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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1069
    ऋषिः - वसिष्ठो मैत्रावरुणिः देवता - आदित्याः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    2

    ते꣡ स्या꣢म देव वरुण꣣ ते꣡ मि꣢त्र सू꣣रि꣡भिः꣢ स꣣ह꣢ । इ꣢ष꣣꣬ꣳ स्व꣢꣯श्च धीमहि ॥१०६९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ते꣢ । स्या꣣म । देव । वरुण । ते꣢ । मि꣣त्र । मि । त्र । सूरि꣡भिः꣢ । स꣣ह꣢ । इ꣡ष꣢꣯म् । स्वऽ३रि꣡ति꣢ । च꣣ । धीमहि ॥१०६९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ते स्याम देव वरुण ते मित्र सूरिभिः सह । इषꣳ स्वश्च धीमहि ॥१०६९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    ते । स्याम । देव । वरुण । ते । मित्र । मि । त्र । सूरिभिः । सह । इषम् । स्वऽ३रिति । च । धीमहि ॥१०६९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1069
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 8; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 3; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आगे वरुण और मित्र से प्रार्थना करते हैं।

    पदार्थ

    हे (देव) प्रकाशक, ज्ञानी (वरुण) वरणीय जीवात्मन् ! हम (ते) तेरे (स्याम) होवें। हे (मित्र) मित्र परमात्मन् ! (सूरिभिः सह) विद्वानों सहित, हम (ते) तेरे (स्याम) होवें। (इषम्) अभीष्ट ऐश्वर्य को (स्वः च) और आनन्द को (धीमहि) धारण करें ॥३॥

    भावार्थ

    परमात्मा और जीवात्मा की मित्रता प्राप्त करके सब मनुष्य ज्ञानवान्, प्रकाशवान्, आनन्दवान् और ऐश्वर्यवान् हों तथा मुक्ति को प्राप्त करें ॥३॥

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    पदार्थ

    (देव वरुण ते स्याम) हे अपनी ओर वरनेवाले परमात्मदेव! हम तेरे हों—तुझ से अलग न हों (मित्र ते) हे प्रेरक परमात्मन्! हम तेरे हों—तुझसे अलग न हों (सूरिभिः सह) स्तुतिकर्त्ताओं*46 के साथ हम से पूर्व स्तुतिकर्त्ता जैसे तेरे हो गये उनके साथ हम भी तेरे हो जावें उनकी श्रेणी में तेरे बन जावें?॥३॥

    टिप्पणी

    [*46. “सूरिः स्तोतृनाम” [निघं॰ ३.१६]।]

    विशेष

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    विषय

    प्रेरणा व प्रकाश

    पदार्थ

    हे (देव मित्र वरुण) - दिव्य गुणों को जन्म देनेवाले प्राण और अपान (ते) = वे हम (ते) = तुम्हारे (स्याम) = हों, अर्थात् सदा तुम्हारी साधना में लगे हुए हम तुम्हारे आराधक बनें । प्राणापान को क्षीण करनेवाली किसी भी वस्तु को न अपनाएँ— उसका सेवन न करें। युक्ताहार-विहार, कर्मों में युक्त चेष्टा तथा युक्त स्वप्नावबोधवाले होकर हम तुम्हारी साधना में तत्पर रहें और इस प्रकार प्राणसाधना से अपनी बुद्धियों को सूक्ष्म करके (सूरिभिः सह) = विद्वानों के सम्पर्क में रहते हुए (इषम्) = वेद में दी गयी प्रभुप्रेरणा को (स्वः च) = और प्रकाश को (धीमहि) =  अपने में धारण करें ।

    भावार्थ

    प्राणापान की साधना से हम बुद्धियों को सूक्ष्म करके प्रभु की प्रेरणा व प्रकाश को प्राप्त करें ।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे देव ! वरुण ! हे (मित्र) मृत्यु को मेटने हारे ! (सूरिभिः) तत्व के ज्ञाता विद्वानों के साथ हम (स्याम) रहें। और (ते) तेरे (इषं) अन्न, ज्ञान और (स्वः च) सुख, आनन्द-स्वरूप को (धीमहि) ध्यान और धारण करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ (१) आकृष्टामाषाः (२, ३) सिकतानिवावरी च। २, ११ कश्यपः। ३ मेधातिथिः। ४ हिरण्यस्तूपः। ५ अवत्सारः। ६ जमदग्निः। ७ कुत्सआंगिरसः। ८ वसिष्ठः। ९ त्रिशोकः काण्वः। १० श्यावाश्वः। १२ सप्तर्षयः। १३ अमहीयुः। १४ शुनःशेप आजीगर्तिः। १६ मान्धाता यौवनाश्वः। १५ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः। १७ असितः काश्यपो देवलो वा। १८ ऋणचयः शाक्तयः। १९ पर्वतनारदौ। २० मनुः सांवरणः। २१ कुत्सः। २२ बन्धुः सुबन्धुः श्रुतवन्धुविंप्रबन्धुश्च गौपायना लौपायना वा। २३ भुवन आप्त्यः साधनो वा भौवनः। २४ ऋषि रज्ञातः, प्रतीकत्रयं वा॥ देवता—१—६, ११–१३, १७–२१ पवमानः सोमः। ७, २२ अग्निः। १० इन्द्राग्नी। ९, १४, १६, इन्द्रः। १५ सोमः। ८ आदित्यः। २३ विश्वेदेवाः॥ छन्दः—१, ८ जगती। २-६, ८-११, १३, १४,१७ गायत्री। १२, १५, बृहती। १६ महापङ्क्तिः। १८ गायत्री सतोबृहती च। १९ उष्णिक्। २० अनुष्टुप्, २१, २३ त्रिष्टुप्। २२ भुरिग्बृहती। स्वरः—१, ७ निषादः। २-६, ८-११, १३, १४, १७ षड्जः। १-१५, २२ मध्यमः १६ पञ्चमः। १८ षड्जः मध्यमश्च। १९ ऋषभः। २० गान्धारः। २१, २३ धैवतः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ वरुणं मित्रं च प्रार्थयते।

    पदार्थः

    हे (देव) प्रकाशक, ज्ञानवन् (वरुण) वरणीय जीवात्मन् ! वयम् (ते) तव (स्याम) भवेम, हे (मित्र) सखे परमात्मन् ! (सूरिभिः सह) विद्वद्भिः साकम्, वयम् (ते) तव (स्याम) भवेम। (इषम्) अभीष्टम् ऐश्वर्यम् (स्वः च) आनन्दं च (धीमहि) दधीमहि। [डुधाञ् धातोर्लिङि ‘छन्दस्युभयथा’ इत्यार्धधातुकत्वात् शबभावः ईत्वं च] ॥३॥

    भावार्थः

    परमात्मजीवात्मनोः सख्यं प्राप्य सर्वे मनुष्या ज्ञानवन्तः प्रकाशवन्तः सानन्दा ऐश्वर्यवन्तः प्राप्तमोक्षाश्च भवेयुः ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ७।६६।९।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Master of sinless nature, O Emblem of fitness and comradeship, may we be Thine with our impulses. May knowledge and supreme joy be our ideal!

    Translator Comment

    Master refers to God.

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    Meaning

    O lord self-refulgent Varuna, lord of justice, Mitra, just friend of humanity, give us the will and wisdom that with all our wise and brave we be dear and dedicated to you and we meditate to achieve the strength and bliss of Divinity. (Rg. 7-66-9)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (देव वरुण ते स्याम) હે અમારી તરફ વરણ કરનાર પરમાત્મન્ ! અમે તારા બનીએતારાથી અલગ ન થઈએ. (मित्र ते) હે પ્રેરક પરમાત્મન્ ! અમે તારા બનીએ-તારાથી અલગ ન થઈએ. (सूरिभिः सह) સ્તુતિકર્તાઓની સાથે અમારાથી પૂર્વ સ્તુતિકર્તા જેમ તારા બની ગયા; તેમ અમે પણ તારા બની જઈએ. એની શ્રેણીમાં આવીને તારા બની જઈએ. (૩)

     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा व जीवात्म्याची मैत्री करून सर्व माणसांनी ज्ञानवान, प्रकाशवान, आनंदी व ऐश्वर्यवान व्हावे व मुक्ती प्राप्त करावी. ॥३॥

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