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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 835
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
1

आ꣡ न꣢ इन्दो शात꣣ग्वि꣢नं꣣ ग꣢वां꣣ पो꣢ष꣣ꣳ स्व꣡श्व्य꣢म् । व꣢हा꣣ भ꣡ग꣢त्तिमू꣣त꣡ये꣢ ॥८३५॥

स्वर सहित पद पाठ

आ꣡ । नः꣣ । इन्दो । शतग्वि꣡न꣢म् । श꣣त । ग्वि꣡न꣢꣯म् । ग꣡वा꣢꣯म् । पो꣡ष꣢꣯म् । स्व꣡श्व्य꣢꣯म् । सु꣣ । अ꣡श्व्य꣢꣯म् । व꣡ह꣢꣯ । भ꣡ग꣢꣯त्तिम् । ऊ꣣त꣡ये꣢ ॥८३५॥


स्वर रहित मन्त्र

आ न इन्दो शातग्विनं गवां पोषꣳ स्वश्व्यम् । वहा भगत्तिमूतये ॥८३५॥


स्वर रहित पद पाठ

आ । नः । इन्दो । शतग्विनम् । शत । ग्विनम् । गवाम् । पोषम् । स्वश्व्यम् । सु । अश्व्यम् । वह । भगत्तिम् । ऊतये ॥८३५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 835
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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पदार्थ -

हे (इन्दो) = सोम! (नः) = हमें (शतग्विनम्) = [शतं गच्छति] सौ वर्षपर्यन्त चलनेवाले (गवां पोषम्) = ज्ञानेन्द्रियों के पोषण को तथा (स्वश्व्यम्) = [सु+अश्व+य] उत्तम कर्मेन्द्रियों की शक्ति को आवह प्राप्त कराइए। सोम की रक्षा से सौ-के-सौ वर्ष तक ज्ञानेन्द्रियों की शक्ति बनी रहती है और कर्मेन्द्रियाँ भी बड़ी उत्तमता से अपने-अपने व्यापारों में लगी रहती हैं ।

हे सोम ! तू (ऊतये) = हमारी रक्षा के लिए (भगत्तिम्) = भग के दान को (आवह) = प्राप्त करा । भग का अभिप्राय ‘विज्ञानैश्वर्य, वीर्य, यश- श्री, ज्ञान व वैराग्य' है। ये छह वस्तुएँ हमारे जीवनों को बड़ा सुन्दर बनानेवाली हों । हमारे जीवन का प्रारम्भ विज्ञान के ऐश्वर्य से परिपूर्ण हो, जीवन का मध्य यश और श्री से सम्पन्न हो तथा अन्त ज्ञान और वैराग्य से सुशोभित हो ।

भावार्थ -

सोम-रक्षा से हमारी इन्द्रियाँ सौ वर्षपर्यन्त कर्मक्षम बनी रहें तथा हमारा जीवन षड्विध भग से सुभग बनें ।

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