ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 36/ मन्त्र 3
तद्वो॑ वाजा ऋभवः सुप्रवाच॒नं दे॒वेषु॑ विभ्वो अभवन्महित्व॒नम्। जिव्री॒ यत्सन्ता॑ पि॒तरा॑ सना॒जुरा॒ पुन॒र्युवा॑ना च॒रथा॑य॒ तक्ष॑थ ॥३॥
स्वर सहित पद पाठतत् । वः॒ । वा॒जाः॒ । ऋ॒भ॒वः॒ । सु॒ऽप्र॒वा॒च॒नम् । दे॒वेषु॑ । वि॒ऽभ्वः॒ । अ॒भ॒व॒त् । म॒हि॒ऽत्व॒नम् । जिव्री॒ इति॑ । यत् । सन्ता॑ । पि॒तरा॑ । स॒ना॒ऽजुरा॑ । पुनः॑ । युवा॑ना । च॒रथा॑य । तक्ष॑थ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तद्वो वाजा ऋभवः सुप्रवाचनं देवेषु विभ्वो अभवन्महित्वनम्। जिव्री यत्सन्ता पितरा सनाजुरा पुनर्युवाना चरथाय तक्षथ ॥३॥
स्वर रहित पद पाठतत्। वः। वाजाः। ऋभवः। सुऽप्रवाचनम्। देवेषु। विऽभ्वः। अभवत्। महिऽत्वनम्। जिव्री इति। यत्। सन्ता। पितरा। सनाऽजुरा। पुनः। युवाना। चरथाय। तक्षथ ॥३॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 36; मन्त्र » 3
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 7; मन्त्र » 3
विषय - ऋभु विद्वानों का कार्य युवकों को तैयार करना है।
भावार्थ -
हे (वाजाः) ऐश्वर्य, बल से युक्त हे (ऋभवः) सत्य ज्ञान और तेजों से युक्त ! हे (विभ्वः) विशेष ऐश्वर्य वा विद्यादि से युक्त विद्वान् जनो ! (यत्) जो तुम लोग (जिव्री) जरावस्था को प्राप्त (सन्ता) हुए (सना जुरा) तप, दान आदि से वृद्ध (पितरा) माता पिता वा उनके तुल्य वृद्ध पुरुषों को (चरथाय) ज्ञान वितरण और जीवन यापन के लिये (पुनः युवाना तक्षथ) पुनः युवाओं के तुल्य अधिक सामर्थ्य और उत्साह से युक्त, शक्तिमान् बना देते हो (वः) आप लोगों का (तत्) वही (सु-प्र-वाचनम्) उत्तम ख्याति और उत्तम विद्याभ्यास है और वही आप लोगों का (देवेषु) विद्वान् विद्यादाताओं के बीच (महित्वनम्) महान् कर्त्तव्य है ।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वामदेव ऋषिः ॥ ऋभवो देवता ॥ छन्दः- १, ६, ८ स्वराट् त्रिष्टुप् । ९ त्रिष्टुप् । २, ३, ४, ५ विराट् जगती । ७ जगती ॥ नवर्चं सूक्तम् ।
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