Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1113
ऋषिः - वामदेवः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - द्विपदा विराट्
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम -
1
प्र꣡ व इन्द्राय वृत्रहन्तमाय विप्राय गाथं गायत यं जुजोषते ॥१११३॥
स्वर सहित पद पाठप्र꣢ । वः꣣ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । वृ꣣त्रह꣡न्त꣢माय । वृ꣣त्र । ह꣡न्त꣢꣯माय । वि꣡प्रा꣢꣯य । वि । प्रा꣣य । गाथ꣢म् । गा꣣यत । य꣢म् । जु꣣जो꣡ष꣢ते ॥१११३॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र व इन्द्राय वृत्रहन्तमाय विप्राय गाथं गायत यं जुजोषते ॥१११३॥
स्वर रहित पद पाठ
प्र । वः । इन्द्राय । वृत्रहन्तमाय । वृत्र । हन्तमाय । विप्राय । वि । प्राय । गाथम् । गायत । यम् । जुजोषते ॥१११३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1113
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 7; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 24; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 7; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
Acknowledgment
पदार्थ -
(वः) हे उपासक जनो! तुम*111 जिस परमात्मा की ज्योति सब ज्योतियों की ज्योति है उस परमात्मा की (प्र) प्रार्थना करो (अर्च) ‘अर्चत’ अर्चना—स्तुति करो (उप) उपासना करो॥४॥
टिप्पणी -
[*111. ‘वः’ विभक्तिव्यत्ययः।] यह सायणमत में एक मन्त्र है। परन्तु माधव ने अपने विवरण में पूर्वार्चिक में आये तीन मन्त्रों का प्रतीक रूप माना है जो मन्त्र निम्न हैं— (देखो अर्थव्याख्या मन्त्र संख्या ४४६)
विशेष - ऋषिः—सम्पातः (स्तुति प्रार्थना उपासना का मेल करने वाला)॥ देवता—उषाः (परमात्मा की ज्योति—झलक झाँकी)॥ छन्दः—द्विपदा त्रिष्टुप् प्रतीकपृष्ट्या॥<br>
इस भाष्य को एडिट करें