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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1077
    ऋषिः - कश्यपो मारीचः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    2

    तं꣢ त्वा꣣ वि꣡प्रा꣢ वचो꣣वि꣢दः꣣ प꣡रि꣢ष्कृण्वन्ति धर्ण꣣सि꣢म् । सं꣡ त्वा꣢ मृजन्त्या꣣य꣡वः꣢ ॥१०७७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । त्वा꣣ । वि꣡प्राः꣢꣯ । वि । प्राः꣣ । वचो । वि꣡दः꣢ । व꣣चः । वि꣡दः꣢꣯ । प꣡रि꣢꣯ । कृ꣣ण्वन्ति । धर्णसि꣢म् । सम् । त्वा꣣ । मृजन्ति । आय꣡वः꣢ ॥१०७७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तं त्वा विप्रा वचोविदः परिष्कृण्वन्ति धर्णसिम् । सं त्वा मृजन्त्यायवः ॥१०७७॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । त्वा । विप्राः । वि । प्राः । वचो । विदः । वचः । विदः । परि । कृण्वन्ति । धर्णसिम् । सम् । त्वा । मृजन्ति । आयवः ॥१०७७॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1077
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 11; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 4; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अगले मन्त्र में फिर गुरु-शिष्य का ही विषय है।

    पदार्थ

    हे शिष्य ! (धर्णसिम्) विद्या का ग्रहण करनेवाले, (तं त्वा) गुरुकुल में प्रविष्ट हुए उस तुझको (वचोविदः) सम्पूर्ण वाङ्ग्मय के ज्ञानी (विप्राः) ब्राह्मण गुरुजन (परिष्कृण्वन्ति) परिष्कृत करते हैं, (आयवः) क्रियाशील आचार्य लोग (त्वा) तुझे (सं मृजन्ति) भली-भाँति शुद्ध करते एवं सद्गुणों से अलङ्कृत करते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    गुरुओं का यह कर्तव्य है कि वे विद्या और सदाचार के दान से शिष्यों के हृदयों को परिष्कृत, शुद्ध और अलङ्कृत करें ॥२॥

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    पदार्थ

    (तं त्वा धर्णसिम्) उस तुझ बलवान्*53 सोम—शान्तस्वरूप परमात्मा को (वचोविदः-विप्राः) स्तुतिप्रकारवेत्ता विशेष प्रीति प्रदर्शित करने वाले विद्वान् (परिष्कृण्वन्ति) साक्षात् करते हैं (त्वा) तुझे (आयवः सं मृजन्ति) साधारण मनुष्य*54 अलंकृत—सत्कृत करते हैं अतः सर्वोपास्य है॥२॥

    टिप्पणी

    [*53. “धर्णसिः-बलनाम” [निघं॰ २.९] मतुप्प्रत्ययस्य लोपश्छान्दसः।] [*54. “आयवः-मनुष्याः” [निघं॰ २.३]।]

    विशेष

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    पदार्थ

    (धर्णसिम्) = सारे ब्रह्माण्ड के धारण करनेवाले (तम्) = उस (त्वा) = आपको (विप्राः) = सोम-संयम के द्वारा अपना विशेषरूप से पूरण करनेवाले (वचोविदः) = वेदवाणी को जाननेवाले लोग (परिष्कृण्वन्ति) = परिष्कृत करते हैं। जैसे कोई व्यक्ति अपने कमरे में चित्रों को सजा देता है, इसी प्रकार ये वचोवित् विप्र अपने हृदयान्तरिक्ष में प्रभु को सजा देते हैं, अर्थात् अपने हृदय में प्रभु का साक्षात्कार कर पाते हैं । (त्वा) = आपको (आयवः) = [एति] निरन्तर गतिशील व्यक्ति (संमृजन्ति) = सम्यक्तया शुद्ध करते हैं। प्रभु का शोधन [खोजना], प्रभु का ही विचार व दर्शन है । यह प्रभु-दर्शन क्रियाशील व्यक्तियों को ही प्राप्त होता है। क्रियाशीलता हमें पवित्र करती है और पवित्रता हमें प्रभु-दर्शन के योग्य बनाती है । मलों को मारकर यह 'मारीच' बनता है और प्रभु-दर्शन करने के कारण ‘कश्यप' कहलाता है। एवं, यह प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि 'कश्यप मारीच' बनता है ।

    भावार्थ

    हम अपना पूरण करनेवाले [विप्र], वेदवाणी को जाननेवाले [वचोविद्] तथा क्रियाशील जीवनवाले [आयु] बनें और प्रभु का दर्शन करें।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि गुरुशिष्यविषयमेवाह।

    पदार्थः

    हे शिष्य ! (धर्णसिम्) विद्याया ग्रहीतारम्, (तं त्वा) गुरुकुलं प्रविष्टं तादृशं त्वाम् (वचोविदः) निखिलवाङ्मयस्य वेत्तारः (विप्राः) ब्राह्मणा गुरुजनाः (परिष्कृण्वन्ति) परिष्कुर्वन्ति, (आयवः) क्रियाशीलाः आचार्याः [यन्ति क्रियातत्परास्तिष्ठन्तीति आयवः। इण् गतौ धातोः ‘छन्दसीणः’ उ० १।२ इत्यनेन उण् प्रत्ययः।] (त्वा) त्वाम् (सं मृजन्ति) सम्यक् शोधयन्ति, सद्गुणैः सम्यगलङ्कुर्वन्ति च ॥२॥

    भावार्थः

    गुरूणामिदं कर्त्तव्यं यत्ते विद्यायाः सदाचारस्य च दानेन शिष्याणां हृदयानि परिष्कृतानि शुद्धान्यलङ्कृतानि च कुर्वन्तु ॥२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।६४।२३, ‘धर्णसिम्’ इत्यत्र ‘वे॒धसः॑’।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Sages, who know the essence of the Vedas, sing Thy praise, O God, the Sustainer of the Universe. Men realise Thee through Yoga and purify their soul.

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    Meaning

    O Soma, lord of purity, joy and power of the world, wise sages of the Vedic voice adore, exalt and glorify you as the fount and foundation of the universe, and the people of knowledge concentrate on you as the sole refulgent object of meditation. (Rg. 9-64-23)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (तं त्वा धर्णसिम्) તે તારો બળવાન સોમ-શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્માનો (वचोविदः विप्राः) સ્તુતિ પ્રકાર વેત્તા વિશેષ પ્રીતિ પ્રદર્શિત કરનારા વિદ્વાનો (परिष्कृण्वन्ति) સાક્ષાત્ કરે છે. (त्वा) તારો (आयवः सं मृजन्ति) સાધારણ મનુષ્ય અલંકૃત-સત્કૃત કરે છે, તેથી સર્વનો ઉપાસ્ય છે. (૨)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    गुरूंचे हे कर्तव्य आहे, की त्यांनी विद्या व सदाचाराच्या ज्ञानाने शिष्यांच्या हृदयांना परिष्कृत, शुद्ध व अलंकृत करावे. ॥२॥

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