Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1665
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
1
स꣢ रे꣣वाँ꣡ इ꣢व वि꣣श्प꣢ति꣣र्दै꣡व्यः꣢ के꣣तुः꣡ शृ꣢णोतु नः । उ꣣क्थै꣢र꣣ग्नि꣢र्बृ꣣ह꣡द्भा꣢नुः ॥१६६५॥
स्वर सहित पद पाठसः꣢ । रे꣣वा꣢न् । इ꣣व । विश्प꣡तिः꣢ । दै꣡व्यः꣢꣯ । के꣡तुः꣢ । शृ꣣णोतु । नः । उक्थैः꣢ । अ꣣ग्निः꣢ । बृ꣣ह꣡द्भा꣢नुः । बृ꣣ह꣢त् । भा꣣नुः ॥१६६५॥
स्वर रहित मन्त्र
स रेवाँ इव विश्पतिर्दैव्यः केतुः शृणोतु नः । उक्थैरग्निर्बृहद्भानुः ॥१६६५॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । रेवान् । इव । विश्पतिः । दैव्यः । केतुः । शृणोतु । नः । उक्थैः । अग्निः । बृहद्भानुः । बृहत् । भानुः ॥१६६५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1665
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
Acknowledgment
विषय - न्यासी=ट्रस्टी न कि धनी ['रेवान् इव, ' न कि 'रेवान्' ]
पदार्थ -
प्रभु कहते हैं कि (सः) = वह व्यक्ति १. (रेवान् इव) = बड़ा धनवान्-सा होता है । 'सा' [इव] का प्रयोग इसलिए है कि वह अपने को धनी थोड़े ही मानता है— उसे तो यह विचार बना रहता है कि धन प्रभु का है—मैं तो केवल उसका ट्रस्टी हूँ, उसकी प्रेरणा के अनुसार उसके धन का केवल विनियोग करनेवाला हूँ । २. (विश्पतिः) = यह प्रजाओं का पालन करनेवाला – रक्षक होता है। प्रभु के दिये हुए धन को प्रजा के पालन में विनियुक्त करता है | ३. (दैव्यः) =[देवस्य अयम्] देव का होता है—यह प्रभु का बनकर रहता है— प्रकृति का नहीं बन जाता । ४. (केतुः) = ज्ञान का पुञ्ज होता हैअथवा [कित निवासे रोगापनयने च] उत्तम निवासवाला होता है तथा रोगों से दूर रहता है । ५. (अग्निः) = यह सदा ‘अग्रे-णी:'=होता है— अपने को आगे और आगे प्राप्त करानेवाला होता है । ६. (बृहत् भानुः) = अत्यन्त दीप्तिमय होता है - इसका ज्ञान इसकी वृद्धि का कारण बनता है। प्रश्न यह है कि ऐसा कौन बनता है ? उत्तर यह है कि
१. (उक्थैः) = स्तोत्रों के साथ जो (नः शृणोतु) = हमारी वेदवाणी को सुनता है, अर्थात् अपने जीवन को ‘रेवान् इव' आदि विशेषणों से युक्त बनाने के लिए आवश्यक है कि १. जीव प्रभु के स्तोत्रों का गायन करे– प्रभु-नाम का स्मरण करे – प्रभु का उपासक हो तथा २. वह प्रभु की वेदवाणी को सुने और उसके द्वारा अपने ज्ञान को बढ़ाने का प्रयत्न करे। जो भी व्यक्ति इस प्रकार अपने जीवन में भक्तियोग व ज्ञानयोग को समन्वित करता है वह उल्लिखित प्रकार का सुन्दर जीवन प्राप्त करके सचमुच अपने जीवन को सुखी बनाता है और इस मन्त्र का ऋषि='शुनः शेप' होता है।
भावार्थ -
हम प्रभु का स्तवन करें, उसकी वेदवाणी को सुनें और 'रेवान् इव' बनें [ट्रस्टी], न कि रेवान् [धनी] ।
इस भाष्य को एडिट करें