Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 106 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 106/ मन्त्र 1
    ऋषिः - भुतांशः काश्यपः देवता - अश्विनौ छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    उ॒भा उ॑ नू॒नं तदिद॑र्थयेथे॒ वि त॑न्वाथे॒ धियो॒ वस्त्रा॒पसे॑व । स॒ध्री॒ची॒ना यात॑वे॒ प्रेम॑जीगः सु॒दिने॑व॒ पृक्ष॒ आ तं॑सयेथे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒भौ । ऊँ॒ इति॑ । नू॒नम् । तत् । इत् । अ॒र्थ॒ये॒थे॒ इति॑ । वि । त॒न्वा॒थे॒ इति॑ । धियः॑ । वस्त्रा॑ । अ॒पसा॑ऽइव । स॒ध्री॒ची॒ना । यात॑वे । प्र । ई॒म् । अ॒जी॒ग॒रिति॑ । सु॒दिना॑ऽइव । पृक्षः॑ । आ । तं॒स॒ये॒थे॒ इति॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उभा उ नूनं तदिदर्थयेथे वि तन्वाथे धियो वस्त्रापसेव । सध्रीचीना यातवे प्रेमजीगः सुदिनेव पृक्ष आ तंसयेथे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उभौ । ऊँ इति । नूनम् । तत् । इत् । अर्थयेथे इति । वि । तन्वाथे इति । धियः । वस्त्रा । अपसाऽइव । सध्रीचीना । यातवे । प्र । ईम् । अजीगरिति । सुदिनाऽइव । पृक्षः । आ । तंसयेथे इति ॥ १०.१०६.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 106; मन्त्र » 1
    अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 1; मन्त्र » 1

    पदार्थ -
    (उभा-उ) दोनों सुशिक्षित स्त्री-पुरुष या अध्यापक-उपदेशक (तत्-इत्) उस ही ब्रह्म की (प्र-अर्थयेथे) प्रार्थना करते हैं, जिसकी प्राप्ति के लिए (धियः) कर्मों का (वि तन्वाथे) विस्तार करते हैं (अपसा-इव-वसा) कर्म करनेवाले दो शिल्पी वस्त्र बुननेवाले जैसे वस्त्र बुनते हैं (सध्रीचीना) साथ जाते हुए गृहस्थकार्य में या विद्याप्रचार में (यातवे) यात्रा के लिए जाते हुए (ईम्-प्र-अजीगः) उस ब्रह्म की-प्रत्येक स्तुति करे अथवा परस्पर प्रशंसा करे (सुदिना-इव) सुन्दर दिनों में (पृक्षः) अन्न को या विज्ञान को (आ तंसयेथे) भलीभाँति संस्कृत करते हैं ॥१॥

    भावार्थ - सुशिक्षित स्त्री-पुरुष गृहस्थ में या अध्यापक-उपदेशक विद्याप्रचार में लगे हुए संतानों या शिष्यों का विस्तार करते हुए भोजन या ज्ञान को संस्कृत करते हुए यात्रा करते हुए भी परमात्मा की स्तुति प्रार्थना करते रहें ॥१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top