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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 163
ऋषिः - शुनः शेप आजीगर्तिः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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यो꣡गे꣢योगे त꣣व꣡स्त꣢रं꣣ वा꣡जे꣢वाजे हवामहे । स꣡खा꣢य꣣ इ꣡न्द्र꣢मू꣣त꣡ये꣢ ॥१६३॥

स्वर सहित पद पाठ

यो꣡गे꣢꣯योगे । यो꣡गे꣢꣯ । यो꣣गे । तव꣡स्त꣢रम् । वा꣡जे꣢꣯वाजे । वा꣡जे꣢꣯ । वा꣣जे । हवामहे । स꣡खा꣢꣯यः । स । खा꣣यः । इ꣡न्द्र꣢म् । ऊ꣣त꣡ये꣢ ॥१६३॥


स्वर रहित मन्त्र

योगेयोगे तवस्तरं वाजेवाजे हवामहे । सखाय इन्द्रमूतये ॥१६३॥


स्वर रहित पद पाठ

योगेयोगे । योगे । योगे । तवस्तरम् । वाजेवाजे । वाजे । वाजे । हवामहे । सखायः । स । खायः । इन्द्रम् । ऊतये ॥१६३॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 163
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5;
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भावार्थ -

भा० = ( योगे योगे ) = प्रत्येक समाधि काल में और ( वाजे वाजे ) = प्रत्येक ज्ञानप्राप्ति के अवसर में या प्रत्येक बलकर्म के अवसर में ( तवस्तरम् ) = अति बलशाली, अति वेगवान् ( इन्द्रम् ) = इन्द्र अत्मा को हम ( सखायः ) = सब मित्र के समान प्रेमीजन ( हवामहे ) = बुलाते हैं या उसका गुणगान करते है।

योगः – “तां योगमिति मन्यन्ते स्थिरामिन्द्रियधारणाम्" ।  गीता०  । योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः । पात ० योगसूत्र १ । १ ॥

दो ही कार्य बल से सम्पादन किये जाते हैं एक घोर संग्राम और दूसरा ध्यानयोग । दोनों में बली आत्मा को ही स्मरण किया और उसको ही पुकारा जाता है। योगी को "बलेषु हस्तिबलादीनि” । हाथियों का बल तक भी प्राप्त हो जाता है। संग्राम के अवसर पर भी श्रीकृष्ण ने अर्जुन के आत्मा को चेताया वह वाज या संग्राम के अवसर पर इन्द्र का आवाहन था ।

ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

ऋषिः - शुनः शेप:।

देवता - इन्द्रः। 

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