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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 85 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 85/ मन्त्र 2
    ऋषिः - वेनो भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    अ॒स्मान्त्स॑म॒र्ये प॑वमान चोदय॒ दक्षो॑ दे॒वाना॒मसि॒ हि प्रि॒यो मद॑: । ज॒हि शत्रूँ॑र॒भ्या भ॑न्दनाय॒तः पिबे॑न्द्र॒ सोम॒मव॑ नो॒ मृधो॑ जहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अस्मान् । स॒ऽम॒र्ये । प॒व॒मा॒न॒ । चो॒द॒य॒ । दक्षः॑ । दे॒वाना॑म् । असि॑ । हि । प्रि॒यः । मदः॑ । ज॒हि । शत्रू॑न् । अ॒भि । आ । भ॒न्द॒ना॒ऽय॒तः । पिब॑ । इ॒न्द्र॒ । सोम॑म् । अव॑ । नः॒ । मृधः॑ । ज॒हि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अस्मान्त्समर्ये पवमान चोदय दक्षो देवानामसि हि प्रियो मद: । जहि शत्रूँरभ्या भन्दनायतः पिबेन्द्र सोममव नो मृधो जहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अस्मान् । सऽमर्ये । पवमान । चोदय । दक्षः । देवानाम् । असि । हि । प्रियः । मदः । जहि । शत्रून् । अभि । आ । भन्दनाऽयतः । पिब । इन्द्र । सोमम् । अव । नः । मृधः । जहि ॥ ९.८५.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 85; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 10; मन्त्र » 2

    पदार्थ -
    (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (समर्ये) वैदिक यज्ञों में आप (अस्मान्) हमको (चोदय) प्रेरणा करें। आप (देवानां) विद्वानों के (दक्षः, असि) प्रेरक हैं। (हि) क्योंकि (प्रियो मदः) आनन्द के प्यारे हैं। (शत्रूञ्जहि) आप अन्यायकारी शुत्रओं का नाश करें और (अभ्या) सब प्रकार से हमको प्राप्त होएँ। (भन्दनायतः) उपासक के (सोमं) स्तुति को (पिब) आप ग्रहण करें और (नो मृधः) हमारे यज्ञों से विघ्नकारियों को (अव, जहि) दूर करें ॥२॥

    भावार्थ - जो लोग परमात्मपरायण होकर परमात्मा के स्वरूप में ध्यान द्वारा प्रविष्ट होते हैं, परमात्मा उन्हें अवश्यमेव ग्रहण करता है ॥२॥

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