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ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 55/ मन्त्र 4
स इद्वने॑ नम॒स्युभि॑र्वचस्यते॒ चारु॒ जने॑षु प्रब्रुवा॒ण इ॑न्द्रि॒यम्। वृषा॒ छन्दु॑र्भवति हर्य॒तो वृषा॒ क्षेमे॑ण॒ धेनां॑ म॒घवा॒ यदिन्व॑ति ॥
स्वर सहित पद पाठसः । इत् । वने॑ । न॒म॒स्युऽभिः॑ । व॒च॒स्य॒ते॒ । चारु॑ । जने॑षु । प्र॒ऽब्रु॒वा॒णः । इ॒न्द्रि॒यम् । वृषा॑ । छन्दुः॑ । भ॒व॒ति॒ । ह॒र्य॒तः । वृषा॑ । क्षेमे॑ण । धेना॑म् । म॒घवा॑ । यत् । इन्व॑ति ॥
स्वर रहित मन्त्र
स इद्वने नमस्युभिर्वचस्यते चारु जनेषु प्रब्रुवाण इन्द्रियम्। वृषा छन्दुर्भवति हर्यतो वृषा क्षेमेण धेनां मघवा यदिन्वति ॥
स्वर रहित पद पाठसः। इत्। वने। नमस्युऽभिः। वचस्यते। चारु। जनेषु। प्रऽब्रुवाणः। इन्द्रियम्। वृषा। छन्दुः। भवति। हर्यतः। वृषा। क्षेमेण। धेनाम्। मघवा। यत्। इन्वति ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 55; मन्त्र » 4
अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
अष्टक » 1; अध्याय » 4; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
Bhajan -
वैदिक भजन १०९८ वां
राग देसी
( ४ रागों को मिलाकर यह राग बना)
असावरी, सारंग, तिलककामोद,काफी
गायन समय दिन का प्रथम प्रहर
4:00 से 7:00 तक
ताल अद्धा 16 मात्रा
आज आनन्द पायें प्रभु भजन से
प्रेम की तान है भगवान
आज........
तेरा भजन एकांत में भाये
प्रेम से जो उपदेश सिखाए
दे उपदेश का दान।।
आज........
भीड़-भड़क्का बहिर्मुख कराये
बात अन्दर की ना सुन पाये
वन में गायें प्रभु- गान ।।
आज..........
जो भगवान की कामना करता
सुखवर्षा प्रभु रक्षा करता
हरता प्रभु अज्ञान ।।
आज.........
मिले एकांत में भक्ति की शक्ति
प्रभु उपदेश की देते युक्ति
बनता भक्त निष्काम ।।
आज.........
क्षेम के संग प्रभु वाणी देते
क्षेम भार वही ढ़ो लेते
देव सा बना शक्तिमान
आज.........
अब तेजस्वी उस भगवान पे
श्रद्धा लाओ भजन- गान से
बनो दिव्य गुणवान ।।
आज.......
भजनों को एकांत में गाकर
वीर्य पराक्रम ज्ञान ध्यान पाकर
समाधान करो आधान।।
आज..........
१०.६.२०२३
१०.१० प्रातः
शब्दार्थ:-
बहिर्मुख=बाहर की ओर
युक्ति=ढंग, तरकीब
क्षेम=कल्याण
आधान=स्थापन, रखना
समाधान=मन को एकाग्र करके ध्यान में लगाना, समाधि
🕉🙏प्रथम श्रृंखला ९१ वां वैदिक भजन और अब तक का 1098 वां वैदिक भजन🎧🙏
🕉🧘♂️वैदिक श्रोताओं को हार्दिक धन्यवाद एवं🎧🙏 शुभकामनाएं
Vyakhya -
वन में भजन
भक्त लोग एकांत में ही भगवान का भजन करना चाहते हैं, एकांत में ही उसका उपदेश करते हैं, इसका भी एक कारण 'चारु जनेषु प्रब्रुवाण इन्द्रियम् '=लोगों में सुन्दर ईश्वरप्रेम का उपदेश करता है। एकांत में ही भगवान का, अंतर्यामी भगवान का उपदेश सुनाई देता है।
भीड़- भड़क्के में रहने से बहिर्मुख हो जाती है, अन्दर की बात सुनाई नहीं देती, अतः ' स इद्वने नमस्युभिर्वचस्यते=भक्त लोग वन में ही उसकी बातचीत=चर्चा करना चाहते हैं। अपने जैसों के साथ ही बातचीत हो सकती है। जैसा कि महर्षि गौतम जी ने कहा है ' 'ज्ञानग्रहणाभ्यासस्तद्विद्यैश्च सह संवाद:'
[न्याय दर्शन ४.२.४७]=आत्मविद्या का ग्रहण धारण अभ्यास यह सब कुछ अध्यात्म विद्या-वेत्ताओं के साथ संवाद करने से बन पड़ते हैं। अज्ञानी के साथ बातचीत का क्या लाभ? जो भगवान की कामना करता है, भगवान भी उसका
' वृषा छन्दुर्भवति हर्यत: '=सुखवर्षा कुकर रक्षक होता है। वेद में कहा है- मा....जरितु: काममूनयी:,[ऋ॰१.५३.३]
वह भक्तों की कामना अधूरी नहीं रहने देता। भगवान एकांत में केवल अपनी भक्ति की शक्ति का ही उपदेश नहीं करता, वरन -- ' क्षेमेण देना 'अपने ऊपर ले लेता है। वह तो
' प्र वीर्येण देवताति चेकीते [ऋ•१.५५.३]
शक्ति के कारण सब देवों से, दानियों से, दिव्य गुणवालों से बढ़कर जाना जाता है।
इसलिए--' अधा च न श्रद्दधति त्विषीमत '
इन्द्राय ' ऋ•१.५५.५= अब तो उस तेजस्वी भगवान पर श्रद्धा करो, और एकांत में जाकर उसके भजन के द्वारा अपने अन्दर बल, वीर्य, पराक्रम, ज्ञान, ध्यान, समाधान का आधान करो।
वैदिक मन्त्र
स इद्वने नमस्युभिर्वचस्यते चारु जनेषु प्रब्रुवाण इन्द्रियम्।
वृषा छन्दुर्भवति हर्यतो क्षेमेण धेनां मघवा यदिन्वति।। ऋ•१.५५.४