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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 96 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 96/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - सरस्वान् छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ये ते॑ सरस्व ऊ॒र्मयो॒ मधु॑मन्तो घृत॒श्चुत॑: । तेभि॑र्नोऽवि॒ता भ॑व ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । ते॒ । स॒र॒स्वः॒ । ऊ॒र्मयः॑ । मधु॑ऽमन्तः । घृ॒त॒ऽश्चुतः॑ । तेभिः॑ । नः॒ । अ॒वि॒ता । भ॒व॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये ते सरस्व ऊर्मयो मधुमन्तो घृतश्चुत: । तेभिर्नोऽविता भव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । ते । सरस्वः । ऊर्मयः । मधुऽमन्तः । घृतऽश्चुतः । तेभिः । नः । अविता । भव ॥ ७.९६.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 96; मन्त्र » 5
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 20; मन्त्र » 5

    Bhajan -

     वैदिक मन्त्र
    ये तेसरस्व ऊर्मयो मधुयन्तो घृतश्चुत: । 
    तेभिर्नोषऽसविता भव।। ऋ ॰ ७.९६.५
                           ‌ वैदिक भजन ११ 
                               राग छायानट
                  गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर
                          ताल कहरवा ८ मात्रा
    हे पर्जन्य हे मेघ तू भरा रस से 
    तू सरस्वान है 
    तेरी वर्षा की मनभावनी 
    निर्मल सी फुहारें निष्काम हैं
     है पर्जन्य............. 
    हे पवन तू रसीला है 
    मन्द- मन्द बहती है लहर 
    आल्हादायक मधुमय 
    तेरा स्पर्श बड़ा है प्रवर 
    जलकणों से युक्त देता है सुख 
    संतृप्त का मिलता दान है 
    हे पर्जन्य....... 
    हे प्रभु परमेश्वर हितु
    तुम भी हो रसवान्
    तुम्हरे रस की गंगा में
    ऋषि करते हैं स्नान
    अनुभव बताते रसो वै स:
    दिव्याश रस ये अमृत समान है
    हे पर्जन्य........ 
    जिन्हें मिलता है यह दिव्य रस
    वे पाते हैं आनन्द
    ब्रह्मानन्द अतुलनीय है
    इसकी महिमा है अनन्त
    इसकी लहर है दिव्य
    अति सुखद शान्त
    ऋषियों के पास प्रमाण है
    हे पर्जन्य.......... 
    धन धान्य व भौतिक सुख 
    कहलाता है मनुष्यानन्द 
    मिले ऐसे जो सौ आनन्द 
    कहलाता गन्धर्वानन्द 
    ऐसे सौ आनद है पितरानन्द 
    ऋषियों का कहा अनुध्यान है ।। 
    है पर्जन्य............ 
                                भाग२
    सौ पितर-आनन्द मिलकर 
    कहलाता आजान- देवानन्द
    ऐसे सौ आनंद मिलकर 
    बनता है देव कर्मानन्द
    फिर सौ आनन्द का है इन्दिरानन्द
    ऋषियों का साधित यह ज्ञान है।। 
    हे पर्जन्य........ 
    सौ  इन्दिरानन्द मिलकर 
    बनता बृहस्पत्यानन्द
    सौ   बृहस्पति आनन्द से 
    बनता है प्रजापत्यानन्द
    सौ  प्रजापति का आनन्द 
    ब्रह्मानन्द का ही धाम है। 
    हे पर्जन्य.......... 
    कितना महान है ब्रह्मानन्द
    आत्मा का है पूर्ण आनन्द
    रसागार है यह प्रभु का
    आत्मा बनता है प्रपन्न
    हे सरस्वान् दो आनन्द प्रदान
    इसका वरद सुखद पवि स्नान है।। 
    हे पर्जन्य........... 
                           १०.९.२०२३
        ‌ ‌‌‌                  २१.४५ रात्रि
    सरस्वान= रस से भरा
    आह्लाद= प्रसन्नता से ओत-प्रोत
    संतृप्ति= संतोष
    रसो वै स:= वह रस से भरा है
    अतुलनीय= जिसे तोला ना जा सके
    अनुध्यान=चिन्तन
    साधित= साधा हुआ, सिद्ध किया हुआ
    रसागार = रसों का खजाना
    प्रपन्न= शरणागत, पहुंचा हुआ
    वरद= वरदायक
    पवि = शुद्ध, निर्मल
    🕉🧘‍♂️
    द्वितीय श्रृंखला का १३७ वां  वैदिक भजन और अब तक का क्रमशः ११४४ वां वैदिक भजन
    🕉🧘‍♂️ वैदिक श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएं❗🙏
     

    Vyakhya -

    सरस्वान् की सरस लहरियॉं + English

    हे पर्जन्य! हे बादल! तू सरस्वान है, रस से भरा हुआ है। तेरी वर्षा की फुहारें बड़ी मधुर मनभावनी और निर्मल, शीतल, जल को भूमि पर लाने वाली हैं। नित्य बरसात में गगन में छाने वाला  तू उनके द्वारा हमारी रक्षा करता रह। 
    हे पवन ! तू भी सरस्वान है, रसीला है। तेरी जलकणों से युक्त मन्द! मन्द लहरियॉं बड़ी ही मधुमयअल्हाददायक तथा शक्ति प्रदान करने वाली हैं। उनसे तू हमें सुख- संतृप्ति प्रदान करता रह।
    हे परमेश प्रभु ! तुम भी सरस्वान् हो, रसमय हो। तुम्हारे रस की गंगा में स्नान करने वाले ऋषि ने अपना अनुभव बताते हुए ठीक ही कहा है--'रसो वै स:'। जो तुम्हारे दिव्य रस की अनुभूति का लेता है वह आनन्दी हो जाता है। तुमसे मिलने वाले ब्रह्मानंद रस की परिभाषा करना असंभव है,वह अवरणीय है, अतुलनीय है। फिर भी ऋषि गणना करते हुए कहते हैं-- यदि किसी सर्वांगसुन्दर,सुदृढ़, बलिष्ठ युवक को धन-धान्य से परिपूर्ण सारी पृथ्वी मिल जाए तब उसे जो आनंन्द होता है वह मानुष आनन्द है। ऐसे सौ आनंद मिलकर एक मनुष्य-गन्धर्वों का आनन्द बनता है। ऐसे ऐसे सौआनन्द मिलकर एक देव गंधर्वों का  आनन्द बनता है। ऐसे- ऐसे सौ आनद मिलकर एक चिर लोक- पितरों का आनन्द होता है। ऐसे-ऐसे सौ आनन्द मिलकर एक आजान देवों का आनन्द होता है। ऐसे ऐसे सो आनन्द मिलकर एक कर्मदेवों का आनन्द होता है। ऐसे- ऐसे आनन्द मिलकर एक देवों का आनन्द होता है। ऐसे ऐसे सौ आनन्द मिलकर एक इन्द्र का आनन्द होता है। ऐसे ऐसे सौ आनन्द मिलकर एक बृहस्पति का आनन्द होता है। फिर ऐसे- ऐसे सो आनन्द मिलकर एक प्रजापति का आनन्द होता है। पुनः प्रजापति के सौ आनन्द मिलकर एक ब्रह्मानद बनता है । 
    तो कितना महान है ब्रह्मानन्द ! हे रसागार प्रभु! तुम्हारा उपासक तुम्हारे दिव्या मधुर आल्हादक शान्तिप्रद आनद रस की लहरियों से उतरंगित एवं एवं चमत्कृत होकर कृत कृत्य हो जाता है। हे सरस्वान प्रभु! अपने दिव्य आनन्दरस की लहरियां हमें भी प्राप्त कराओ  हमें भी अपना सखा बनाकर हमारी अंगुली पड़कर अपनी उन आनन्द की तरंगिणियों में तैराकर डूबकियां लगाकर कृतार्थ करो। 
                               

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