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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 212
ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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इ꣣मे꣡ त꣢ इन्द्र꣣ सो꣡माः꣢ सु꣣ता꣢सो꣣ ये꣢ च꣣ सो꣡त्वाः꣢ । ते꣡षां꣢ मत्स्व प्रभूवसो ॥२१२

स्वर सहित पद पाठ

इ꣣मे꣢ । ते꣣ । इन्द्र । सो꣡माः꣢꣯ । सु꣣ता꣡सः꣢ । ये । च꣣ । सो꣡त्वाः꣢꣯ । ते꣡षा꣢꣯म् । म꣣त्स्व । प्रभूवसो । प्रभु । वसो ॥२१२॥


स्वर रहित मन्त्र

इमे त इन्द्र सोमाः सुतासो ये च सोत्वाः । तेषां मत्स्व प्रभूवसो ॥२१२


स्वर रहित पद पाठ

इमे । ते । इन्द्र । सोमाः । सुतासः । ये । च । सोत्वाः । तेषाम् । मत्स्व । प्रभूवसो । प्रभु । वसो ॥२१२॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 212
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 10;
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पदार्थ -
(प्रभूवसो-इन्द्र) संसार में प्रभू—अपनी स्वामिनी शक्तियों के बसाने वाले परमात्मन्! (ते) तेरे लिये (इमे सोमाः सुतासः) ये उपासनारस हमारे द्वारा निष्पादित हैं (च) और (ये सोत्वाः) जो उपासनारस निष्पादन किये जाने वाले हैं “कृत्यार्थे तवैकेन्केन्यत्वनः” [अष्टा॰ ३.४.१४] ‘त्वन् प्रत्ययः’ (तेषां मत्स्व) उनके प्रतीकार में—उनसे हम पर प्रसन्न हो।

भावार्थ - संसार में अपनी स्वामिनी शक्तियों को बसाने वाले परमात्मन्! हमारे द्वारा जो उपासनारस निष्पन्न किए हैं या किये जाने वाले हैं उनके द्वारा तू हम पर प्रसन्न हो जिससे हम आगे-आगे बढ़ते हुए तेरे साथ समागम लाभ लेते रहें॥९॥

विशेष - ऋषिः—वामदेवः (वननीय—उपासनीय देव वाला)॥<br>

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