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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 650
ऋषिः - प्रजापतिः
देवता - लिङ्गोक्ताः
छन्दः - पदपङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम - 0
1
ए꣣वा꣢ह्येऽ३ऽ३ऽ३व꣡ । ए꣣वा꣡ ह्य꣢ग्ने । ए꣣वा꣡ही꣢न्द्र । ए꣣वा꣡ हि पू꣢꣯षन् । ए꣣वा꣡ हि दे꣢꣯वाः ॐ ए꣣वा꣡हि दे꣢꣯वाः ॥६५०
स्वर सहित पद पाठए꣣व꣢ । हि । ए꣣व꣢ । ए꣢व । हि । अ꣣ग्ने । एव꣢ । हि । इ꣣न्द्र । एव꣢ । हि । पू꣣षन् । एव꣢ । हि । दे꣣वाः । ॐ ए꣣वा꣡हिदे꣢꣯वाः ॥६५०॥
स्वर रहित मन्त्र
एवाह्येऽ३ऽ३ऽ३व । एवा ह्यग्ने । एवाहीन्द्र । एवा हि पूषन् । एवा हि देवाः ॐ एवाहि देवाः ॥६५०
स्वर रहित पद पाठ
एव । हि । एव । एव । हि । अग्ने । एव । हि । इन्द्र । एव । हि । पूषन् । एव । हि । देवाः । ॐ एवाहिदेवाः ॥६५०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 650
(कौथुम) महानाम्न्यार्चिकः » प्रपाठक » ; अर्ध-प्रपाठक » ; दशतिः » ; मन्त्र » 10
(राणानीय) महानाम्न्यार्चिकः » अध्याय » ; खण्ड » ;
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(कौथुम) महानाम्न्यार्चिकः » प्रपाठक » ; अर्ध-प्रपाठक » ; दशतिः » ; मन्त्र » 10
(राणानीय) महानाम्न्यार्चिकः » अध्याय » ; खण्ड » ;
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पदार्थ -
(एव हि-एव) हे परमात्मन्! ऐसे ही कहे गुणों वाला है (एवं हि-अग्ने) ऐसे ही अग्नि नाम से अग्रणेता परमात्मन् तू ही है (एव हि-इन्द्र) ऐसा ही ऐश्वर्य वाला इन्द्र नाम से तू है (एव हि पूषन्) ऐसा ही पुष्टिकर्ता पूषा नाम से परमात्मन् तू है (एव हि देवाः) ऐसे ही दिव्यगुणों से युक्त तू भिन्न-भिन्न देव नामों से कहा परमात्मन् तू ही है।
भावार्थ - हे परमात्मन्! इन मन्त्रों में उपासकों की वाणी में संसार में तेरा ही कीर्तन है, कहीं पूर्ण पुरुष नाम से तेरी पूर्णता स्मरण है, कहीं अग्नि नाम से अग्रणिरूप में तेरा स्तवन है। कहीं इन्द्र नाम से तेरे ऐश्वर्यवान् रूप का प्रशंसन है, कहीं पूषा नाम से पोषणकर्ता के रूप में तेरा यशोगान है, कहीं बहुवचन में समस्त देवधर्मों वाला मानकर तेरी स्तुति है, इस प्रकार समस्त दिव्यगुणों वाले तुझ परमात्मा की स्तुति-प्रार्थना-उपासना करते हैं, करते रहें॥१०॥
विशेष - <br>
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