यजुर्वेद - अध्याय 16/ मन्त्र 1
ऋषिः - परमेष्ठी वा कुत्स ऋषिः
देवता - रुद्रो देवता
छन्दः - आर्षी गायत्री
स्वरः - षड्जः
14
नम॑स्ते रुद्र म॒न्यव॑ऽउ॒तो त॒ऽइष॑वे॒ नमः॑। बा॒हुभ्या॑मु॒त ते॒ नमः॑॥१॥
स्वर सहित पद पाठनमः॑। ते॒। रु॒द्र॒। म॒न्यवे॑। उ॒तोऽइत्यु॒तो। ते॒। इष॑वे। नमः॑। बा॒हु॒भ्या॒मिति॑ बा॒हुऽभ्या॑म्। उ॒त। ते॒। नमः॑ ॥१ ॥
स्वर रहित मन्त्र
नमस्ते रुद्र मन्यवऽउतो तऽइषवे नमः । बाहुभ्यामुत ते नमः ॥
स्वर रहित पद पाठ
नमः। ते। रुद्र। मन्यवे। उतोऽइत्युतो। ते। इषवे। नमः। बाहुभ्यामिति बाहुऽभ्याम्। उत। ते। नमः॥१॥
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राजधर्म उपदिश्यते॥
अन्वयः
हे रुद्र! ते मन्यवे नमोऽस्तु। उतो इषवे ते नमोऽस्तु। उत ते बाहुभ्यां नमोऽस्तु॥१॥
पदार्थः
(नमः) वज्रम्। नम इति वज्रनामसु पठितम्॥ (निघं॰२।२०) (ते) तवोपरि (रुद्र) दुष्टानां शत्रुणां रोदयितः। कतमे ते रुद्रा इति दशेमे पुरुषे प्राणा एकादश आत्मा। एकादश रुद्राः कस्मादेते रुद्रा? यदस्मान् मर्त्याच्छरीरादुत्क्रामन्त्यथ रोदयन्ति यत्तद्रोदयन्ति तस्माद् रुद्राः॥ इति शतपथब्राह्मणे। रोदेर्णिलुक् च। [उणा॰२.२२] अनेनोणादिगणसूत्रेण रोदिधातो रक् प्रत्ययो णिलुक् च। (मन्यवे) क्रोधयुक्ताय वीराय (उतो) अपि (ते) तव (इषवे) इष्णात्यभीक्ष्णं हिनस्ति शत्रून् येन तस्मै (नमः) अन्नम्। नम इत्यन्ननामसु पठितम्॥ (निघं॰२।७) (बाहुभ्याम्) भुजाभ्याम् (उत) अपि (ते) तव (नमः) वज्रम्॥१॥
भावार्थः
ये राज्यं चिकीर्षेयुस्ते बाहुबलं युद्धशिक्षाशस्त्रास्त्राणि च सम्पादयेयुः॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब सोलहवें अध्याय का आरम्भ करते हैं। इस के प्रथम मन्त्र में राजधर्म का उपदेश किया है॥
पदार्थ
हे (रुद्र) दुष्ट शत्रुओं को रुलानेहारे राजन्! (ते) तेरे (मन्यवे) क्रोधयुक्त वीर पुरुष के लिये (नमः) वज्र प्राप्त हो (उतो) और (इषवे) शत्रुओं को मारनेहारे (ते) तेरे लिये (नमः) अन्न प्राप्त हो (उत) और (ते) तेरे (बाहुभ्याम्) भुजाओं से (नमः) वज्र शत्रुओं को प्राप्त हो॥१॥
भावार्थ
जो राज्य किया चाहें, वे हाथ पांव का बल, युद्ध की शिक्षा तथा शस्त्र और अस्त्रों का संग्रह करें॥१॥
विषय
राजा रुद्र के मन्यु, इषु और बाहुओं को 'नमः' इसकी स्पष्ट व्याख्या ।
भावार्थ
हे (रुद्र) दुष्टों के रुलाने वाले राजन् ! ( मन्यवे ) तेरे मन्यु को अर्थात् मन्युस्वरूप तेरे अधीन रहने वाले तीक्ष्ण वीर पुरुषों को ( नमः ) नमस्कार या उनका भोग्य अन्न और वज्र शस्त्र और वीर्योचित कर्म या वीर्य, शक्ति प्राप्त हो । ( उतो ) और ( ते ) तेरे (इषवे) इषु, शत्रुओं के मारने वाले बाण अर्थात् बाणधारी सैन्य को ( नमः ) अन्न प्राप्त हो । ( ते बांहुभ्याम् ) तेरी बाहुओं को बाहु रूप सेना के दस्तों को ( नमः ) शत्रु को नमाने वाला वीर्य प्राप्त हो ।
टिप्पणी
अथातः शतरुद्रियो होम: ॥ १-३ कुत्स ऋषिः ।द ० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१-६६ ) देवाः प्रजापतिश्च ऋषयः । (१-१६ ) रुद्रो देवता । आर्षी गायत्री । षड्जः ॥
विषय
मन्यु-इषु-बाहू
पदार्थ
१. हे (रुद्र) = [रुत् ज्ञानं राति ददाति] ज्ञान देनेवाले और ज्ञान देकर [रुत्-दु:खं द्रावयति] सब दुःखों को दूर करनेवाले प्रभो! (ते मन्यवे) = आपसे दिये जानेवाले ज्ञान के लिए (नमः) = हम नतमस्तक होते हैं। [क] विनीत को ही ज्ञान की प्राप्ति होती है और [ख] ज्ञान प्राप्त करके ही मनुष्य सब कष्टों से ऊपर उठता है। कष्टमात्र के लिए अविद्या, अज्ञान ही उर्वरा भूमि है। 'अविद्या क्षेत्रमुत्तरेषाम्' [योगदर्शन] । २. (उत उ) = और अब निश्चय से (ते इषवे) = [इष् प्रेरणे] आपसे दी गई प्रेरणा का (नमः) = हम आदर करते हैं। आपसे वेदज्ञान में दी गई प्रेरणाएँ हमारे लिए कितनी उपयोगी हैं। अथर्व के प्रारम्भ में कहा गया 'वाचस्पति' शब्द 'वाणी व जिह्वा का पति बनना, इन्हें काबू में रखना' हमारे अनन्त कल्याण का कारण बन जाता है। जिह्वा के रस में न फँसकर परिमित भोजन करते हुए हम सब रोगों से ऊपर उठ जाते हैं और इस जिह्वा को वश में करके नपे-तुले परिमित शब्द बोलते हुए हम पारस्परिक कलहों में नहीं फँसते । आपकी एक-एक प्रेरणा हमारा अनन्त उपकार करनेवाली है । ३. (उत) = और (ते बाहुभ्याम्) = [बाह्र प्रयत्ने] आपके इन दोनों प्रयत्नों के लिए हम (नमः) = नतमस्तक होते हैं। आपने हमें 'ऋग्वेद' के द्वारा विज्ञान दिया तो अथर्व के द्वारा ज्ञान । विज्ञान ने हमें अभ्युदय के साधन के योग्य बनाया तो ज्ञान से निःश्रेयस का पथिक । इस प्रकार हमारे जीवनों में आपने 'प्रेय व श्रेय' दोनों का समन्वय कर दिया। प्रकृति से हमने ऐहलौकिक उन्नति का साधन किया तो आत्मतत्त्व से परलोक का। इस प्रकार आपकी कृपा से हमारे जीवन में धर्म का उदय हुआ ('यतोऽभ्युदयनिः श्रेयससिद्धिः स धर्मः') । धर्म अभ्युदय व निःश्रेयस दोनों को ही सिद्ध करता है। धर्म के शिखर पर पहुँचनेवाला यह सचमुच 'परमेष्ठी' प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि बनता है।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु से दिये जानेवाले ज्ञान के लिए, उस ज्ञान द्वारा दी जानेवाली प्रेरणाओं, और उन प्रेरणाओं से सिद्ध होनेवाले अभ्युदय व निःश्रेयस के लिए हम नतमस्तक होते हैं।
मराठी (2)
भावार्थ
ज्यांना राज्य करावयाचे असते त्यांच्या हातापायात बळ हवे. त्यांनी युद्धाचे शिक्षण घेतलेले असावे. त्यांच्याजवळ अस्त्र-शस्त्रांचा संग्रह असावा.
विषय
या अध्यायाच्या प्रथम मंत्रात राजधर्माविषयी कथन केले आहे -
शब्दार्थ
शब्दार्थ - हे (रुद्र) दुष्टांना व शत्रूंना रडविणारे राजन् (ते)ऽ आपणासारख्या (मन्यवे) क्रोधयुक्त वीर पुरुषाला (नप्र:) वज्रासारखा (घातक प्रभावी) अस्त्र मिळो. (उतो) आणि (इषवे) शत्रूंचा विनाश करणार्या (ते) आपणालां (नम:) अन्न भोजनादी प्राप्त व्हावेत. (उत) आणि (ते) आपल्या (बाहुभ्याम्) शक्तिशाली बाहुंमध्ये धरलेले (नम:) वज्रास्त्र शत्रूंवर पडो ॥1॥
भावार्थ
भावार्थ- ज्यांना राज्य करण्याची इच्छा आहे, त्यांनी हाता-पायात शक्ती संपादित करावी. युद्धाचे प्रशिक्षण घ्यावे आणि शस्त्र-अस्त्रांचा संग्रह करावा. ॥1॥
इंग्लिश (3)
Meaning
O King, the chastiser of the wicked, may thy indignant soldiers get arms. May thou the destroyer of foes get food. May the enemies be attacked with weapons by thy arms.
Meaning
Rudra, lord of justice and retribution /Ruler of the land, salutations to you for your righteous passion against the evil and the wicked. And salutations to you for your arrows and armaments. Salutations to you for your mighty arms (that wield the armaments). Thunderbolt to your enemies for their anger against you! Food and support for you! Salutations to your mighty arms to wield the thunderbolt!
Translation
O terrible Lord, we bow in humble reverence to your righteous wrath; we bow in reverence to your arrow as well; we bow in reverence to your both the arms also. (1)
Notes
Rudra, रुतं दु:खं द्रावयति अपसारयति य: स:, one that drives away the distress. Or, रवणं रुत् ज्ञानं रातिददाति यः सः, that imparts knowledge. Or, पापिनः दुःखभोगेन रोदयति यः सः, one that makes evil men cry inflicting sufferings on them. He is the Lord Supreme in His harsh and terrible forms. Dayanand has interpreted Rudra as the king, the teacher, the physician, the army commander etc. Manyave,सात्विकाय रोषाय , to the righteous wrath. Also, to ardour, to zeal, Isave, बाणाय, to the arrow; missile. Namaḥ, to bow in reverence; to pay homage; obeisance. Dayananda has translated namaḥ as वज्र, a thunderbolt and as अन्नं, food, also. He has interpreted the verse in the context of a king.
बंगाली (2)
विषय
॥ ও৩ম্ ॥
অথ ষোড়শোऽধ্যায় আরভ্যতে
ও৩ম্ বিশ্বা॑নি দেব সবিতর্দুরি॒তানি॒ পরা॑ সুব । য়দ্ভ॒দ্রং তন্ন॒ऽআ সু॑ব ॥ য়জুঃ৩০.৩
অথ রাজধর্ম উপদিশ্যতে ॥
এখন ষোড়শ অধ্যায় আরম্ভ করিতেছি । ইহার প্রথম মন্ত্রে রাজধর্মের উপদেশ করা হইয়াছে ।
पदार्थ
পদার্থঃ–হে (রুদ্র) দুষ্ট শত্রুদিগকে রোদনকারী রাজন্ । (তে) তোমার (মন্যবে) ক্রোধযুক্ত বীর পুরুষদিগের জন্য (নমঃ) বজ্র প্রাপ্ত হউক, (উতো) এবং (ইষবে) শত্রুদিগের বধকারী (তে) তোমার জন্য (নমঃ) অন্ন প্রাপ্ত হউক (উত) এবং (তে) তোমার (বাহুভ্যাম্) বাহুগুলির দ্বারা (নমঃ) বজ্র শত্রুগুলিকে প্রাপ্ত হউক ।
भावार्थ
ভাবার্থঃ–যে রাজ্য করিতে চাহে তাহাকে হস্ত-পদর বল, যুদ্ধের শিক্ষা তথা শস্ত্রাদির সংগ্রহ করিতে হইবে ॥ ১ ॥
मन्त्र (बांग्ला)
নম॑স্তে রুদ্র ম॒ন্যব॑ऽউ॒তো ত॒ऽইষ॑বে॒ নমঃ॑ ।
বা॒হুভ্যা॑মু॒ত তে॒ নমঃ॑ ॥ ১ ॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
নমস্ত ইত্যস্য পরমেষ্ঠী বা কুৎস ঋষিঃ । রুদ্রো দেবতা । আর্ষী গায়ত্রী ছন্দঃ । ষড্জঃ স্বরঃ ॥
পদার্থ
নমস্তে রুদ্র মন্যবঽউতো তঽইষবে নমঃ। বাহুভ্যামুত তে নমঃ।।৩৪।।
(যজু ১৬।১)
পদার্থঃ (রুদ্র) হে দুঃখ বিনাশক পরমেশ্বর! (তে মন্যবে) প্রদেয় জ্ঞানের জন্য তোমাকে (নমঃ) নমস্কার। (উত উ) এবং নিশ্চয়রূপে (তে ইষবে) প্রেরণাদানের জন্য (নমঃ) নমস্কার (উত) এবং (তে বাহুভ্যাম্) এই উভয় প্রযত্নের জন্য তোমাকে (নমঃ) নমস্কার।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ প্রদেয় জ্ঞান এবং প্রেরণা দ্বারা সিদ্ধ অভ্যুদয় এবং নিঃশ্রেয়স ফলের জন্য, হে পরমেশ্বর! তোমাকে নমস্কার। তুমিই দুঃখ বিনাশক, আমাদের ঐরূপ প্রেরণা প্রদান করো যেন আমরা নিজেদের এবং অন্যের দুঃখের কারণ না হই।।৩৪।।
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