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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1527
ऋषिः - केतुराग्नेयः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
1
अ꣣ग्नि꣡ꣳ हि꣢न्वन्तु नो꣣ धि꣢यः꣣ स꣡प्ति꣢मा꣣शु꣡मि꣢वा꣣जि꣡षु꣢ । ते꣡न꣢ जेष्म꣣ ध꣡नं꣢धनम् ॥१५२७॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣ग्नि꣢म् । हि꣣न्वन्तु । नः । धि꣡यः꣢꣯ । स꣡प्ति꣢꣯म् । आ꣣शु꣢म् । इ꣣व । आजि꣡षु꣢ । ते꣡न꣢꣯ । जे꣣ष्म । ध꣡नं꣢꣯धनम् । ध꣡न꣢꣯म् । ध꣣नम् ॥१५२७॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निꣳ हिन्वन्तु नो धियः सप्तिमाशुमिवाजिषु । तेन जेष्म धनंधनम् ॥१५२७॥
स्वर रहित पद पाठ
अग्निम् । हिन्वन्तु । नः । धियः । सप्तिम् । आशुम् । इव । आजिषु । तेन । जेष्म । धनंधनम् । धनम् । धनम् ॥१५२७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1527
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 4; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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विषय - प्रत्येक संग्राम में विजय
पदार्थ -
(इव) = जैसे आजिषु युद्धों में (आशुं सप्तिम्) = शीघ्रगामी घोड़े की ओर हमारे विचार जाते हैं, उसी प्रकार (नः) = हमारी (धियः) = बुद्धियाँ (अग्निम्) = उस (सर्वशत्रु) = संहारक रुद्र की ओर (हिन्वन्तु) = जाएँ। (तेन) = उस रुद्र के साहाय्य से (धनंधनम्) = प्रत्येक संग्राम को (जेष्म) = हम जीत जाएँ। [धनं=contest धन्वतेर्वधकर्मणः]।
यह ठीक है कि आजकल युद्धों में घोड़ों का उतना महत्त्व नहीं रहा, परन्तु शक्ति का मापक अभी तक घोड़ा ही है। युद्ध के समय अवश्य घोड़े का स्मरण होता है । इसी प्रकार इस संसार संग्राम में हम सदा उस प्रभु का चिन्तन करंक – उस प्रभु की सहायता से हम प्रत्येक संग्राम में अवश्य विजयी होंगे। 'धन' का अर्थ सामान्य धन करके यह अर्थ भी हो सकता है कि हम प्रभु की सहायता से सब धनों के विजेता हों । वस्तुतः धनों के विजेता तो प्रभु ही हैं—'अहं धनानि संजयामि शश्वत:' । मुझमें भी जितनी प्रभु-शक्ति कार्य करेगी, उतना ही मैं भी धनों का विजेता बन पाऊँगा। धनों का व संग्रामों का विजेता - विजय पताका को फहरानेवाला - वह स्वयं 'केतु' [flag] नामवाला हो गया है। शत्रुओं के लिए, रुद्र के समान भयङ्कर होने से यह 'आग्नेय' है
भावार्थ -
हम सदा प्रभु का स्मरण करें तो सदा विजयी होंगे ।
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