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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 64 के मन्त्र
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ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 64/ मन्त्र 3
ऋषिः - प्रगाथः काण्वः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - स्वराडार्चीगायत्री
स्वरः - षड्जः
त्वमी॑शिषे सु॒ताना॒मिन्द्र॒ त्वमसु॑तानाम् । त्वं राजा॒ जना॑नाम् ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । ई॒शि॒षे॒ । सु॒ताना॑म् । इ॒न्द्र॒ । त्वम् । असु॑तानाम् । त्वम् । राजा॑ । जना॑नाम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वमीशिषे सुतानामिन्द्र त्वमसुतानाम् । त्वं राजा जनानाम् ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । ईशिषे । सुतानाम् । इन्द्र । त्वम् । असुतानाम् । त्वम् । राजा । जनानाम् ॥ ८.६४.३
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 64; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 44; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 4; वर्ग » 44; मन्त्र » 3
पदार्थ -
पदार्थ = हे ( इन्द्र ) = सकल ऐश्वर्य सम्पन्न परमेश्वर ! ( त्वम् ) = आप ( सुतानाम् ) = उत्पन्न हुए पदार्थों के ( ईशिषे ) = शासक हैं । ( त्वम् असुतानाम् ) = उत्पन्न न होनेवाले जीव प्रकृति आकाशादि पदार्थों के भी आप शासक हैं, ( त्वं राजा जनानाम् ) = आप ही सब लोक लोकान्तरों के व प्राणीमात्र के राजा स्वामी हैं ।
भावार्थ -
भावार्थ = हे सर्वशक्तिमन् परमात्मन् ! आप उत्पन्न होनेवाले पदार्थों के और अनादि जीव प्रकृति और सब ब्रह्माण्डों के राजा हैं। जड़ चेतन सब पदार्थों पर शासन कर रहे हैं। आपकी आज्ञा बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता, ऐसे समर्थ आप प्रभु की शरण में हम आये हैं, कृपया आप ही हमारी रक्षा करें ।
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