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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 72 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 72/ मन्त्र 10
    ऋषिः - हर्यतः प्रागाथः देवता - अग्निर्हर्वीषि वा छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    सि॒ञ्चन्ति॒ नम॑साव॒तमु॒च्चाच॑क्रं॒ परि॑ज्मानम् । नी॒चीन॑बार॒मक्षि॑तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सि॒ञ्चन्ति॑ । नम॑सा । अ॒व॒तम् । उ॒च्चाऽच॑क्रम् । परि॑ऽज्मानम् । नी॒चीन॑ऽबारम् । अक्षि॑तम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सिञ्चन्ति नमसावतमुच्चाचक्रं परिज्मानम् । नीचीनबारमक्षितम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सिञ्चन्ति । नमसा । अवतम् । उच्चाऽचक्रम् । परिऽज्मानम् । नीचीनऽबारम् । अक्षितम् ॥ ८.७२.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 72; मन्त्र » 10
    अष्टक » 6; अध्याय » 5; वर्ग » 15; मन्त्र » 5

    शब्दार्थ -
    वैज्ञानिक लोग (उच्चा चक्रम्) जिसके ऊपर चक्र लगा हो और (परिज्मानम्) चारों ओर भूमि हो तथा (नीचीनबारम्) नीचे पानी के द्वार हों ऐसे (अक्षितम्) कभी समाप्त न होनेवाले, अक्षय जल के भण्डाररूप (अवतम्) कूप को (नमसा) अन्न के लिए (सिञ्चन्ति) सींचते हैं, खेतों की सिंचाई करते हैं ।

    भावार्थ - वेद अखिल विद्याओं का भण्डार है, सभी ज्ञान और विज्ञानों का कोष है। महर्षि दयानन्द के शब्दों में, ‘वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है ।’ योगिराज अरविन्द घोष के शब्दों में, ‘आज तक जितने वैज्ञानिक आविष्कार हुए हैं और जो आविष्कार भविष्य में होंगे उन सबका मूल वेद में विद्यमान है।’ इस मन्त्र पर ध्यानपूर्वक मनन कीजिए । इसमे स्पष्ट ही यन्त्र - कूप (Tubewell) का वर्णन है । ट्यूब-वैल में ऊपर एक चक्र होता है, उस चक्र के साथ एक बहुत बड़ा पाइप होता है जिसका एक मुख ऊपर की ओर होता है और एक नीचे की ओर । नीचे का मुख जल के भण्डार कुएँ में लगा होता है । यन्त्र के चलने पर यह नीचे से पानी खींचना शुरू कर देता है । पानी पर्याप्त मात्रा में ऊपर आता है। कुएँ के चारों ओर भूमि = खेत होते हैं । इस प्रकार के कूपों से खेतों की सिंचाई की जाती है ।

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