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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1094
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
त्वं꣢꣫ विप्र꣣स्त्वं꣢ क꣣वि꣢꣫र्मधु꣣ प्र꣢ जा꣣त꣡मन्ध꣢꣯सः । म꣡दे꣢षु सर्व꣣धा꣡ अ꣢सि ॥१०९४॥
स्वर सहित पद पाठत्व꣢म् । वि꣡प्रः꣢꣯ । वि । प्रः꣣ । त्व꣢म् । क꣣विः꣢ । म꣡धु꣢꣯ । प्र । जा꣣त꣢म् । अ꣡न्ध꣢꣯सः । म꣡दे꣢꣯षु । स꣣र्वधाः꣢ । स꣣र्व । धाः꣢ । अ꣣सि ॥१०९४॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं विप्रस्त्वं कविर्मधु प्र जातमन्धसः । मदेषु सर्वधा असि ॥१०९४॥
स्वर रहित पद पाठ
त्वम् । विप्रः । वि । प्रः । त्वम् । कविः । मधु । प्र । जातम् । अन्धसः । मदेषु । सर्वधाः । सर्व । धाः । असि ॥१०९४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1094
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 17; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 6; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
आगे फिर गुरु-शिष्य का विषय वर्णित है।
पदार्थ
हे सोम अर्थात् ज्ञानरस के भण्डार आचार्य ! (त्वं विप्रः) आप ब्राह्मण-स्वभाववाले हो, (त्वं कविः) आप मेधावी और विद्वान् हो। आपके (अन्धसः) ज्ञानरस से (मधु प्रजातम्) मधुर ब्रह्मानन्द प्राप्त होता है। आप (मदेषु) प्रदत्त विद्यानन्दों में (सर्वधाः) सब शिष्यों के धारणकर्ता (असि) होते हो ॥२॥
भावार्थ
ज्ञान के अगाध समुद्र, ब्राह्मणवृत्ति, मेधावी, विद्वान् आचार्य से जो भौतिक और दिव्य ज्ञान तथा उस ज्ञान से उत्पन्न आनन्द प्राप्त होता है, उसके कारण वह सबका पूज्य होता है ॥२॥
पदार्थ
(त्वं विप्रः) हे सोम-शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू विशेष रूप से तृप्त करने वाला (त्वं कविः) तू क्रान्तदर्शी—सर्वज्ञ (अन्धसः) तुझ अध्यानीय उपासनीय का (मधु प्रजातम्) मधुर रस प्रसिद्ध है (मदेषु सर्वधा-असि) हर्ष आनन्द देने वालों में—का सर्वधारक आधार तू है॥२॥
विशेष
<br>
विषय
विप्र-कवि-मधु
पदार्थ
१. (सोम) = वीर्य के संरक्षण से हमारे जीवन की सब कमियाँ दूर हो जाती हैं, मन्त्र में कहा है कि हे सोम! (त्वम्) = तू (विप्रः) = [वि+प्र] विशेषरूप से हमारा पूरण करनेवाला है। सब रोगकृमियों के संहार से रोगबीजों को तू शरीर से दूर कर देता है - हमारा शरीर पूर्ण स्वस्थ हो जाता है। २. सोम ही सुरक्षित होकर ज्ञानाग्नि का ईंधन बनता है और हमें सूक्ष्मदृष्टि बनाता है । हे सोम ! (त्वम्) = तू (कविः) = क्रान्तदर्शी है हमें सूक्ष्मदृष्टि [Piercing sight] बनानेवाला है । ३. सोम से सबल बनकर हम ईर्ष्या-द्वेष से भी ऊपर उठ जाते हैं, इसीलिए (अन्धसः) = इस आध्यायनीय [अत्यन्त ध्यान से रक्षित करने योग्य] सोम से हमारा जीवन (मधु) = मीठा-ही-मीठा (प्रजातम्) = हो गया है। (‘भूयासं मधु सन्दृशः') = हमारी यह प्रार्थना सोम-संरक्षण से ही कार्यान्वित हो पायी है । ४. हे सोम ! तू हमारे जीवनों में मद को जन्म देता है, परन्तु उस हर्षोल्लास में हम धारणात्मक कार्य ही करते हैं, तोड़फोड़ में नहीं लग जाते ! हे सोम! तू (मदेषु) = हर्षोल्लास में (सर्वधाः असि) = सबका धारण करनेवाला है। सोम का मद हमें बेहोश न करके अधिक चैतन्य प्राप्त करानेवाला है और अपने स्वरूप की ठीक स्मृति के कारण हम धारणात्मक कार्यों में ही प्रवृत्त होते हैं— तोड़-फोड़ में नहीं लगे रहते।
भावार्थ
सोम-संरक्षण से १. न्यूनताएँ दूर होती हैं, २. बुद्धि सूक्ष्म बनती है, ३. मन मधुर हो जाता है, ४. और हम सदा प्रसन्नचित्त होकर धारणात्मक कार्यों में लगे रहते हैं ।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ पुनर्गुरुशिष्यविषयमाह।
पदार्थः
हे सोम ज्ञानरसागार आचार्य ! (त्वं विप्रः) त्वं ब्राह्मणस्वभावः असि, (त्वं कविः) त्वं मेधावी विद्वांश्च असि। तव (अन्धसः) ज्ञानरसात् (मधु प्रजातम्) मधुरः ब्रह्मानन्दः प्रजायते। त्वम् (मदेषु) प्रदत्तेषु विद्यानन्देषु (सर्वधाः) सर्वेषां शिष्याणां धारकः (असि) भवसि ॥२॥
भावार्थः
ज्ञानस्यागाधसमुद्रात् ब्राह्मणवृत्तेर्मेधाविनो विदुष आचार्यात् यद् भौतिकं दिव्यं च ज्ञानं तत्कृत आनन्दश्च प्राप्यते तत्कारणात् स सर्वेषां पूज्यो भवति ॥२॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।१८।२।
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, Thou art Wise and Developer of intellect. Grant us semen born of food. Thou keepest all absorbed in joys !
Meaning
You are the vibrant sage of sages, the visionary poet of poets, and the honey sweet of all tastes born of all food. You are the sole sustainer of all in bliss divine. (Rg. 9-18-2)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (त्वं विप्रः) હે સોમ - શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તું વિશેષ રૂપથી તૃપ્ત કરનાર, (त्वं कविः) ક્રાન્તદર્શી-સર્વજ્ઞ, (अन्धसः) તારો અધ્યાનીય ઉપાસનીયનો (मधु प्रजातम) મધુ૨૨સ પ્રસિદ્ધ છે. (मदेषु सर्वधा असि) હર્ષ-આનંદ આપનારમાં-આપનારનો સર્વધારક આધાર છે. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
ज्ञानाचा अगाध समुद्र, ब्राह्मणवृत्ती, मेधावी विद्वान आचार्याकडून जे भौतिक व दिव्य ज्ञान आणित्या ज्ञानाने आनंद उत्पन्न होतो, त्यामुळे तो सर्वत्र सर्वांचा पूज्य असतो. ॥२॥
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