ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 75/ मन्त्र 15
पर॑स्या॒ अधि॑ सं॒वतोऽव॑राँ अ॒भ्या त॑र । यत्रा॒हमस्मि॒ ताँ अ॑व ॥
स्वर सहित पद पाठपर॑स्याः । अधि॑ । स॒म्ऽवतः॑ । अव॑रान् । अ॒भि । आ । त॒र॒ । यत्र॑ । अ॒हम् । अस्मि॑ । तान् । अ॒व॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
परस्या अधि संवतोऽवराँ अभ्या तर । यत्राहमस्मि ताँ अव ॥
स्वर रहित पद पाठपरस्याः । अधि । सम्ऽवतः । अवरान् । अभि । आ । तर । यत्र । अहम् । अस्मि । तान् । अव ॥ ८.७५.१५
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 75; मन्त्र » 15
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
विषय - N/A
पदार्थ -
हे भगवन् ! (परस्याः) अन्य (संवतः) चोर डाकू आदिकों की सभा को (अधि) छोड़ और नष्ट कर । (अवरान्) तेरे अधीन हम लोगों की (अभ्यातर) ओर आ और (यत्र+अहं+अस्मि) मैं उपासक होऊँ । (तान्+अव) उनकी सहायता कर ॥१५ ॥
भावार्थ - जहाँ पर ईश्वरभक्त ऋषिगण विराजमान होते हैं, वहाँ अवश्य कल्याण होता है ॥१५ ॥
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