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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1088
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
उ꣡प꣢ नः꣣ स꣢व꣣ना꣡ ग꣢हि꣣ सो꣡म꣢स्य सोमपाः पिब । गो꣣दा꣢꣫ इद्रे꣣व꣢तो꣣ म꣡दः꣢ ॥१०८८॥
स्वर सहित पद पाठउ꣡प꣢꣯ । नः꣣ । स꣡व꣢꣯ना । आ । ग꣣हि । सो꣡म꣢꣯स्य । सो꣡मपाः । सोम । पाः । पिब । गोदाः꣢ । गो꣣ । दाः꣢ । इत् । रे꣣व꣡तः꣢ । म꣡दः꣢꣯ ॥१०८८॥
स्वर रहित मन्त्र
उप नः सवना गहि सोमस्य सोमपाः पिब । गोदा इद्रेवतो मदः ॥१०८८॥
स्वर रहित पद पाठ
उप । नः । सवना । आ । गहि । सोमस्य । सोमपाः । सोम । पाः । पिब । गोदाः । गो । दाः । इत् । रेवतः । मदः ॥१०८८॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1088
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 15; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 5; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
अगले मन्त्र में परमात्मा, राजा, आचार्य योगी और शिल्पकार का विषय वर्णित है।
पदार्थ
हे इन्द्र अर्थात् परमात्मा, राजा, आचार्य, योगी वा शिल्पकार ! आप (नः) हमारे (सवना) उपासना-यज्ञों में, प्रजाओं से किये गये उत्सवों में, शिक्षा-सत्रों में, योग-शिविरों में वा शिल्प-यज्ञों में (आगहि) आओ (सोमपाः) रस का पान करनेवाले आप (सोमस्य) भक्ति-रस, वीर-रस, विद्या-रस, ध्यान-रस वा कला-रस को (पिब) पान करो। (रेवतः) ऐश्वर्यवान् आपका (मदः) उत्साह (इत्) सचमुच (गोदाः) अध्यात्म प्रकाशों का, गायों का, वेदवाणियों का, योगशास्त्र के वचनों का वा शिल्पशास्त्र के वचनों का देनेवाला है ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा की उपासना करके और राजा, आचार्य, योगी तथा शिल्पकार का सत्कार करके उनसे यथायोग्य लाभ सबको पाना चाहिए ॥२॥
पदार्थ
(सोमपाः) हे सोम—उपासनारस के पीने वाले—स्वीकार करनेवाले इन्द्र—ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! तू (नः) हमारे (सवना-उप-आगहि) उपासनावसरों में उपगत होओ—प्राप्त होओ (सोमस्य पिब) उपासनारस को*74 पान कर—स्वीकार कर (रेवतः-मदः-गोदाः-इत्) तुझ रेवान्—ऐश्वर्यवान् परमात्मा के लिए*75 समर्पित उपासनारस मुझ उपासक के लिए ज्ञानप्रद और हर्षकारी हो—है॥२॥
टिप्पणी
[*74. द्वितीयार्थे षष्ठी।] [*75. “चतुर्थ्यर्थे बहुलं छन्दसि” [अष्टा॰ २.३.६२]।]
विशेष
<br>
विषय
यज्ञ-सोमपान-दान
पदार्थ
मन्त्र के ऋषि 'मधुच्छन्दा'=मधुर इच्छाओंवाले ‘वैश्वामित्र:'=सबके मित्र से प्रभु कहते हैं १. (नः) = हमारे (सवना) = यज्ञों को–‘प्रातः, माध्यन्दिन तथा सायन्तन सवनों' को (उपागहि) = तू समीपता से प्राप्त होनेवाला हो । तेरा जीवन वेदोपदिष्ट यज्ञों को करनेवाला हो । २. हे (सोमपा:) = सोम का पान करनेवाले–शक्ति को शरीर में ही सुरक्षित करनेवाले! तू (सोमस्य पिब) = सोम का पान कर। वीर्य को शरीर में ही व्याप्त करने का प्रयत्न कर । ३. (रेवतः) = धनवाले तेरा (मदः) = हर्ष (इत्) = निश्चय से (गोदाः) = गौओं का देनेवाला हो, धनी बनकर तू प्रसन्नतापूर्वक गौओं का दान करनेवाला बन।
भावार्थ
प्रभु हमसे तीन बातें चाहते हैं – १. हम यज्ञमय जीवन बिताएँ, २. सोमपान करें और ३. धनी बनकर दान दें । वस्तुतः यह तीन ही मौलिक उत्तम इच्छाएँ हैं।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मनो नृपतेराचार्यस्य योगिनः शिल्पकारस्य च विषयमाह।
पदार्थः
हे इन्द्र परमात्मन् राजन् आचार्य योगिन् शिल्पकार वा ! त्वम् (नः) अस्माकम् (सवना) उपासनायज्ञान्, प्रजाभिः कृतानुत्सवान्, शिक्षासत्राणि, योगशिविराणि शिल्पयज्ञान् वा (आ गहि) आगच्छ, (सोमपाः) रसस्य पाता त्वम् (सोमस्य) भक्तिरसस्य वीररसस्य, विद्यारसस्य, ध्यानरसस्य, कलारसस्य वा (पिब) पानं कुरु। (रेवतः) रयिमतः ऐश्वर्यवतः तव (मदः) उत्साहः (इत्) सत्यमेव (गोदाः) गवाम् अध्यात्मप्रकाशानाम्, धेनूनाम्, वेदवाचाम् योगशास्त्रवाचाम्, शिल्पशास्त्रवाचां वा दाता अस्ति ॥२॥२
भावार्थः
परमात्मानमुपास्य नृपतिमाचार्यं योगिनं शिल्पकारं च सत्कृत्य तत्सकाशाद् यथायोग्यं लाभाः सर्वैः प्राप्तव्याः ॥२॥
टिप्पणीः
१. ऋ० १।४।२, अथ० २०।५७।२, ६८।२। २. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिणा मन्त्रोऽयं सूर्यपक्षे व्याख्यातः।
इंग्लिश (2)
Meaning
Come thou near us, O Acharya, the guardian of disciples, for spreading knowledge in the world. Make others as learned as thou art. The bestower of the vision of knowledge alone, pleases the soul, the seeker after desired objects!
Translator Comment
Acharya means the guru or preceptor. Bestower of the vision of knowledge means the preceptor. The verse may apply to God as well.
Meaning
Indra, lord of light, protector of yajnic joy, promoter of sense and mind, come to our yajna, accept our homage of soma and give us the light and ecstasy of the soul. (Rg. 1-4-2)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (सोमपाः) હે સોમ-ઉપાસનારસનું પાન કરનાર-સ્વીકાર કરનાર ઇન્દ્ર-ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મન્ ! તું (नः) અમારા (सवना उप आगहि) ઉપાસના અવસરોમાં ઉપગત થા-પ્રાપ્ત થા. (सोमस्य पिब) ઉપાસનારસનું પાન કરી-સ્વીકારી (रेवतः मदः गोदाः इत्) તુજ રેવાન્ ઐશ્વર્યવાન પરમાત્માને માટે સમર્પિત ઉપાસનારસ મને ઉપાસકને માટે જ્ઞાનપ્રદ અને આનંદયદાયક બને-બને છે. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वराची उपासना करून व राजा, आचार्य, योगी व शिल्पकार यांचा सत्कार करून सर्वांनी त्यांच्याकडून यथायोग्य लाभ घेतला पाहिजे. ॥२॥
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