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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 41 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 41/ मन्त्र 20
    ऋषिः - अत्रिः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    सिष॑क्तु न ऊर्ज॒व्य॑स्य पु॒ष्टेः ॥२०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सिस॑क्तु । नः॒ । ऊ॒र्ज॒व्य॑स्य । पु॒ष्टेः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सिषक्तु न ऊर्जव्यस्य पुष्टेः ॥२०॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सिषक्तु। नः। ऊर्जव्यस्य। पुष्टेः ॥२०॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 41; मन्त्र » 20
    अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 16; मन्त्र » 5

    भावार्थ - जो जगावर उपकार करणारा असतो तोच संपूर्ण विद्येशी संलग्न असतो. ॥ २० ॥

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