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यजुर्वेद अध्याय - 24

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  • यजुर्वेद - अध्याय 24/ मन्त्र 1
    ऋषिः - प्रजापतिर्ऋषिः देवता - प्रजापतिर्देवता छन्दः - भुरिक् संकृतिः स्वरः - गान्धारः
    9

    अश्व॑स्तूप॒रो गो॑मृ॒गस्ते प्रा॑जाप॒त्याः कृ॒ष्णग्री॑वऽआग्ने॒यो र॒राटे॑ पु॒रस्ता॑त् सारस्व॒ती मे॒ष्यधस्ता॒द्धन्वो॑राश्वि॒नाव॒धोरा॑मौ बा॒ह्वोः सौ॑मापौ॒ष्णः श्या॒मो नाभ्या॑ सौर्यया॒मौ श्वे॒तश्च॑ कृ॒ष्णश्च॑ पा॒र्श्वयो॑स्त्वा॒ष्ट्रौ लो॑म॒शस॑क्थौ स॒क्थ्योर्वा॑य॒व्यः श्वे॒तः पुच्छ॒ऽइन्द्रा॑य स्वप॒स्याय वे॒हद्वै॑ष्ण॒वो वा॑म॒नः॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अश्वः॑। तू॒प॒रः। गो॒मृ॒ग इति॑ गोऽमृ॒गः। ते। प्रा॒जा॒प॒त्या इति॑ प्राजाऽप॒त्याः। कृ॒ष्णग्री॑व॒ इति॑ कृ॒ष्णऽग्री॑वः। आ॒ग्ने॒यः। र॒राटे॑। पु॒रस्ता॑त्। सा॒र॒स्व॒ती। मे॒षी। अ॒धस्ता॑त्। हन्वोः॑। आ॒श्वि॒नौ। अ॒धोरा॑मा॒वित्य॒धःऽरा॑मौ। बा॒ह्वोः। सौ॒मा॒पौ॒ष्णः। श्या॒मः। नाभ्या॑म्। सौ॒र्य॒या॒मौ। श्वे॒तः। च॒। कृ॒ष्णः। च॒। पा॒र्श्वयोः॑। त्वा॒ष्ट्रौ। लो॒म॒शस॑क्था॒विति॑ लोम॒शऽस॑क्थौ। स॒क्थ्योः। वा॒य॒व्यः᳖। श्वे॒तः। पुच्छे॑। इन्द्रा॑य। स्व॒प॒स्या᳖येति॑ सुऽअप॒स्या᳖य। वे॒हत्। वै॒ष्ण॒वः। वा॒म॒नः ॥१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्वस्तूपरो गोमृगस्ते प्राजापत्याः कृष्णग्रीवऽआग्नेयो रराटे पुरस्तात्सारस्वती मेष्यधस्ताद्धन्वोराश्विनावधोरामौ बाह्वोः सौमपौष्णः श्यामो नाभ्याँ सौर्ययामौ श्वेतश्च कृष्णश्च पार्श्वयोस्त्वाष्ट्रौ लोमशसक्थौ सक्थ्योर्वायव्यः श्वेतः पुच्छ इन्द्राय स्वपस्याय वेहद्वैष्णवो वामनः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अश्वः। तूपरः। गोमृग इति गोऽमृगः। ते। प्राजापत्या इति प्राजाऽपत्याः। कृष्णग्रीव इति कृष्णऽग्रीवः। आग्नेयः। रराटे। पुरस्तात्। सारस्वती। मेषी। अधस्तात्। हन्वोः। आश्विनौ। अधोरामावित्यधःऽरामौ। बाह्वोः। सौमापौष्णः। श्यामः। नाभ्याम्। सौर्ययामौ। श्वेतः। च। कृष्णः। च। पार्श्वयोः। त्वाष्ट्रौ। लोमशसक्थाविति लोमशऽसक्थौ। सक्थ्योः। वायव्यः। श्वेतः। पुच्छे। इन्द्राय। स्वपस्याययेति सुऽअपस्याय। वेहत्। वैष्णवः। वामनः॥१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 24; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ मनुष्यैः पशुभ्यः कीदृश उपकारो ग्राह्य इत्याह॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः! यूयमश्वस्तूपरो गोमृगस्ते प्राजापत्याः कृष्णग्रीव आग्नेयः पुरस्ताद् रराटे मेषी सारस्वती अधस्ताद्धन्वोर्बाह्वोरधोरामावाश्विनौ सौमापौष्णः श्यामो नाभ्यां पार्श्वयोः श्वेतश्च कृष्णश्च सौर्ययामौ सक्थ्योर्लोमशसक्थौ त्वाष्ट्रौ पुच्छे श्वेतो वायव्यो वेहद्वैष्णवो वामनश्च स्वपस्यायेन्द्राय संयोजयत॥१॥

    पदार्थः

    (अश्वः) आशुगामी तुरङ्गः (तूपरः) हिंसकः (गोमृगः) गौरिव वर्त्तमानो गवयः (ते) (प्राजापत्याः) प्रजापतिः सूर्य्यो देवता येषान्ते (कृष्णग्रीवः) कृष्णा ग्रीवा यस्य सः (आग्नेयः) अग्निदेवताकः (रराटे) ललाटे (पुरस्तात्) आदितः (सारस्वती) सरस्वती देवता यस्याः सा (मेषी) शब्दकर्त्री मेषस्य स्त्री (अधस्तात्) (हन्वोः) मुखाऽवयवयोः (आश्विनौ) अश्विदेवताकौ (अधोरामौ) अधो रमणं ययोस्तौ (बाह्वोः) (सौमापौष्णः) सोमपूषदेवताकः (श्यामः) कृष्णवर्णः (नाभ्याम्) मध्ये (सौर्ययामौ) सूर्ययमसम्बन्धिनौ (श्वेतः) श्वेतवर्णः (च) (कृष्णः) (च) (पार्श्वयोः) वामदक्षिणभागयोः (त्वाष्ट्रौ) त्वष्टृदेवताकौ (लोमशसक्थौ) लोमानि विद्यन्ते यस्य तल्लोमशं सक्थि ययोस्तौ (सक्थ्योः) पादावयवयोः (वायव्यः) वायुदेवताकः (श्वेतः) श्वेतवर्णः (पुच्छे) (इन्द्राय) ऐश्वर्ययुक्ताय (स्वपस्याय) शोभनान्यपांसि कर्माणि यस्य तस्मै (वेहत्) अकाले वृषभोपगमनेन गर्भघातिनी (वैष्णवः) विष्णुदेवताकः (वामनः) वक्राङ्गः॥१॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या अश्वादिभ्यः कार्य्याणि संसाध्यैश्वर्यमुन्नीय धर्म्याणि कर्माणि कुर्युस्ते सौभाग्यवन्तो भवेयुः। अत्र सर्वत्र देवतापदेन तत्तद्गुणयोगात् पशवो वेदितव्याः॥१॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    अब चौबीसवें अध्याय का आरम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र में मनुष्यों को पशुओं से कैसा उपकार लेना चाहिये, इस विषय का वर्णन है॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो! तुम जो (अश्वः) शीघ्र चलने हारा घोड़ा (तूपरः) हिंसा करने वाला पशु (गोमृगः) और गौ के समान वर्त्तमान नीलगाय है, (ते) वे (प्राजापत्याः) प्रजापालक सूर्य देवता वाले अर्थात् सूर्यमण्डल के गुणों से युक्त (कृष्णग्रीवः) जिसकी काली गर्दन वह पशु (आग्नेयः) अग्नि देवता वाला (पुरस्तात्) प्रथम से (रराटे) ललाट के निमित्त (मेषी) मेंढ़ी (सारस्वती) सरस्वती देवता वाली (अधस्तात्) नीचे से (हन्वोः) ठोढ़ी वामदक्षिण भागों के ओर (बाह्वोः) भुजाओं के निमित्त (अधोरामौ) नीचे रमण करने वाले (आश्विनौ) जिनका अश्विदेवता वे पशु (सौमापौष्णः) सोम और पूषा देवता वाला (श्यामः) काले रंग से युक्त पशु (नाभ्याम्) तुन्दी के निमित्त और (पार्श्वयोः) बार्इं दाहिनी ओर के निमित्त (श्वेतः) सुफेद रंग (च) और (कृष्णः) काला रंग वाला (च) और (सौर्ययामौ) सूर्य वा यमसम्बन्धी पशु वा (सक्थ्योः) पैरों की गांठियों के पास के भागों के निमित्त (लोमशसक्थौ) जिसके बहुत रोम विद्यमान ऐसे गांठियों के पास के भाग से युक्त (त्वाष्ट्रौ) त्वष्टा देवता वाले पशु वा (पुच्छे) पूंछ के निमित्त (श्वेतः) सुफेद रंग वाला (वायव्यः) वायु जिस का देवता है, वह वा (वेहत्) जो कामोद्दीपन समय के विना बैल के समीप जाने से गर्भ नष्ट करने वाली गौ वा (वैष्णवः) विष्णु देवता वाला और (वामनः) नाटा शरीर से कुछ ढेढ़े अङ्गवाला पशु इन सबों को (स्वपस्याय) जिसके सुन्दर-सुन्दर कर्म उस (इन्द्राय) ऐश्वर्य्ययुक्त पुरुष के लिये संयुक्त करो अर्थात् उक्त प्रत्येक अङ्ग के आनन्दनिमित्तक उक्त गुण वाले पशुओं को नियत करो॥१॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य अश्व आदि पशुओं से कार्य्यों को सिद्ध कर ऐश्वर्य्य को उन्नति देके धर्म के अनुकूल काम करें, वे उत्तम भाग्य वाले हों। इस प्रकरण में सब स्थानों में देवता पद से उस-उस पद के गुणयोग से पशु जानने चाहियें॥१॥

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    विषय

    राजा के अधीन राष्ट्र के १६ पर्यङ्गों का वर्णन ।

    भावार्थ

    राष्ट्र के अन्य अंग प्रत्यङ्गों का वर्णन - (१) 'अश्वस्तूपरों' गोमृगस्ते प्रजापत्याः ॥' (अश्व:) घोड़ा, (तूपरः) सींगों वाला मेढ़ा,' (गोमृयगः) गोमृग, नील गाय, ये तीन ( प्राजापत्याः) प्रजापालक राजा के रूप हैं, वे राजा के ही स्वभाव के हैं । घोड़ा जैसे विजयशील है, अपने ऊपर दूसरों को उठाता है, गाड़ी में लगा कर उसे खींचता है, इसी प्रकार राजा संग्राम में विजयी, अपने पर प्रजाओं का भार उठाता, राष्ट्र के रथ में जुड़कर राष्ट्र का संचालन करता है। मेढा जोश में दूसरों से सिर लड़ाता है, प्राणान्त तक लड़ना नहीं छोड़ता । इसी प्रकार प्रजापालक राजा अपने प्रतिस्पर्धी शत्रु से लड़े और प्राण रहते तक प्रतिपक्ष से से टक्कर ले | 'गोमृग' बारहसींगा या नीलगाय नीली मादा गाय के लिये प्राणपण से लड़ता है इसी प्रकार राजा भूमि के लिये प्राण दे । अथवा जैसे नीलगाय अपने चंवर बालों के लिये जान देती है राजा भी अपनी शोभा और मान के लिये प्राण दे । इस प्रकार ये तीन पशु प्रजापति राजा के प्रतिनिधि हैं । इसी से ये तीनों प्रजापति देवता के हैं । अर्थात् घोड़े समान वेगवान्, युद्धशील, मेढ़े के समान प्रतिपक्षी से प्राण रहते टक्कर लेने वाला और गबय के समान योग्य लक्ष्मी के लिये प्राणपण से लड़ने वाला, ये तीनों प्रकार के पुरुष प्रजापति के गुण वाले होने से प्रजापति, राजा के पद के योग्य हैं । 'प्राजापत्याः ' – प्रजापतिदेवताका इत्यर्थः । देवो गुणदर्शनात् गुण द्योतनात् वा । तथा चाह दयानन्दः । अत्र सर्वत्र देवता शब्देन तत्तदगुणयोगात्पशवो वेदितव्याः ॥ (२) 'कृष्णग्रीव आग्नेयो रराटे पुरस्तात्' (कृष्णगीवः) काली गर्दन वाला (आग्नेय) अग्नि देवता वाला है । वह राष्ट्र के (रराटे) ललाट में, शिर भाग या मुख्य भाग में ( पुरस्तात् ) आगे स्थापित करने योग्य है । अर्थात् जैसे अग्नि नीचे उज्ज्वल और धूम से नील होता है उसी प्रकार श्वेत पशु जिसके गर्दन में काला है वह अग्नि के समान है । उसी प्रकार वह पुरुष जो उज्ज्वज पोशाक और गर्दन में काला या नीला वस्त्र, या नीले मणि आदि चिन्ह धारण करे वह 'अग्नि' पद अग्रणी नेता होने योग्य है वह (रराटे) ललाट या शिरवत् प्रमुख पद पर या मस्तक से विचार 'झील हो । (३) 'सरस्वती मेषी अधस्तात् हन्वोः' (सरस्वती) सरस्वती देवता की (मेषी) भेड़ ( हन्वोः अधस्तात् ) दोनों जबाड़े नीचे । अर्थात् भेड़ का स्वभाव है कि दो लड़ाऊ मेढ़ों में जो प्रबल है वह उसको प्राप्त होती है । अर्थात् ( हन्वोः) परस्पर आघात प्रतिघात करने वालों के ( अधस्तात् ) मूल में, जैसे दोनों की स्पर्द्धा का विषय वह मेड़ी है और जैसे (सरस्वती) सरस्वती, वाणी वाक् शक्ति ( हन्वोः अधस्तात् ) दोनों जबाड़ों के नीचे है इसी प्रकार (सारस्वती मेषी) सरस्वती नामक विद्वान् की प्रतिस्पर्द्धा में प्रवृत्त सभा भी (हन्बोः) पक्ष प्रतिपक्ष से एक दूसरे का खंडन करने वाले दोनों दलों के ( अधस्तात् ) नीचे, उनके किये निर्णय के अधीन रहे । (४) 'अश्विनौ अधोरामौ बाह्वोः ' शरीर में (बाहोः) जिस प्रकार बाहू हैं उसी प्रकार राष्ट्र शरीर में दो बाहुओं के स्थानों पर (आश्विनौ) 'अश्वि' देवता वाले (अधोरामौ) नीचे से श्वेत वर्ण के दो बकरों के समान स्वभाव के दो पुरुष नियुक्त हों । अर्थात् बकरे जैसे सदा खरते हैं उस प्रकार वे दोनों भी राष्ट्र को चर सकें, उसका शासन कर सकें, वे (अश्विनौ) अश्वि देवता के हैं वे राष्ट्र में व्याप्त होकर शासन करें । उनके पोशाक ऊपर से काले नीचे से श्वेत हों ऊपर से भयंकर और नीचे से उज्ज्वल हों । भीतर में हितैषी और प्रकट में कठोर पुरुषों को राष्ट्र के (बाह्वोः) बाहुओं के समान रक्षा निमित्त नियुक्त करें। (५) 'सौमा - पौष्णः श्यामः नाभ्याम्' सोम और पूषा देवता वाला नाभिस्थान में श्याम वर्ण का हो । (श्यामः) श्याम, हरे वर्ण का खेतों में लगा हुआ अन्न ( नाभ्याम् ) राष्ट्र के नाभि या केन्द्रस्थान या मध्यभाग में हो । वे (सौमा पौष्णाः) सोम, राष्ट्र के ऐश्वर्य और 'पौष्ण' प्रजा के पोषणकारी हैं। इस श्यामल वनस्पति वर्ग के दो देव, विद्वान् अधिकारी हैं, सोम, ओषधि रस का वेत्ता, वैद्य और पोषक अन्न का उत्पादक कृषि विभागाध्यक्ष । (६) 'सौर्ययामौ श्वेतः च कृष्णाः च पार्श्वयोः' सूर्य और यम अर्थात् वायु और आकाश इन दो के गुण दिखाने वाली काली और सफेद पोशाक को पहनने वाले दो मुख्य अधिकारी (पार्श्वयोः) राष्ट्र शरीर में दो पार्श्व या बगल हैं अर्थात् राष्ट्र का एक पार्श्व श्वेत सूर्य के समान तेजस्वी प्रखर राजा और दूसरा प्रार्श्व यम अर्थात् दिन के विपरीत रात्रि के समान समस्त राष्ट्र में शन्तिस्थापन नियन्ता पुरुष हो । 'सूर्य' नामक पदाध्यक्ष श्वेत हो, दूसरा नियन्ता 'यम' कृष्ण हो, वह रात्रि के समान सुख में प्रजा को प्रेम से खेचने वाला और पीड़ाओं से शत्रुओं को 'कर्षण' अर्थात् बन्धनागार में खेंचने वाला हो । राष्ट्र-व्यवस्था की ये ही दो पहलू हैं, एक प्रजा की वृद्धि और दूसरा दुष्टों का दमन । (७) 'त्वाष्टौ लोमश- सक्यौ सक्थ्यो:' (लोमशसक्यौ ) सक्थि अर्थात् समवाय, अर्थात् एका करके शत्रुओं का छेदन करने वाले दो नायक (त्वाष्ट्र) शत्रु सेनाओं को शस्त्रों से विनष्ट करने वाले हों। वे (सक्थ्योः) राष्ट्र- शरीर के 'सक्थि' अर्थात् जंघा भाग में स्थित हैं । ( ८ ) ( वायव्यः श्वेतः पुच्छे' पुच्छ भाग, आधार स्थान पर (वायव्य) वायु के समान तीव्र प्रचण्ड बलवान् (श्वेतः) अति वृद्धिशील, तेजस्वी पुरुष नियुक्त हो । (९) 'स्वपस्याय इन्द्राय वेहत्' (स्वपस्याय) उत्तम कर्म और प्रज्ञावान् (इन्द्राय ) इन्द्र, सेनापति पद के लिये ( वेहत् ) विशेष साधनों से शत्रुओं का नाश करने वाला पुरुष नियुक्त हो । (१०) 'वैष्णवो वामनः' व्यापक सामर्थ्यवान् पद के लिये (वामनः) अति सुन्दर, हृदयग्राही पुरुष नियुक्त हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    प्रजापतिर्देवता । भुरिक् संकृतिः । गान्धारः ॥

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जी माणसे घोडे इत्यादी पशूकडून काम करवून घेतात व ऐश्वर्य वाढवितात आणि धर्मानुकूल काम करतात ती भाग्यवान असतात.

    टिप्पणी

    या प्रकरणात सर्व स्थानी देवता हे पद त्या त्या पदाच्या योगाने पशु आहे हे लक्षात घ्यावे (सूर्य, अग्नी, वायू इत्यादी देवता व त्यांचे गुण आढळणारे पशू) .

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    विषय

    आता चोविसाव्या अध्यायाचा आरंभ होत आहे. या मंत्रात, मनुष्यांनी पशूंपासून कशाप्रकारे व कोणते लाभ घ्यावेत, हा विषय मांडलेला आहे. -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - हे मनुष्यांनो (तुम्ही या मंत्रात वर्णन केलेल्या पशुचे पालन करा तसेच पशूच्या अंगी जे जे गुण आहेत, त्यांपासून लाभ घ्या) (अश्‍वः) शीघ्रगामी वेगवान घोड्यापासून (लवकर प्रवास करणे) तसेच (तूपरः) हिंसक वाघ, सिंह हत्ती आदी पशूंपासून (अनावश्यक पशूंचा नाश व प्राणी संख्या समतोल राखणे) हे गुण घ्या. (प्राजापत्याः) प्रजापालक सूर्यापासून म्हणजे सूर्यलोकाच्या गुणांपासून (ते) जे प्राणी गुण वा जीवन घेतात त्या (कृष्णग्रीवः) काळ्या रंगाची मान असलेला पशुपासून गुण घ्या. (आग्नेयः) अग्नी देवता असलेल्या आणि (पुरस्तात्) सर्वप्रथम (रराटे) ललाटावर (चिद्व असलेली) (मेषी) मेंढी आणि (सरस्वती) सरस्वती देवते असणार्‍या पशूच्यरा (अधस्तात्) शरीराच्या खालच्या भागासाठी (पोटावर) (हन्वोः) हनुवटीच्या उजव्या-डाव्या भागासाठी आणि (बाह्वोः) भुजा वा पायांसाठी (ऐश्‍वर्ययूक्त पुरूषाशी संपर्क करा आणि त्या त्या पशूचा त्या त्या लाभासाठी उपयोग करा) (अधोरामौ) खाली म्हणजे भूमीवर रमण करणार्‍या (आश्‍विनौ) अश्‍वि देवता असणार्‍या पशूंच्या तसेच (सौमपौष्णः) सोम व पूषा देवता असणार्‍या पशूंच्या (श्यामः) काल्या रंगासाठी तसेच त्या पशूच्या (नाभ्याम्) नाभी वा उदरासठी (इन्द्राशी संपर्स करा व पशूपासून लाभ घ्या) (पार्श्‍वयोः) ज्या पशूच्या डाव्या भागावर व उजव्या भागावर (श्‍वेतः) पांढरा (च) आणि (कृष्णः) काळा रंग आहे, (च) तसेच (सौर्ययामौ) सूर्य यमाशी संबधीत पशूंसाठी अथवा (सक्थ्योः) पायाच्या संधीत (घोटा व गुडघा आदी संधिस्थानासाठी) तसेच (लोमसशक्थौ) ज्या संधीस्थानावर पुष्कळ रोम वा केस आहेत अशा स्थानासाठी (इन्द्राशी संपर्क करा आणि त्या पशूं पासून उपयोग घ्या) (त्वाष्ट्रौ) त्वष्टा देवता असणार्‍या पशूंच्या (पुच्छे) शेपटीसाठी आणि (श्‍वेतः) त्याच्या पांढर्‍या रंगासाठी याशिवाय (वायव्यः) वायू ज्यांच्या देवता, त्या पशूंसाठी (यत्न व पालन करा.) (वेहत्) कामोद्दीपित झाल्याशिवायच जी गौ गर्भवती झाली (वळूशी असमयीं संबंध आल्यामुळे ज्या गायीचा गर्भ कधी ठरत नाही ) अशा गायीसाठी अथवा (वैष्णवः) विष्णु ज्यांचा देवता, अशा (वामनः) बुटके शरीर असलेल्या पशूसाठी, हे मनुष्यानो, तुम्ही (स्वपस्याय) ज्याचे कर्म सुंदर आहेत, अशा (इन्द्राय) ऐश्‍वर्यवान पुरूषाशी संपर्क करा (वरील लक्षण व चिन्ह असलेले पशू पशुपालक राजा आदी द्या तसेच तुम्ही सर्व त्या पशूंनासून लाभ घ्या तात्पर्य असा की पशूच्या प्रत्येक अंगासाठी आनंद सुख वा लाभ देणार्‍या प्रत्येक अवयवासाठी त्या त्या पशूचे पालन करा. ॥1॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जी माणसें अश्‍व आदी पशूंपासून आपली इच्छित कामें पूर्ण करून घेतात, त्याद्वारे ऐश्‍वर्यवान होऊन धर्मानुकूल कार्य करतात, ते उत्तम भाग्यशाली ठरतात. या मंत्रात सर्वत्र जेथे जेथे देवता शब्दाचा उपयोग केला आहे, तेथे त्या देवतेतील गुणांचा संबंध त्या त्या पशूंशी आहे, असे जाणावे. (उदाहरणार्थ - सरस्वती वाणीचा संबंध ओरडणार्‍या शेळी, गाय आदी पशूंशी, अश्‍वि देवतेचा संबंध उत्तम स्वास्थ्यासाठी, त्वष्टा देवतेचा संबंध विश्‍व निर्माता परमेश्‍वराशी आहे) ॥1॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Horse, violent goat, forest cow possess the qualities of the sun. A black-necked beast, excellent amongest the beasts, has the qualities of fire. An ewe possesses the qualitities of speech and lives amongst the beasts, like tongue between the jaws. Two goats white-coloured in the lower parts of the body, resembling two arms possess the qualities of day and night. A dark-coloured beast possesses the qualities of the sun and moon, and is considered as a navel amongst the beasts. White and dark-coloured beasts, possess the qualities of the sun and air. They act as sides amongst the beasts. Beasts with abundance of hair possess the qualities of Twashta. They are like thighs amongst the beasts. A white beast possesses the qualities of air, and is like tail amongst the beasts. A cow that slips her calf is imbued with the qualities of Indra, the doer of noble deeds. A beast dwarfish in size belongs to Vishnu.

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    Meaning

    The horse, the wild ram, the wild cow, these are sunny in character and quality, they belong to Prajapati; the black-necked animal foremost among the beasts is fiery in character and quality, it belongs to Agni; the sheep with twisted hair in the forehead has the quality for speech and intelligence, it belongs to Sarasvati; the goats having black spots below the jaws and on the lower parts of front legs have the qualities of the sun and moon, they belong to the Ashvinis; the animal which is black round the navel has the qualities of Soma and Pushan; those which are white and dark on the sides have the qualities of the sun and air, they belong to Surya and Yama; those with long hair on the thighs have the qualities of Tvashta; those which have a white tail belong to the wind, Vayu; the small animal and the barren cow belong to Vishnu; Let all these be deployed in the service of Indra, the ruler, man of high values and action.

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    Translation

    The horse, the hornless animal, the gayal (go-mrga) belonging to the Prajapati (the Lord of the creatures), and the black-necked one belonging to Agni (the adorable Lord), are to be kept in the front and about the forehead; the ewe belonging to Sarasvati (divine Doctress) is to be kept under the chins; the two animals with white under-bellies belonging to Asvins (the twin healers) are to be kept near the arms; the dark-coloured belonging to Soma (the Lord of bliss) and Pusan (the nourisher) is to be kept in the navel; one white and one black belonging to Surya (the sun) and Yama (the controller Lord) are to be kept on the flanks; two animals with hairy thighs belonging to Tvastr (the Universal Architect) are to be kept by the thighs; the white one belonging to Vayu (the wind) is to be kept near the tail; a cow, who slips her calf, belongs to Indra (the resplendent Lord), the performer of good deeds; and the dwarf one belongs to Visnu (the pervading Lord). (1)

    Notes

    Tüparah, श्रृंगोत्पत्तिकाले अतीते अपि शृंगहीन:, horm less, even at the stage when horns should have grown out. Rarate, ललाटे, on the forehead. Adhorāmau, अध: शुक्लौ, with white underbelly. Lomasa sakthau, बहुरोमपुच्छिकौ, with bushy tails. Sakthyoḥ, ऊर्वो:, to his thighs; Vehat, गर्भघातिनी गौ:, a cow that slips its calf.

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    बंगाली (1)

    विषय

    ॥ ও৩ম্ ॥
    অথ চতুর্বিংশোऽধ্যায়ঃ
    ও৩ম্ বিশ্বা॑নি দেব সবিতর্দুরি॒তানি॒ পরা॑ সুব । য়দ্ভ॒দ্রং তন্ন॒ऽআ সু॑ব ॥ য়জুঃ৩০.৩ ॥
    অথ মনুষ্যৈঃ পশুভ্যঃ কীদৃশ উপকারো গ্রাহ্য ইত্যাহ ॥
    এখন চতুর্বিংশ অধ্যায়ের আরম্ভ । ইহার প্রথম মন্ত্রে মনুষ্যদিগকে পশুদের হইতে কেমন উপকার লওয়া উচিত, এই বিষয়েরবর্ণনা আছে ॥

    पदार्थ

    পদার্থঃ–হে মনুষ্যগণ! যে (অশ্বঃ) শীঘ্র গমনশীল অশ্ব (তূপর) হিংস্র পশু (গোমৃগঃ) এবং গাভি সমান বর্ত্তমান নীলগাই আছে (তে) তাহারা (প্রাজাপত্যাঃ) প্রজাপালক সূর্য্য দেবতাযুক্ত অর্থাৎ সূর্য্যমণ্ডলের গুণযুক্ত (কৃষ্ণগ্রীবঃ) যাহার কৃষ্ণ গ্রীবা সেই পশু (আগ্নেয়ঃ) অগ্নি দেবতাযুক্ত (পুরস্তাৎ) প্রথম হইতে (ররাটে) ললাটের নিমিত্ত (মেষী) মেষী (সারস্বতী) সরস্বতী দেবতাযুক্তা (অধস্তাৎ) নিম্ন হইতে (হন্বোঃ) হনুর বাম-দক্ষিণ অংশের দিকে (বাহ্বোঃ) বাহুর নিমিত্ত (অধোরামৌ) নিম্নে রমণকারী (আশ্বিনৌ) যাহাদের অশ্বিদেবতা সেই সব পশু (সৌমাপৌষ্ণঃ) সোম ও পূষা দেবতাযুক্ত (শ্যামঃ) কাল রঙ দ্বারা যুক্ত পশু (নাভ্যাম্) নাভির নিমিত্ত এবং (পার্শ্বয়োঃ) বাম-দক্ষিণ দিক্কার নিয়ম (শ্বেতঃ) শ্বেত রঙ (চ) এবং (কৃষ্ণঃ) কাল রঙ্ যুক্ত (চ) এবং (সৌর্য়য়ামী) সূর্য্য বা যমসম্বন্ধীয় পশু বা (সক্থ্যোঃ) পদযুগলের গ্রন্থির পাশের অংশের নিমিত্ত (লোমশসক্থৌ) যাহার বহু রোম বিদ্যমান এমন গ্রন্থির পাশের ভাগের সঙ্গে যুক্ত (ত্বাষ্ট্রৌ) ত্বষ্টা দেবতা যুক্ত পশু বা (পুচ্ছে) পুচ্ছ নিমিত্ত (শ্বেতঃ) সাদা রঙ যুক্ত (বায়ব্যঃ) বায়ু যাহার দেবতা সে বা (বেহৎ) যে কামোদ্দীপন সময় ব্যতীত বৃষের সমীপ গমনরত গর্ভ নষ্ট কারিণী গাভি বা (বৈষ্ণবঃ) বিষ্ণু দেবতা যুক্ত এবং (বামনঃ) বামন শরীরের কিছু বক্রাঙ্গ যুক্ত পশু এই সকলকে (স্বপস্যায়) যাহার সুন্দর সুন্দর কর্ম সেই (ইন্দ্রায়) ঐশ্বর্য্যযুক্ত পুরুষের জন্য তোমরা সংযুক্ত কর অর্থাৎ উক্ত প্রত্যেক অঙ্গের আনন্দনিমিত্তক উক্ত গুণযুক্ত পশুদিগকে নিশ্চয় কর ॥ ১ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ–যে মনুষ্য অশ্বাদি পশুসকল হইতে কার্য্যকে সিদ্ধ করিয়া ঐশ্বর্য্যকে উন্নতি প্রদান করিয়া ধর্মানূকূল কাজ করিবে তাহারা উত্তম ভাগ্যসম্পন্ন হইবে । এই প্রকরণে সব স্থানে দেবতা পদ দ্বারা সেই সেই পদের গুণযোগ দ্বারা পশু জানা উচিত ॥ ১ ॥

    मन्त्र (बांग्ला)

    অশ্ব॑স্তূপ॒রো গো॑মৃ॒গস্তে প্রা॑জাপ॒ত্যাঃ কৃ॒ষ্ণগ্রী॑বऽআগ্নে॒য়ো র॒রাটে॑ পু॒রস্তা॑ৎ সারস্ব॒তী মে॒ষ্য᳕ধস্তা॒দ্ধন্বো॑রাশ্বি॒নাব॒ধোরা॑মৌ বা॒হ্বোঃ সৌ॑মাপৌ॒ষ্ণঃ শ্যা॒মো নাভ্যা॑ᳬं সৌর্য়য়া॒মৌ শ্বে॒তশ্চ॑ কৃ॒ষ্ণশ্চ॑ পা॒র্শ্বয়ো॑স্ত্বা॒ষ্ট্রৌ লো॑ম॒শস॑ক্থৌ স॒ক্থ্যোর্বা॑য়॒ব্যঃ᳖ শ্বে॒তঃ পুচ্ছ॒ऽইন্দ্রা॑য় স্বপ॒স্যা᳖য় বে॒হদ্বৈ॑ষ্ণ॒বো বা॑ম॒নঃ ॥ ১ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    অশ্ব ইত্যস্য প্রজাপতির্ঋষিঃ । প্রজাপতির্দেবতা । ভুরিক্সংকৃতিশ্ছন্দঃ ।
    গান্ধারঃ স্বরঃ ॥

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