ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 36/ मन्त्र 4
शु॒म्भमा॑न ऋता॒युभि॑र्मृ॒ज्यमा॑नो॒ गभ॑स्त्योः । पव॑ते॒ वारे॑ अ॒व्यये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठशु॒म्भमा॑नः । ऋ॒त॒युऽभिः॑ । मृ॒ज्यमा॑नः । गभ॑स्त्योः । पव॑ते । वारे॑ । अ॒व्यये॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
शुम्भमान ऋतायुभिर्मृज्यमानो गभस्त्योः । पवते वारे अव्यये ॥
स्वर रहित पद पाठशुम्भमानः । ऋतयुऽभिः । मृज्यमानः । गभस्त्योः । पवते । वारे । अव्यये ॥ ९.३६.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 36; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 26; मन्त्र » 4
पदार्थ -
हे परमात्मन् ! आप (ऋतायुभिः) सत्य को चाहनेवाले विद्वानों से (गभस्त्योः) अपनी शक्तियों द्वारा स्थित होते हुए (मृज्यमानः) उपास्य हो (शुम्भमानः) सर्वोपरि शोभा को प्राप्त होते हुए (अव्यये वारे पवते) अपने उपासकों के लिये अव्यय मुक्ति पद प्रदान करते हैं ॥४॥
भावार्थ - जो पुरुष शुभ काम करते हुए श्रवण मनन निदिध्यासनादि साधनों में युक्त रहते हैं, वे मुक्ति पद के अधिकारी होते हैं ॥४॥
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