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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1030
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - इन्द्रः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
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    इ꣢न्द्र꣣मि꣡द्धरी꣢꣯ वह꣣तो꣡ऽप्र꣢तिधृष्टशवसम् । ऋ꣡षी꣢णाꣳ सुष्टु꣣ती꣡रुप꣢꣯ य꣣ज्ञं꣢ च꣣ मा꣡नु꣢षाणाम् ॥१०३०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ꣡न्द्र꣢꣯म् । इत् । ह꣢꣯रीइ꣡ति꣢ । व꣣हतः । अ꣡प्र꣢꣯तिधृष्टशवसम् । अ꣡प्र꣢꣯तिधृष्ट । श꣣वसम् । ऋ꣡षी꣢꣯णाम् । सु꣣ष्टुतीः꣢ । सु꣣ । स्तुतीः꣢ । उ꣡प꣢꣯ । य꣡ज्ञ꣢म् । च꣣ । मा꣡नु꣢꣯षाणाम् ॥१०३०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रमिद्धरी वहतोऽप्रतिधृष्टशवसम् । ऋषीणाꣳ सुष्टुतीरुप यज्ञं च मानुषाणाम् ॥१०३०॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । इत् । हरीइति । वहतः । अप्रतिधृष्टशवसम् । अप्रतिधृष्ट । शवसम् । ऋषीणाम् । सुष्टुतीः । सु । स्तुतीः । उप । यज्ञम् । च । मानुषाणाम् ॥१०३०॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1030
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 23; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 6; खण्ड » 7; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में यह बताया गया है कि गुरुकुल से स्नातक बनकर किस प्रकार क्या करे।

    पदार्थ

    (अप्रतिधृष्टशवसम्) जिसके बल को कोई दबा नहीं सकता ऐसे, (इन्द्रम्) आचार्यों से विद्या ग्रहण किये हुए विद्वान् स्नातक को (इत्) ही (हरी) रथ में नियुक्त उत्तम घोड़े एवं जलयान तथा विमान में नियुक्त विद्युत् और वायु (ऋषीणाम्) मन्त्रार्थद्रष्टा ऋषियों के (सुष्टुतीः) शुभ मन्त्रार्थोपदेशों में (मानुषाणां यज्ञं च) और मनुष्यों के यज्ञ-समारोह में (उपवहतः) ले जाएँ ॥३॥

    भावार्थ

    आचार्य के गर्भ से द्वितीय जन्म प्राप्त करके विद्वान् द्विज सामाजिक उत्थान के कार्यों में भाग लेता हुआ धर्मपूर्ण यज्ञादि समारोहों में जाए ॥३॥ इस खण्ड में गुरु-शिष्य और परमात्मा-जीवात्मा का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्वखण्ड के साथ सङ्गति है ॥ षष्ठ अध्याय में सप्तम खण्ड समाप्त ॥ षष्ठ अध्याय समाप्त ॥ तृतीय प्रपाठ्क में द्वितीय अर्ध समाप्त ॥

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    पदार्थ

    (अप्रतिधृष्टशवसम्-इन्द्रम्) अन्य से प्रतिघात को न प्राप्त होने योग्य बल वाले परमात्मा को (हरी-इत्) हरियाँ ही—ऋक् साम—स्तुति उपासना ही (उप वहतः) वहन करती हैं (ऋषीणां स्तुतीः) ऋषियों—मन्त्रद्रष्टाओं की मन्त्रस्तुतियों को (च) और (मानुषाणां यज्ञम्) मनुष्यों के अध्यात्मयज्ञ को लक्ष्य कर परमात्मा प्राप्त होता है॥३॥

    विशेष

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    विषय

    ज्ञान में और यज्ञ में

    पदार्थ

    जब मनुष्य वासनाओं के साथ संग्राम करता है और प्रभुकृपा से, वासनाओं से पराजित नहीं होता तब वह 'अ-प्रति-धृष्ट-शवस्' कहलाता है - नहीं पराजित हुआ बल जिसका। इस (अप्रतिधृष्टशवसम्) = जो वासनाओं के साथ संग्राम में अपराजित बलवाला होता है, अर्थात् हारता नहीं, उस (इन्द्रम्) = शत्रुओं का विद्रावण करनेवाले जितेन्द्रिय पुरुष को (हरी) = वे इन्द्रियाँ (इत्) = निश्चय से (उपवहतः) = समीप ले जाती हैं । किनके -

    १. (ऋषीणां सुष्टुती: उप) = [ऋषिर्वेदः] वेद-प्रतिपादित प्रभु की स्तुतियों के (च) = तथा २. (मानुषाणाम्) = मानवहित में लगे हुओं के (यज्ञम्) = लोकसंग्रहात्मक श्रेष्ठतम कर्मों के समीप । जब मनुष्य वासना-संग्राम में विजयी होता है तब वह दो ही कार्य करता है – उसकी ज्ञानेन्द्रियाँ तो वेदों के स्तोत्रों का ग्रहण करती हैं, अर्थात् निरन्तर ज्ञान प्राप्ति में लगी रहती हैं और उसकी कर्मेन्द्रियाँ मानव हितकारी यज्ञों में प्रवृत्त रहती हैं ।

    भावार्थ

    हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ ज्ञान-प्राप्ति में लगें और कर्मेन्द्रियाँ यज्ञात्मक कर्मों में लगी रहें ।
     

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    विषय

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    भावार्थ

    (हरी) हरण करने हारे मन और वाणी, ज्ञान और कर्म दोनों (अप्रतिधृष्ट-शवसं) अदम्य और असह्य बलवान् (इन्द्रं) आत्मा को (ऋषीणां) विद्वानों या इन्द्रियों की (सुस्तुतीः) उत्तम स्तुतियों और अभिलाषाओं को और (मानुषाणां) मनुष्यों के (यज्ञम्) यजन योग्य, उपास्य और संगति करने योग्य परमेश्वर को (उप वहतः) प्राप्त कराते हैं।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—त्रय ऋषिगणाः। २ काश्यपः ३, ४, १३ असितः काश्यपो देवलो वा। ५ अवत्सारः। ६, १६ जमदग्निः। ७ अरुणो वैतहव्यः। ८ उरुचक्रिरात्रेयः ९ कुरुसुतिः काण्वः। १० भरद्वाजो बार्हस्पत्यः। ११ भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा १२ मनुराप्सवः सप्तर्षयो वा। १४, १६, २। गोतमो राहूगणः। १७ ऊर्ध्वसद्मा कृतयशाश्च क्रमेण। १८ त्रित आप्तयः । १९ रेभसूनू काश्यपौ। २० मन्युर्वासिष्ठ २१ वसुश्रुत आत्रेयः। २२ नृमेधः॥ देवता—१-६, ११-१३, १६–२०, पवमानः सोमः। ७, २१ अग्निः। मित्रावरुणौ। ९, १४, १५, २२, २३ इन्द्रः। १० इन्द्राग्नी॥ छन्द:—१, ७ नगती। २–६, ८–११, १३, १६ गायत्री। २। १२ बृहती। १४, १५, २१ पङ्क्तिः। १७ ककुप सतोबृहती च क्रमेण। १८, २२ उष्णिक्। १८, २३ अनुष्टुप्। २० त्रिष्टुप्। स्वर १, ७ निषादः। २-६, ८–११, १३, १६ षड्जः। १२ मध्यमः। १४, १५, २१ पञ्चमः। १७ ऋषभः मध्यमश्च क्रमेण। १८, २२ ऋषभः। १९, २३ गान्धारः। २० धैवतः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ गुरुकुलात् स्नातको भूत्वा कथं किं करोतीत्याह।

    पदार्थः

    (अप्रतिधृष्टशवसम्) अप्रतिदब्धबलम्, (इन्द्रम्) आचार्येभ्यो गृहीतविद्यं विद्वांसं स्नातकम् (इत्) खलु (हरी) रथे नियुक्तौ अश्वौ, जलयाने विमानयाने च नियुक्तौ विद्युद्वायू वा (ऋषीणाम्) मन्त्रार्थद्रष्टॄणां मुनीनाम् (सुष्टुतीः) शुभान् मन्त्रार्थोपदेशान् (मानुषाणाम् यज्ञं च) मनुष्याणाम् यज्ञसमारोहं च (उपवहतः) प्रापयताम् ॥३॥२

    भावार्थः

    आचार्यगर्भाद् द्वितीयं जन्म प्राप्य विद्वान् द्विजः सामाजिकेषूत्थानकार्येषु भागं गृह्णन् धर्मपूर्णान् यज्ञादिसमारोहान् गच्छेत् ॥३॥ अस्मिन् खण्डे गुरुशिष्ययोः परमात्मजीवात्मनोश्च-वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिरस्ति ॥ इति बरेलीमण्डलान्तर्गतफरीदपुरवास्तव्य-श्रीमद्गोपालरामभगवतीदेवीतनयेन हरिद्वारीयगुरुकुलकाङ्गड़ीविश्वविद्यालये ऽधीतविद्येन विद्यामार्तण्डेन आचार्यरामनाथवेदालङ्कारेण महर्षिदयानन्दसरस्वतीस्वामिकृतवेदभाष्यशैलीमनुसृत्य विरचिते संस्कृतार्यभाषाभ्यां समन्विते सुप्रमाणयुक्ते सामवेदभाष्ये उत्तरार्चिके तृतीयः प्रपाठकः समाप्तिमगात् ॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० १।८४।२, ‘ऋषी॑णां च स्तु॒तीरुप॑’ इति तृतीयः पादः। २. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिर्मन्त्रमिमं प्रजासेनापतेः सत्कारविषये व्याचष्टे।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Knowledge and action bring the soul, full of resistless power, to the praise-songs of the sages, and God worthy of worship by men.

    Translator Comment

    Knowledge and action are two horse of the soul, which take it to God.

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    Meaning

    The horses carry Indra, lord of in formidable force and resolution of mind, to the Rshis songs of praise and yajnic programmes of the people. (Rg. 1-84-2)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (अप्रतिधृष्टशवसम् इन्द्रम्) અન્યથી પ્રતિઘાત ન પામનાર યોગ્ય બળવાળા પરમાત્માને (हरी इत्) હરિયોની-ઋક્ સામ-સ્તુતિ ઉપાસના જ (उप वहतः) વહન કરે છે. (ऋषीणां स्तुतीः) ૠષિઓમંત્રદેષ્ટાઓની મંત્ર સ્તુતિઓને (च) તથા (मानुषाणां यज्ञम्) મનુષ્યોના અધ્યાત્મયજ્ઞને લક્ષ્ય કરીને પરમાત્મા પ્રાપ્ત થાય છે. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    आचार्याच्या गर्भातून द्वितीय जन्म प्राप्त करून विद्वान द्विजानी सामाजिक उत्थान कार्यात भाग घेत धर्मपूर्ण यज्ञ इत्यादी समारंभात जावे. ॥३॥

    टिप्पणी

    या खंडात गुरू-शिष्य व परमात्मा-जीवात्म्याचे वर्णन असल्यामुळे या खंडाची पूर्व खंडाची पूर्व खंडाबरोबर संगती आहे.

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