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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 35 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 35/ मन्त्र 13
शं नो॑ अ॒ज एक॑पाद्दे॒वो अ॑स्तु॒ शं नोऽहि॑र्बु॒ध्न्यः१॒॑ शं स॑मु॒द्रः। शं नो॑ अ॒पां नपा॑त्पे॒रुर॑स्तु॒ शं नः॒ पृश्नि॑र्भवतु दे॒वगो॑पा ॥१३॥
स्वर सहित पद पाठशम् । नः॒ । अ॒जः । एक॑ऽपात् । दे॒वः । अ॒स्तु॒ । शम् । नः॒ । अहिः॑ । बु॒ध्न्यः॑ । शम् । स॒मु॒द्रः । शम् । नः॒ । अ॒पाम् । नपा॑त् । पे॒रुः । अ॒स्तु॒ । शम् । नः॒ । पृश्निः॑ । भ॒व॒तु॒ । दे॒वऽगो॑पा ॥
स्वर रहित मन्त्र
शं नो अज एकपाद्देवो अस्तु शं नोऽहिर्बुध्न्यः१ शं समुद्रः। शं नो अपां नपात्पेरुरस्तु शं नः पृश्निर्भवतु देवगोपा ॥१३॥
स्वर रहित पद पाठशम्। नः। अजः। एकऽपात्। देवः। अस्तु। शम्। नः। अहिः। बुध्न्यः। शम्। समुद्रः। शम्। नः। अपाम्। नपात्। पेरुः। अस्तु। शम्। नः। पृश्निः। भवतु। देवऽगोपा ॥१३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 35; मन्त्र » 13
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 30; मन्त्र » 3
पदार्थ -
पदार्थ = ( अज: ) = अजन्मा ( एकपात् ) = एक पगवाला अर्थात् एकरस व्यापक ( देवः ) = प्रकाशस्वरूप सुखप्रद ( नः शम् ) = हमें शान्तिदायक ( अस्तु ) = हो ( अहि: ) = जिसकी कोई हिंसा न कर सके, निर्विकार ( बुध्न्यः ) = आदि कारण ( शम् समुद्रः ) = सबका सींचनेवाला परमेश्वर हमें शान्तिदायक हो ( अपाम् ) = प्रजाओं का ( नपात् ) = न गिरानेवाला, ( पेरु:) = पार लगानेवाला जगत्पति ( नः शम् ) = हमें शान्तिदायक ( अस्तु ) = हो ( पृश्निः ) = सबका स्पर्श करनेवाला ( देवगोपा ) = विद्वान् महात्माओं का रक्षक ( नः शम् भवतु ) = हमें शांतिदायक हो ।
भावार्थ -
भावार्थ = कभी भी जन्म न लेनेवाला सदा एकरस व्यापक देव प्रभु हमें शान्ति प्रदान करे। जिस भगवान् की कभी कोई हिंसा नहीं कर सकता, ऐसा वह निर्विकार, सबका आदि मूल कारण और सबको हरा भरा रखनेवाला हमें सुखदायक हो। सब प्रजाओं का रक्षक सबका उद्धार करनेवाला सर्वव्यापक विद्वान् महात्माओं का सदा रक्षक, हमें शान्ति प्रदान करे ।
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