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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 718
ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
1
त्वं꣡ न इ꣢न्द्र वाज꣣यु꣢꣫स्त्वं ग꣣व्युः꣡ श꣢तक्रतो । त्व꣡ꣳ हि꣢रण्य꣣यु꣡र्व꣢सो ॥७१८॥
स्वर सहित पद पाठत्व꣢म् । नः꣣ । इन्द्रः । वाजयुः꣢ । त्वम् । ग꣣व्युः꣢ । श꣣तक्रतो । शत । क्रतो । त्व꣢म् । हि꣣रण्ययुः꣢ । व꣣सो ॥७१८॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं न इन्द्र वाजयुस्त्वं गव्युः शतक्रतो । त्वꣳ हिरण्ययुर्वसो ॥७१८॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । नः । इन्द्रः । वाजयुः । त्वम् । गव्युः । शतक्रतो । शत । क्रतो । त्वम् । हिरण्ययुः । वसो ॥७१८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 718
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
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पदार्थ -
शब्दार्थ = ( इन्द्र ) = हे परमेश्वर ! ( त्वं नः ) = आप हमारे लिए ( वाजयुः ) = अन्न की इच्छावाले हो ( शतक्रतो ) = हे अनन्तज्ञान और शोभनीय कर्मवाले प्रभो ! ( त्वं गव्युः ) = आप हमारे लिए गौ आदि उपकारक पशुओं की इच्छावाले और ( वसो ) = हे सबमें बसने और सबको अपने में वास देनेवाले सर्वाधिष्ठान परमात्मन्! ( त्वं हिरण्ययुः ) = आप हमारे लिए सुवर्णादि धन चाहनेवाले हूजिये ।
भावार्थ -
भावार्थ = हे जगत्पते परमेश्वर ! आप हमारे और हमारे देशी सब भ्राताओं के लिए गेहूँ चावल आदि अन्न, गौ-अश्व आदि उपकारक पशु, सुवर्ण-चांदी आदि धन की इच्छावाले हूजिये। किसी वस्तु की न्यूनता से हम सब दुःखी वा दरिद्री न रहें, किन्तु हमारे सब भ्राता, सब प्रकार के सुखों से सम्पन्न हुए निश्चिन्त होकर आपकी भक्ति में अपने कल्याण के लिए लग जायें ।
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