Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 34 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 34/ मन्त्र 25
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - विराडार्षीत्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    तन्न॒ इन्द्रो॒ वरु॑णो मि॒त्रो अ॒ग्निराप॒ ओष॑धीर्व॒निनो॑ जुषन्त। शर्म॑न्त्स्याम म॒रुता॑मु॒पस्थे॑ यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥२५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तत् । नः॒ । इन्द्रः॑ । वरु॑णः । मि॒त्रः । अ॒ग्निः । आपः॑ । ओष॑धीः । व॒निनः॑ । जु॒ष॒न्त॒ । शर्म॑न् । स्या॒म॒ । म॒रुता॑म् । उ॒पऽस्थे॑ । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तन्न इन्द्रो वरुणो मित्रो अग्निराप ओषधीर्वनिनो जुषन्त। शर्मन्त्स्याम मरुतामुपस्थे यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥२५॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तत्। नः। इन्द्रः। वरुणः। मित्रः। अग्निः। आपः। ओषधीः। वनिनः। जुषन्त। शर्मन्। स्याम। मरुताम्। उपऽस्थे। यूयम्। पात। स्वस्तिऽभिः। सदा। नः ॥२५॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 34; मन्त्र » 25
    अष्टक » 5; अध्याय » 3; वर्ग » 27; मन्त्र » 5

    व्याखान -

    हे भगवन् ! (तन्न, इन्द्रः) सूर्य (वरुणः अग्निः) अग्नि (आपः) वायु (ओषधीः)  वृक्षादि वनस्थ सब पदार्थ आपकी आज्ञा से सुखरूप होकर हमारा (जुषन्त) सेवन करें। हे रक्षक! (मरुतामुपस्थे) प्राणादि के सुसमीप बैठे हुए हम आपकी कृपा से (शर्मन्त्स्याम) सुखयुक्त सदा रहें, (स्वस्तिभिः) सब प्रकार के रक्षणों से (यूयं पात) [आदरार्थ बहुवचनम् ] आप हमारी रक्षा करो, किसी प्रकार से हमारी हानि न हो॥२७॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top