ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 20/ मन्त्र 3
ऋषिः - गाथी कौशिकः
देवता - विश्वेदेवा:
छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अग्ने॒ भूरी॑णि॒ तव॑ जातवेदो॒ देव॑ स्वधावो॒ऽमृत॑स्य॒ नाम॑। याश्च॑ मा॒या मा॒यिनां॑ विश्वमिन्व॒ त्वे पू॒र्वीः सं॑द॒धुः पृ॑ष्टबन्धो॥
स्वर सहित पद पाठअग्ने॑ । भूरी॑णि । तव॑ । जा॒त॒ऽवे॒दः॒ । देव॑ । स्व॒धा॒ऽवः॒ । अ॒मृत॑स्य । नाम॑ । याः । च॒ । मा॒या । मा॒यिना॑म् । वि॒श्व॒म्ऽइ॒न्व॒ । त्वे इति॑ । पू॒र्वीः । स॒म्ऽद॒धुः । पृ॒ष्ट॒ब॒न्धो॒ इति॑ पृष्टऽबन्धो ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने भूरीणि तव जातवेदो देव स्वधावोऽमृतस्य नाम। याश्च माया मायिनां विश्वमिन्व त्वे पूर्वीः संदधुः पृष्टबन्धो॥
स्वर रहित पद पाठअग्ने। भूरीणि। तव। जातऽवेदः। देव। स्वधाऽवः। अमृतस्य। नाम। याः। च। माया। मायिनाम्। विश्वम्ऽइन्व। त्वे इति। पूर्वीः। सम्ऽदधुः। पृष्टबन्धो इति पृष्टऽबन्धो॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 20; मन्त्र » 3
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 20; मन्त्र » 3
विषय - फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
पदार्थ -
हे (स्वधावः) प्रशंसनीय अमृतरूप अन्नयुक्त (जातवेदः) श्रेष्ठ विज्ञानयुक्त (देव) विद्वान् पुरुष ! (अग्ने) विद्या द्वारा प्रकाशकारक जो (तव) आपके (भूरीणि) बहुत (अमृतस्य) नाशरहित के (नाम) नाम हैं हे (पृष्टबन्धो) मनुष्यों के कर्मानुसार फलदायक (विश्वमिन्व) सम्पूर्ण जगत् में व्यापक (याः) जो (पूर्वीः) प्राचीन प्रजायें (त्वे) आपमें (सन्दधुः) स्थित की गई हैं (मायिनाम्) निकृष्ट बुद्धियुक्त पुरुषों की (माया) बुद्धिनाश हो तो (च) भी अन्य पुरुष विज्ञानयुक्त होवें ॥३॥
भावार्थ - हे मनुष्यो ! आप लोग सम्पूर्ण संसार ईश्वर से व्याप्य अर्थात् पूरित जानो और छली पुरुषों के छल को नाश तथा परमेश्वर के अर्थ सहित सम्पूर्ण नाम जान के अर्थ के अनुकूल भाव से अपने आचरणों को शुद्ध करो ॥३॥
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