Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1304
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
काण्ड नाम -
3
अ꣡ग꣢न्म म꣣हा꣡ नम꣢꣯सा꣣ य꣡वि꣢ष्ठं꣣ यो꣢ दी꣣दा꣢य꣣ स꣡मि꣢द्धः꣣ स्वे꣡ दु꣢रो꣣णे꣢ । चि꣣त्र꣡भा꣢नु꣣ꣳ रो꣡द꣢सी अ꣣न्त꣢रु꣣र्वी꣡ स्वा꣢हुतं वि꣣श्व꣡तः꣢ प्र꣣त्य꣡ञ्च꣢म् ॥१३०४॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡ग꣢꣯न्म । म꣣हा꣢ । न꣡म꣢꣯सा । य꣡वि꣢꣯ष्ठम् । यः । दी꣣दा꣡य꣢ । स꣡मि꣢꣯द्धः । सम् । इ꣣द्धः । स्वे꣢ । दु꣣रोणे꣢ । दुः꣣ । ओने꣢ । चि꣣त्र꣡भा꣢नुम् । चि꣣त्र꣢ । भा꣣नुम् । रो꣡द꣢꣯सी꣣इ꣡ति꣢ । अ꣣न्तः꣢ । उ꣣र्वी꣡इति꣢ । स्वा꣡हु꣢तम् । सु । आ꣣हुतम् । वि꣡श्व꣢तः । प्र꣣त्य꣡ञ्च꣢म् । प्र꣣ति । अ꣡ञ्च꣢꣯म् ॥१३०४॥
स्वर रहित मन्त्र
अगन्म महा नमसा यविष्ठं यो दीदाय समिद्धः स्वे दुरोणे । चित्रभानुꣳ रोदसी अन्तरुर्वी स्वाहुतं विश्वतः प्रत्यञ्चम् ॥१३०४॥
स्वर रहित पद पाठ
अगन्म । महा । नमसा । यविष्ठम् । यः । दीदाय । समिद्धः । सम् । इद्धः । स्वे । दुरोणे । दुः । ओने । चित्रभानुम् । चित्र । भानुम् । रोदसीइति । अन्तः । उर्वीइति । स्वाहुतम् । सु । आहुतम् । विश्वतः । प्रत्यञ्चम् । प्रति । अञ्चम् ॥१३०४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1304
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 8; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 9; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 8; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
प्रथम मन्त्र में परमात्मा की प्राप्ति का विषय वर्णित है।
पदार्थ
(यः) जो अग्रनेता परमेश्वर (स्वे) अपने (दुरोणे) ब्रह्माण्डरूप और जीवात्मारूप घर में (समिद्धः) प्रदीप्त हुआ (दीदाय) भासित होता है, उस (यविष्ठम्) सर्वाधिक युवा, (चित्रभानुम्) अद्भुत प्रकाशवाले, (उर्वी रोदसी) विस्तीर्ण द्यावापृथिवी के (अन्तः) अन्दर (स्वाहुतम्) जिसने अपनी आहुति दी हुई है, ऐसे (विश्वतः प्रत्यञ्चम्) सब जगह व्याप्त परमेश्वर को (महा नमसा) महान् नमस्कार के साथ, हम (अगन्म) प्राप्त होते हैं ॥१॥
भावार्थ
जो सूक्ष्मदर्शी लोग हैं, वे आकाश-पृथिवी में सर्वत्र परमात्मा की ही विभूति को देखते हैं ॥१॥
पदार्थ
(यः) जो अग्नि—अग्रणी ज्ञानप्रकाशक परमात्मा (स्वे-दुरोणे) अपने घर मोक्षधाम में२ (समिद्धः) सम्यक् दीप्त, स्वप्रकाश से प्रकाशित (दीदाय) जो विश्व को प्रकाशित करता है३ उस (यविष्ठम्) अत्यन्त युवा—सदा अजर (उर्वी रोदसी-अन्तः) महान् द्युलोक पृथिवी लोक—विश्व के ओर छोर पर्यन्त४ वर्तमान (चित्रभानुम्) चायनीय महनीय—प्रशंसनीय५ ज्योतिवाले (विश्वतः प्रत्यञ्चम्) सर्व ओर प्रतिगत ज्ञानदृष्टि से प्राप्त (स्वाहुतम्) हृदय में सम्यक् गृहीत—धारित को (महा नमसा-अगन्म) महान् नम्र-भाव-स्तवन से हम प्राप्त करें॥१॥
विशेष
ऋषिः—वसिष्ठ (परमात्मा में अत्यन्त वसने वाला उपासक)॥ देवता—अग्निः (अग्रणी ज्ञान प्रकाशक परमात्मा)॥ छन्दः—त्रिष्टुप्॥<br>
विषय
महान् नमन
पदार्थ
प्राणापान की साधना करके मन व इन्द्रियों को वशीभूत करनेवाला “मैत्रावरुणि वसिष्ठ" कहता है कि हम (महा नमसा) = महान् नमन के द्वारा ‘अग्नि' नामक प्रभु को (अगन्म) = प्राप्त होते हैं प्रभु की प्राप्ति का सर्वोत्तम उपाय नमन =अभिमान का अभाव है। जितना - जितना हम नमन की ओर चलते हैं जितना - जितना हमारा 'मैंपन'–‘आपा' समाप्त होता जाता है उतना उतना हम प्रभु के समीप पहुँचते जाते हैं। पूर्ण नमनवाला ही प्रभु को पा सकता है, उस प्रभु को, जो – १. (यविष्ठम्) = युवतम हैं। अपने भक्तों को उत्तरोत्तर अशुभ से पृथक् करके [यु- अमिश्रण] शुभ से जोड़नेवाले [यु=मिश्रण] हैं । २. (यः) = जो प्रभु (स्वे दुरोणे) = अपने भक्त में जोकि [दुःखेन ओणितुं योग्यं कृच्छ्रेण to remove] आत्म-प्राप्ति के निश्चय से हटाया नहीं जा सकता, (समिद्धः) = दीप्त हुए हुए (दीदायम्) = चमकते हैं । नचिकेता के समान दृढ़ निश्चयी पुरुष को ही आत्मसाक्षात्कार हुआ करता है। ३. (चित्रभानुम्) - वे प्रभु अद्भुत दीप्तिवाले हैं। सहस्रों सूर्यों के समान उनकी दीप्ति है । ४. वे प्रभु (उर्वी रोदसी अन्त:) = इन विशाल द्युलोक व पृथिवीलोक के अन्दर व्याप्त हैं— सर्वव्यापक हैं ५. (स्वाहुतम्) = जीवहित के लिए स्व-अपना आहुतम् - सब-कुछ दे डालनेवाले हैं ‘य आत्मदा'=उन्होंने तो अपने को भी दिया हुआ है । ६. (विश्वतः प्रत्यञ्चम्) = जो प्रभु सब ओर जानेवाले हैं और जो सर्वत्र प्रतिपूजित होते हैं । ज्ञानी तो उस प्रभु का पूजन करते ही हैं अज्ञानी भी अविधिपूर्वक अन्य देवताओं की उपासना करते हुए उन्हीं प्रभु की पूजा कर रहे होते हैं।
भावार्थ
हम नमन के द्वारा प्रभु को प्राप्त करनेवाले बनें ।
संस्कृत (1)
विषयः
तत्रादौ परमात्मप्राप्तिविषयमाह।
पदार्थः
(यः) अग्निः अग्रणीः परमेश्वरः (स्वे) स्वकीये (दुरोणे) ब्रह्माण्डरूपे जीवात्मरूपे वा गृहे। [दुरोण इति गृहनाम, दुरवा भवन्ति दुस्तर्पाः। निरु० ४।५।] (समिद्धः) प्रदीप्तः सन् (दीदाय) दीप्यते। [दीदयतिः ज्वलतिकर्मा। निघं० १।१६।] तम् (यविष्ठम्) युवतमम्, (चित्रभानुम्) अद्भुतप्रकाशम् (उर्वी रोदसी) विस्तीर्णयोः रोदस्योः द्यावापृथिव्योः। [अत्र सुपां सुलुक्० अ० ७।१।३९ इति विभक्तेर्लुक्।] (अन्तः) अभ्यन्तरम् (स्वाहुतम्) सम्यक् कृताहुतिम् (विश्वतः प्रत्यञ्चम्) सर्वत्र व्याप्तम् परमेश्वरम् (महा नमसा) महता नमस्कारेण सह, वयम् (अगन्म) प्राप्नुमः ॥१॥२
भावार्थः
ये सूक्ष्मदर्शिनः सन्ति ते द्यावापृथिव्योः सर्वत्र परमात्मन एव विभूतिं पश्यन्ति ॥१॥
इंग्लिश (2)
Meaning
May we with great reverence approach God, Who shines forth, well- kindled in this vast universe, is All-pervading, controls all between the expanded Heaven and Earth, is Almighty, and Worthy of adoration.
Meaning
With profound homage and reverence, let us move and rise to the most youthful Agni, light, fire and electrical energy, which shines well kindled in its own region, is wondrously bright and forceful between the vast heaven and earth, and when it is well invoked it moves in all directions for all. (Rg. 7-12-1)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (यः) જે અગ્નિ - અગ્રણી જ્ઞાનપ્રકાશક પરમાત્મા (स्वे दुरोणे) પોતાના ઘર મોક્ષધામમાં (समिद्धः) સમ્યક્ દીપ્ત , સ્વપ્રકાશથી પ્રકાશિત (दीदाय) જે વિશ્વને પ્રકાશિત કરે છે , તે (यविष्ठम्) અત્યંત યુવાન સદા અજર (उर्वी रोदसी अन्तः) મહાન દ્યુલોક પૃથિવીલોક વિશ્વની સીમા છેડા સુધી રહેલ (चित्रभानुम्) સન્માનનીય , મહાનીય - પ્રશંસનીય જ્યોતિવાળા (विश्वतः प्रत्यञ्चम्) સર્વત્ર પ્રતિગત વ્યાપ્ત જ્ઞાનદૃષ્ટિથી પ્રાપ્ત (स्वाहुतम्) હૃદયમાં સમ્યક્ ગૃહીત - ધારણ કરેલ ને (महा नमसा अगन्म) મહાન નમ્ર - ભાવ - સ્તવનથી અમે પ્રાપ્ત કરીએ. (૧)
मराठी (1)
भावार्थ
जे सूक्ष्मदर्शी लोक असतात ते आकाश, पृथ्वी सर्वत्र परमात्म्याची विभूती पाहतात. ॥१॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal