ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 78/ मन्त्र 1
ऋषिः - स्यूमरश्मिर्भार्गवः
देवता - मरूतः
छन्दः - आर्चीत्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
विप्रा॑सो॒ न मन्म॑भिः स्वा॒ध्यो॑ देवा॒व्यो॒३॒॑ न य॒ज्ञैः स्वप्न॑सः । राजा॑नो॒ न चि॒त्राः सु॑सं॒दृश॑: क्षिती॒नां न मर्या॑ अरे॒पस॑: ॥
स्वर सहित पद पाठविप्रा॑सः । न । मन्म॑ऽभिः । सु॒ऽआ॒ध्यः॑ । दे॒व॒ऽअ॒व्यः॑ । न । य॒ज्ञैः । सु॒ऽअप्न॑सः । राजा॑नः । न । चि॒त्राः । सु॒ऽस॒न्दृशः॑ । क्षि॒ती॒नाम् । न । मर्याः॑ । अ॒रे॒पसः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
विप्रासो न मन्मभिः स्वाध्यो देवाव्यो३ न यज्ञैः स्वप्नसः । राजानो न चित्राः सुसंदृश: क्षितीनां न मर्या अरेपस: ॥
स्वर रहित पद पाठविप्रासः । न । मन्मऽभिः । सुऽआध्यः । देवऽअव्यः । न । यज्ञैः । सुऽअप्नसः । राजानः । न । चित्राः । सुऽसन्दृशः । क्षितीनाम् । न । मर्याः । अरेपसः ॥ १०.७८.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 78; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
विषय - इस सूक्त में जो जीवन्मुक्त सर्वत्र विचरकर मनुष्य को पाप से बचाते, ज्ञान का उपदेश करते हैं, उनकी सङ्गति तथा सत्कार करना चाहिए आदि विषय हैं।
पदार्थ -
(मन्मभिः) हे जीवन्मुक्त विद्वानों ! तुम मननीय मन्त्रों द्वारा (स्वाध्यः) सुख सम्पत्तिवाले (विप्रासः-न) विशेष कामना पूरी करनेवाले जैसे (यज्ञैः) ज्ञानयज्ञों के द्वारा (स्वप्नसः) सुन्दर कर्मवाले (देवाव्यः-न) परमात्मदेव की उपासना करनेवाले जैसे (सुसंदृशः) सुख के सम्यक् दिखानेवाले-सुख का अनुभव करानेवाले (चित्राः) चायनीय-पूजनीय (राजानः-न) राजाओं के सामान (क्षितीनाम्) मनुष्यों के मध्य (अरेपसः) निष्पाप (मर्याः-न) मनुष्यों के समान हमारे लिए होवो ॥१॥
भावार्थ - जीवन्मुक्त विद्वान् अपने ज्ञानों से लोगों की कामनाओं को पूरा करनेवाले तथा उत्तम कर्मों के द्वारा सुख का अनुभव करानेवाले मनुष्यों के अन्दर विचरण करते रहें ॥१॥
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