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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1075
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    2

    इ꣣दं꣡ वां꣢ मदि꣣रं꣡ मध्वधु꣢꣯क्ष꣣न्न꣡द्रि꣢भि꣣र्न꣡रः꣢ । इ꣡न्द्रा꣢ग्नी꣣ त꣡स्य꣢ बोधतम् ॥१०७५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ꣣द꣢म् । वा꣣म् । मदिर꣢म् । म꣡धु꣢꣯ । अ꣡धु꣢꣯क्षन् । अ꣡द्रि꣢꣯भिः । अ । द्रि꣣भिः । न꣡रः꣢꣯ । इ꣡न्द्रा꣢꣯ग्नी । इ꣡न्द्र꣢꣯ । अ꣣ग्नीइ꣡ति꣢ । त꣡स्य꣢꣯ । बो꣣धतम् ॥१०७५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इदं वां मदिरं मध्वधुक्षन्नद्रिभिर्नरः । इन्द्राग्नी तस्य बोधतम् ॥१०७५॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इदम् । वाम् । मदिरम् । मधु । अधुक्षन् । अद्रिभिः । अ । द्रिभिः । नरः । इन्द्राग्नी । इन्द्र । अग्नीइति । तस्य । बोधतम् ॥१०७५॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1075
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 10; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 3; सूक्त » 3; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में पुनः उन्हीं को सम्बोधन किया गया है।

    पदार्थ

    हे (इन्द्राग्नी) जीवात्मा और प्राण एवं राजा और सेनापति ! (वाम्) आप दोनों को लक्ष्य करके (नरः) पुरुषार्थी मनुष्यों ने (अद्रिभिः) वाणीरूपी सिलबट्टों से (इदम्) इस (मदिरम्) आनन्दजनक एवं उत्साहजनक (मधु) मधुर वीर रस को (अधुक्षन्) दुहा है। आप दोनों (तस्य) उस वीररस को (बोधतम्) पीना जानो ॥३॥

    भावार्थ

    शरीर के अधिष्ठाता जीवात्मा, मन, प्राण आदि तथा राष्ट्र के अधिकारी राजा, सेनापति आदि में वीररस का संचार करके उनकी सहायता से सबको उत्कर्ष सिद्ध करना चाहिए ॥३॥ इस खण्ड में मित्र-वरुण-अर्यमा नामों से परमेश्वर-जीवात्मा-प्राण के विषय का, अन्तरात्मा के उद्बोधन का, परमात्मा से प्रार्थना का और इन्द्राग्नी नाम से जीवात्मा और प्राण एवं राजा और सेनापति के विषय का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ सप्तम अध्याय में तृतीय खण्ड समाप्त ॥

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    पदार्थ

    (अद्रिभिः-नरः) ‘श्लोककृद्भिः’ प्रशंसा करनेवाले स्तुति करनेवाले*50 मुमुक्षुजन*51 (वाम्) तेरे लिए (इदं मदिरं मधु अधुक्षन्) इस हर्षकर मधुर उपासनारस को दूहते हैं—प्रस्तुत करते हैं (इन्द्राग्नी तस्य बोधतम्) हे ऐश्वर्यवन् ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मन्! उस अध्यात्मयज्ञ को जान—अपना॥३॥

    टिप्पणी

    [*50. “अद्रिरसि श्लोककृत्” [काठ॰ १.५]।] [*51. “नरो ह वै देवविशः” [जै॰ १.८९]।]

    विशेष

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    विषय

    मधुविद्या व ब्रह्मदर्शन

    पदार्थ

    शरीर में उत्पन्न सोम को 'मधु' कहते हैं । इस सोम से जीवन में एक उल्लास पैदा होता है, अतः इस मधु को ‘मदिर' कहा गया है । इस सोम की रक्षा से ऊँचे-से-ऊँचा ज्ञान भी प्राप्त होता है, इस सोमज्ञान को ही 'मधुविद्या' के नाम से कहा गया है । यह मधुविद्या' अश्विनी देवों' [प्राणापानौ] को ही दी गयी है। इसका अभिप्राय यही है कि प्राणापान की साधना से इसे हम प्राप्त कर पाते हैं, अत: यहाँ मन्त्र में कहते हैं कि (इदम्) = इस (वाम्) = आपके (मदिरम्) = जीवन में उल्लास पैदा करनेवाले (मधु) = ब्रह्मज्ञान को (नरः) = जीवन-पथ पर आगे बढ़नेवाले लोग (अद्रिभिः) = आदरणीय गुरुओं की सहायता से (अधुक्षन्) = अपने में दूहते हैं—अपने मस्तिष्क को उस ज्ञान से परिपूर्ण करते हैं।

    हे (इन्द्राग्नी) = प्राणापानो ! इस प्रकार आप हमें (तस्य) = उस सर्वत्र परिपूर्ण ब्रह्म का (बोधतम्) = ज्ञान दो। 

    भावार्थ

    प्राणापान की साधना हमें आदरणीय गुरुओं से मधुविद्या को प्राप्त करने योग्य बनाए और हम प्रभु का दर्शन करनेवाले बनें ।

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    विषय

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    भावार्थ

    (नरः) विद्वान् मनुष्य (अद्रिभिः) अखण्ड व्रतों से (वां) आप दोनों के (इदं) इस दर्शनीय (मधु) अमृत, ज्ञान को (अधुक्षन्) प्राप्त करते हैं (तस्य) उसका (बोधतम्) हमें भी ज्ञान कराइये।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ (१) आकृष्टामाषाः (२, ३) सिकतानिवावरी च। २, ११ कश्यपः। ३ मेधातिथिः। ४ हिरण्यस्तूपः। ५ अवत्सारः। ६ जमदग्निः। ७ कुत्सआंगिरसः। ८ वसिष्ठः। ९ त्रिशोकः काण्वः। १० श्यावाश्वः। १२ सप्तर्षयः। १३ अमहीयुः। १४ शुनःशेप आजीगर्तिः। १६ मान्धाता यौवनाश्वः। १५ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः। १७ असितः काश्यपो देवलो वा। १८ ऋणचयः शाक्तयः। १९ पर्वतनारदौ। २० मनुः सांवरणः। २१ कुत्सः। २२ बन्धुः सुबन्धुः श्रुतवन्धुविंप्रबन्धुश्च गौपायना लौपायना वा। २३ भुवन आप्त्यः साधनो वा भौवनः। २४ ऋषि रज्ञातः, प्रतीकत्रयं वा॥ देवता—१—६, ११–१३, १७–२१ पवमानः सोमः। ७, २२ अग्निः। १० इन्द्राग्नी। ९, १४, १६, इन्द्रः। १५ सोमः। ८ आदित्यः। २३ विश्वेदेवाः॥ छन्दः—१, ८ जगती। २-६, ८-११, १३, १४,१७ गायत्री। १२, १५, बृहती। १६ महापङ्क्तिः। १८ गायत्री सतोबृहती च। १९ उष्णिक्। २० अनुष्टुप्, २१, २३ त्रिष्टुप्। २२ भुरिग्बृहती। स्वरः—१, ७ निषादः। २-६, ८-११, १३, १४, १७ षड्जः। १-१५, २२ मध्यमः १६ पञ्चमः। १८ षड्जः मध्यमश्च। १९ ऋषभः। २० गान्धारः। २१, २३ धैवतः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि तावेव सम्बोधयति।

    पदार्थः

    हे (इन्द्राग्नी) जीवात्मप्राणौ नृपतिसेनापती वा ! (वाम्) युवाम् उद्दिश्य (नरः) पुरुषार्थिनो मनुष्याः (अद्रिभिः) वाग्रूपैः पेषणपाषाणैः (इदम्) एतत् (मदिरम्) आनन्दजनकम् उत्साहजनकं च (मधु) वीररसम् (अधुक्षन्) दुग्धवन्तः। युवाम् (तस्य) तं वीररसं (बोधतम्) पातुं जानीतम् ॥३॥

    भावार्थः

    शरीराधिष्ठातृषु जीवात्ममनःप्राणादिषु राष्ट्राधिकारिषु नृपतिसेनापत्यादिषु च वीररसं सञ्चार्य तत्साहाय्येन सर्वैरुत्कर्षः साधनीयः ॥३॥ अस्मिन् खण्डे मित्रवरुणार्यमनामभिः परमेश्वरजीवात्मप्राणविषयस्य, स्वान्तरात्मोद्बोधनस्य, परमात्मप्रार्थनस्य, इन्द्राग्निना च जीवात्मप्राणयोर्नृपतिसेनापत्योश्च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिरस्ति ॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।३८।३।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God and Guru, learned persons, through austere acts of penance, acquire this delightful knowledge of Ye both. Keep me awake in this life’s struggle!

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    Meaning

    Indra and Agni, ruler and enlightened leader, the people, leading lights and all, create these exhilarating honey sweets of soma with mountainous efforts to felicitate you. Know this, recognise it, and honour them. (Rg. 8-38-3)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ: (अद्रिभिः नरः) પ્રશંસા કરનારા સ્તુતિ કરનારા મુમુક્ષુજનો (वाम्) તારા માટે (इदं मदिरं मधु अधुक्षन्) એ હર્ષકર-આનંદદાયક મધુર ઉપાસનારસનું દોહન કરે છે-પ્રસ્તુત કરે છે. (इन्द्राग्नी तस्य बोधतम्) હે ઐશ્વર્યવાન જ્ઞાનપ્રકાશ સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તે અધ્યાત્મયજ્ઞને જાણ-અપનાવ. (૩)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    शरीराचा अधिष्ठाता जीवात्मा, मन, प्राण इत्यादी व राष्ट्राचे अधिकारी राजा, सेनापती इत्यादीमध्ये वीर रसाचा संचार करून त्यांच्या साह्याने सर्वांनी उत्कर्ष साधावा. ॥३॥

    टिप्पणी

    या खंडात मित्र-वरुण-अर्यमा नावानी परमेश्वर-जीवात्मा-प्राण या विषयाचा, अंतरात्म्याच्या उद्बोधनाचा, परमेश्वराच्या प्रार्थनेचा व इन्द्राग्नी नावाने जीवात्मा व प्राण तसेच राजा व सेनापती या विषयाचे वर्णन असल्यामुळे या खंडाची पूर्व खंडाबरोबर संगती आहे

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