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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 125 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 125/ मन्त्र 5
अ॒हमे॒व स्व॒यमि॒दं व॑दामि॒ जुष्टं॑ दे॒वेभि॑रु॒त मानु॑षेभिः । यं का॒मये॒ तंत॑मु॒ग्रं कृ॑णोमि॒ तं ब्र॒ह्माणं॒ तमृषिं॒ तं सु॑मे॒धाम् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒हम् । ए॒व । स्व॒यम् । इ॒दम् । व॒दा॒मि॒ । जुष्ट॑म् । दे॒वेभिः॑ । उ॒त । मानु॑षेभिः । यम् । का॒मये॑ । तम्ऽत॑म् । उ॒ग्रम् । कृ॒णो॒मि॒ । तम् । ब्र॒ह्माण॑म् । तम् । ऋषि॑म् । तम् । सु॒ऽमे॒धाम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः । यं कामये तंतमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम् ॥
स्वर रहित पद पाठअहम् । एव । स्वयम् । इदम् । वदामि । जुष्टम् । देवेभिः । उत । मानुषेभिः । यम् । कामये । तम्ऽतम् । उग्रम् । कृणोमि । तम् । ब्रह्माणम् । तम् । ऋषिम् । तम् । सुऽमेधाम् ॥ १०.१२५.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 125; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 7; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
पदार्थ -
पदार्थ = ( अहम् एव स्वयम् ) = मैं आप ही ( इदम् वदामि ) = यह कहता हूँ, ( जुष्टम् देवेभि: ) = जो वचन विद्वानों ने प्रेम से सुना ( उत मानुषेभि: ) = और सब मनुष्यों ने भी प्रीतिपूर्वक सेवन किया । ( यं कामये तं तम् उग्रं कृणोमि ) = जिस-जिसको मैं चाहता हूँ उस उसको तेजस्वी क्षत्रिय बनाता हूँ, ( तं ब्रह्माणम् ) = उसको ब्रह्मा, चारों वेदों का वक्ता ( तं ऋषिम् ) = उसको ऋषि ( तं सुमेधाम् ) = उसको धारण करनेवाली श्रेष्ठ बुद्धिवाला बनाता हूँ ।
भावार्थ -
भावार्थ = परमदयालु पिता वेद द्वारा हम सब को कहते हैं कि हे मेरे प्यारे पुत्रो ! मेरे वचनों को सब विद्वानों ने और साधारण बुद्धिवाले मनुष्यों ने बड़े प्रेम से सुना और सेवन किया । मैं ही तेजस्वी क्षत्रिय को, चार वेद का वक्ता ब्रह्मा, ऋषि को और उज्ज्वल बुद्धिवाले सज्जन को बनाता हूँ। आप लोग वेदानुकूल कर्म करनेवाले मेरे प्रेमी भक्त बनो, ताकि मैं आप लोगों को भी उत्तम बनाऊँ ।
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