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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1016
    ऋषिः - रेभसूनू काश्यपौ देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
    2

    प꣡व꣢स्व꣣ वा꣡ज꣢सातये प꣣वि꣢त्रे꣣ धा꣡र꣢या सु꣣तः꣢ । इ꣡न्द्रा꣢य सोम꣣ वि꣡ष्ण꣢वे दे꣣वे꣢भ्यो꣣ म꣡धु꣢मत्तरः ॥१०१६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प꣡व꣢꣯स्व । वा꣡ज꣢꣯सातये । वा꣡ज꣢꣯ । सा꣣तये । पवि꣡त्रे꣢ । धा꣡र꣢꣯या । सु꣣तः꣢ । इ꣡न्द्रा꣢꣯य । सो꣣म । वि꣡ष्ण꣢꣯वे । दे꣣वे꣡भ्यः꣢ । म꣡धु꣢꣯मत्तरः ॥१०१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवस्व वाजसातये पवित्रे धारया सुतः । इन्द्राय सोम विष्णवे देवेभ्यो मधुमत्तरः ॥१०१६॥


    स्वर रहित पद पाठ

    पवस्व । वाजसातये । वाज । सातये । पवित्रे । धारया । सुतः । इन्द्राय । सोम । विष्णवे । देवेभ्यः । मधुमत्तरः ॥१०१६॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1016
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 19; मन्त्र » 1
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 6; सूक्त » 4; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    प्रथम मन्त्र में जगदीश्वर का आह्वान है।

    पदार्थ

    हे (सोम) रस के भण्डार जगत्पति परमात्मन् ! (सुतः) आत्मा में प्रकट हुए, (मधुमत्तरः) अत्यन्त मधुर आप (इन्द्राय) जीवात्मा के लिए, (विष्णवे) शरीर में व्यापक प्राण के लिए और (देवेभ्यः) इन्द्रियों के लिए (वाजसातये) बलप्रदानार्थ (पवित्रे) पवित्र हृदय में (धारया) आनन्द की धारा के साथ (पवस्व) प्रवाहित होओ ॥१॥

    भावार्थ

    परमात्मा के पास से आनन्द का झरना झरने पर जीवात्मा, मन, बुद्धि आदि सभी रस से सिक्त और कृतकृत्य हो जाते हैं ॥१॥

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    पदार्थ

    (सोम) हे शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू (वाजसातये) अमृत अन्न भोग*97 सम्भक्ति प्राप्ति के लिए (पवित्रे) हृदयस्थान में (धारया सुतः) धारणा ध्यान से निष्पन्न साक्षात् (इन्द्राय विष्णवे देवेभ्यः) आत्मा के लिए व्यापनशील मन के लिए और इन्द्रियों के लिए (मधुमत्तरः पवस्व) अत्यन्त मधुमय हो कर प्राप्त हो॥१॥

    टिप्पणी

    [*96. “रेभः स्तोतृनाम” [निघं॰ ३.१६]।] [**97. “अमृतोऽन्नं वै वाजः” [जै॰ २.१९३]।]

    विशेष

    ऋषिः—रेभः (स्तोता*96)॥ देवता—सोमः (शान्तस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—अनुष्टुप्॥<br>

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    विषय

    जीवन का माधुर्य

    पदार्थ

    हे (सोम) = सम्पूर्ण जगत् को उत्पन्न करनेवाले प्रभो ! १. आप (वाजसातये) = संग्राम [नि० २.१६.३६] के लिए (पवस्व) = हमें प्राप्त हों । आपके सहाय के बिना हम वासनाओं के साथ संग्राम में जीत नहीं सकते। २. (पवित्रे) = वासना-विजय से पवित्र हुए हुए हृदय में (धारया) = वेदवाणी के द्वारा आप (सुतः) = उत्पन्न होते हैं। सर्वव्यापकता के नाते हमारे हृदयों में भी स्थित प्रभु का दर्शन वासनाओं के विनाश से पवित्र होने पर ही होता है । प्रभु ('बर्हि') = उसी हृदय में बैठते हैं, जहाँ से वासनाओं का उद्बर्हण कर दिया गया है । ३. हे सोम ! आप (इन्द्राय) = इन्द्रियों के अधिष्ठाता (विष्णवे) = व्यापक मनोवृत्तिवाले, उदार (देवेभ्यः) = दिव्य गुणों से युक्त पुरुषों के लिए (मधुमत्तरः) = अत्यन्त माधुर्यवाले होते हो। प्रभु ‘इन्द्र, विष्णु व देव' पुरुष के जीवन को अत्यन्त मधुर बना देते हैं ।

    भावार्थ

    हम प्रभु के साहाय्य से वासना-संग्राम में विजयी हों, पवित्र हृदय में वेदवाणी के प्रकाश से प्रभु का दर्शन करें। जितेन्द्रिय हों, व्यापक मनोवृत्तिवाले हों, देव बनें, जिससे प्रभु हमारे जीवनों को मधुर बना दें।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्रादौ जगदीश्वरमाह्वयति।

    पदार्थः

    हे (सोम) रसागार जगत्पते परमात्मन् ! (सुतः) आत्मनि प्रकटीकृतः, (मधुमत्तरः) अतिशयेन मधुरः त्वम् (इन्द्राय) जीवात्मने, विष्णवे) देहे व्यापकाय प्राणाय, (देवेभ्यः) इन्द्रियेभ्यश्च (वाजसातये) बलप्रदानाय (पवित्रे) स्वच्छे हृदये (धारया) आनन्दधारया सह (पवस्व) प्रस्रव ॥१॥

    भावार्थः

    परमात्मनः सकाशादानन्दनिर्झरे निर्झरिति सति जीवात्मामनोबुद्ध्यादयः सर्वेऽपि रससिक्ताः कृतकृत्या जायन्ते ॥१॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।१००।६।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O learned person, urged by steady intellect, for the acquisition of knowledge, constantly shedding happiness, manifest thyself, for spreading the light of soul and God, and for the good of literary persons !

    Translator Comment

    See verse 540.

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    Meaning

    Soma, all inspiring spirit of the universe, sweetest presence distilled and realised in the holy heart, flow on purifying by the stream of exhilaration, giving food, energy and fulfilment for the soul, for the universal vibrancy of nature and humanity, and for all the noble, generous and enlightened people. (Rg. 9-100-6)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (सोम) હે શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તું (वाजसातये) અમૃત અન્નભોગ સંભક્તિ પ્રાપ્તિને માટે (पवित्रे) હૃદયસ્થાનમાં (धारया सुतः) ધારણા, ધ્યાનથી નિષ્પન્ન સાક્ષાત્ (इन्द्राय विष्णवे देवेभ्यः) આત્માને માટે, વ્યાપનશીલ મનને માટે અને ઇન્દ્રિયોને માટે (मधुमत्तरः पवस्व) અત્યંત મધુમય બનીને પ્રાપ્ત થા. (૧)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याकडून आनंदाचा झरा प्रवाहित झाल्यावर जीवात्मा, मन, बुद्धी इत्यादी सर्व आनंद रसात भिजतात व कृतकृत्य होतात. ॥१॥

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