ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 41/ मन्त्र 20
सिष॑क्तु न ऊर्ज॒व्य॑स्य पु॒ष्टेः ॥२०॥
स्वर सहित पद पाठसिस॑क्तु । नः॒ । ऊ॒र्ज॒व्य॑स्य । पु॒ष्टेः ॥
स्वर रहित मन्त्र
सिषक्तु न ऊर्जव्यस्य पुष्टेः ॥२०॥
स्वर रहित पद पाठसिषक्तु। नः। ऊर्जव्यस्य। पुष्टेः ॥२०॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 41; मन्त्र » 20
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
अष्टक » 4; अध्याय » 2; वर्ग » 16; मन्त्र » 5
भावार्थ - जो जगावर उपकार करणारा असतो तोच संपूर्ण विद्येशी संलग्न असतो. ॥ २० ॥
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