मिताऽइव । सद्म । पशुऽमन्ति । होता ॥ ९.९७.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 97; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विदुषां गुणा वर्ण्यन्ते।
पदार्थः
(सुतः) विद्यया संस्कृतो विद्वान् (रेभन्) शब्दं कुर्वन् (पवित्रं, परि एति) पवित्रतां लभते यथा (पशुमन्ति) यज्ञगृहं (मिता, इव, सद्म) ज्ञानस्थानं नियमीपुरुष इव (होता) यज्ञकर्ता प्राप्नोति (अस्य, प्रेषा) उक्तविदुषो जिज्ञासुः पुरुषः (हेमना, पूयमानः) सुवर्णादिभूषणेन पवित्रः सन् (देवेभिः, सम्पृक्तः) विद्वद्भिः संगतः (देवः) दिव्यभाववान् सन् (रसं) ब्रह्मानन्दं प्राप्नोति ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब विद्वानों के गुण वर्णन किये जाते हैं।
पदार्थ
(सुतः) विद्या द्वारा संस्कृत हुआ विद्वान् (रेभन्) शब्दायमान होता हुआ (पवित्रं, पर्य्येति) पवित्रता को प्राप्त होता है। जिस प्रकार (पशुमन्ति) ज्ञानवाले स्थान को (मिता, इव) नियमी पुरुष के समान (होता) यज्ञकर्ता पुरुष प्राप्त होता है। (अस्य, प्रेषा) उक्त विद्वान् की जिज्ञासा करनेवाला पुरुष (हेमना, पूयमानः) सुवर्णादि भूषणों से पवित्र होता हुआ (देवेभिः, सम्पृक्तः) विद्वानों से संगति को लाभ करता हुआ (देवः) दिव्य भाववाला (रसम्) ब्रह्मानन्द को प्राप्त होता है ॥१॥
भावार्थ
विद्वान् पुरुषों के शिष्य अर्थात् जो पुरुष वेदवेत्ता विद्वानों से शिक्षा पाकर विभूषित होते हैं, वे सदैव ऐश्वर्य्य से विभूषित रहते हैं ॥१॥
विषय
पवमान सोम। तेजस्वी शासक के राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्य। वह धन, बल, और पशु सम्पदा की गृहपति के समान वृद्धि करे।
भावार्थ
(देवेभिः पूयमानः देवः) विद्वान्, तेजस्वी पुरुषों से अभिषिक्त, तेजस्वी पुरुष (प्रेषा) आगे उन्नति की ओर प्रेरणा देनेवाले (हेमना) सुवर्णरूप साधन से (अस्य रसम्) इस राष्ट्र के बल को (सम् अपृक्त) अच्छी प्रकार जोड़ दे। अर्थात् धन और राष्ट्रबल की उत्तम संगति रक्खे। वह (सुतः) अभिषिक्त होकर (रेभन्) शासनाज्ञा करता हुआ (पवित्रम् परि एति) अति पवित्र पद को प्राप्त करता है। उस समय वह (होता) सबको अपने समीप बुलानेवाला, (मिता इव पशुमन्ति सद्म परि एति) बने हुए उन पशु सम्पदा से युक्त, गृहों को गृहपति के तुल्य प्राप्त होता है। उन सब पर उसको समान अधिकार होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः-१—३ वसिष्ठः। ४-६ इन्द्रप्रमतिर्वासिष्ठः। ७–९ वृषगणो वासिष्ठः। १०–१२ मन्युर्वासिष्ठः। १३-१५ उपमन्युर्वासिष्ठः। १६-१८ व्याघ्रपाद्वासिष्ठः। १९-२१ शक्तिर्वासिष्ठः। २२–२४ कर्णश्रुद्वासिष्ठः। २५—२७ मृळीको वासिष्ठः। २८–३० वसुक्रो वासिष्ठः। ३१–४४ पराशरः। ४५–५८ कुत्सः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, १०, १२, १४, १५, १९, २१, २५, २६, ३२, ३६, ३८, ३९, ४१, ४६, ५२, ५४, ५६ निचृत् त्रिष्टुप्। २-४, ७, ८, ११, १६, १७, २०, २३, २४, ३३, ४८, ५३ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ९, १३, २२, २७–३०, ३४, ३५, ३७, ४२–४४, ४७, ५७, ५८ त्रिष्टुप्। १८, ४१, ५०, ५१, ५५ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ३१, ४९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४० भुरिक् त्रिष्टुप्। अष्टापञ्चाशदृचं सूक्तम्॥
विषय
प्रेषा, हेमना
पदार्थ
(अस्य) = इस प्रभु की (प्रेषा) = प्रेरणा से तथा (हेमना) = ज्ञानज्योति से (पूयमानः) = पवित्र किया जाता हुआ (देवः) = यह दिव्यगुणों को जन्म देनेवाला सोम [वीर्य] (देवेभिः) = देववृत्ति वाले पुरुषों के साथ (रसं समपृक्त) = उस आनन्दमय प्रभु को संपृक्त करता है 'रसौ वै सः' सोमरक्षण के द्वारा देववृत्ति के पुरुष प्रभु को प्राप्त करते हैं, सोम का रक्षण चित्तवृत्ति की एकाग्रता से प्रभु प्रेरणा को सुनने व स्वाध्याय से ज्ञानवृद्धि के द्वारा होता है । (सुतः) = उत्पन्न हुआ हुआ यह सोम (रेभन्) = प्रभु का साधन करता हुआ, अपने रक्षक को प्रभु का स्तोता बनाता हुआ (पवित्रम्) = पवित्र हृदयवाले पुरुष को (पर्येति) = शरीर में चारों ओर प्राप्त होता है । इस प्रकार प्राप्त होता है, (इव) = जैसे कि (होता) = यज्ञशील पुरुष (मिता) = बड़े माप से बनाये हुए (पशुमान्ति) = प्रशस्त पशुओं वाले सद्म यज्ञगृहों को प्राप्त होता है। इन यज्ञगृहों में 'अग्रिहोत्री' गौ बंधी होती है, इसके ही दूध से घृत आदि प्राप्त करके यज्ञों की सिद्धि होती है।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण के लिये आवश्यक है कि हम ध्यान व स्वाध्याय की वृत्ति को अपनायें । इससे हम देव बनेंगे, प्रभु प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होंगे।
इंग्लिश (1)
Meaning
Divine Soma, moved and energised by the surge of golden impulse, joins its potency with the senses and mind, and thus seasoned and empowered, vibrant with vitality, it moves to the holiness of the heart like a sanative, or as a priest going to a yajnic enclosure, seat and anchor of sensitive visionary powers of humanity.
मराठी (1)
भावार्थ
विद्वान पुरुषांचे शिष्य अर्थात जे पुरुष वेदवेत्ता असून विद्वानांकडून शिक्षण घेऊन विभूषित होतात. ते सदैव ऐश्वर्याने सुशोभित होतात. ॥१॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal