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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1139
    ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    2

    आ꣢ र꣣यि꣡मा सु꣢꣯चे꣣तु꣢न꣣मा꣡ सु꣢क्रतो त꣣नू꣢ष्वा । पा꣢न्त꣣मा꣡ पु꣢रु꣣स्पृ꣡ह꣢म् ॥११३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । र꣣यि꣢म् । आ । सु꣣चेतु꣡न꣢म् । सु꣣ । चेतु꣡न꣢म् । आ । सु꣣क्रतो । सु । क्रतो । तनू꣡षु꣢ । आ । पा꣡न्त꣢꣯म् । आ । पु꣣रुस्पृ꣡ह꣢म् । पु꣣रु । स्पृ꣡ह꣢꣯म् ॥११३९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ रयिमा सुचेतुनमा सुक्रतो तनूष्वा । पान्तमा पुरुस्पृहम् ॥११३९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ । रयिम् । आ । सुचेतुनम् । सु । चेतुनम् । आ । सुक्रतो । सु । क्रतो । तनूषु । आ । पान्तम् । आ । पुरुस्पृहम् । पुरु । स्पृहम् ॥११३९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1139
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 12
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 12
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    आगे फिर परमात्मा और आचार्य का विषय वर्णित है।

    पदार्थ

    हे (सुक्रतो) शुभ ज्ञानवाले वा शुभकर्मोंवाले परमात्मन् और आचार्य ! आप (आ) हमारे पास आओ। हम आपसे (रयिम्) धन (आ) पाना चाहते हैं, (सुचेतुनम्) उत्कृष्ट ज्ञान (आ) पाना चाहते हैं। (तनूषु) शरीरों के हित के लिए, हम आपको (आ) पाना चाहते हैं। (पान्तम्) रक्षा करनेवाले तथा (पुरुस्पृहम्) बहुत स्पृहणीय आपको (आ) पाना चाहते हैं ॥१२॥

    भावार्थ

    परमात्मा और आचार्य का सेवन करके सबको धन, ज्ञान, जागरूकता, स्वास्थ्य आदि की सम्पत्ति प्राप्त करनी चाहिए ॥१२॥ इस खण्ड में विद्वान् आचार्य, परमात्मा और ब्रह्मानन्द का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति जाननी चाहिए ॥ अष्टम अध्याय में द्वितीय खण्ड समाप्त ॥

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    पदार्थ

    (सुक्रतो) हे उत्तम प्रज्ञान कर्म वाले सोम—शान्तस्वरूप परमात्मन्! (रयिम्-आ) तुझ धनरूप को अपनाते हैं (सुचेतुनम्-आ) तुझ सम्यक् चेताने वाले को अपनाते हैं (तनूषु-आ) अपने अङ्गों—अङ्ग में अपनाते हैं (पान्तं पुरुस्पृहम्-आ) तुझ रक्षक बहुत स्पृहणीय को अपनाते हैं॥१२॥

    विशेष

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    विषय

    रक्षा व उच्च अभिलाषा

    पदार्थ

    १. हे (सुक्रतो) = शोभनज्ञान प्रभो ! हम आपके उस सोम का (आवृणीमहे) = वरण करते हैं जो (रयिम्) = वस्तुतः शरीर का धन है । इसके होने से ही शरीर है, इसके अभाव में शरीर भी नहीं है । २. (सुचेतुनम्) = जो हमारे ज्ञान को उत्तम करनेवाला है, बुद्धि को सूक्ष्म बनाता है, (पान्तम्-ह) = हमारी रक्षा करता है, हमारे मनों पर आसुर वृत्तियों का उसी प्रकार आक्रमण नहीं होने देता जैसे शरीर पर रोगों का । ४. (पुरुस्पृहम्) = यह सोम सचमुच महान् स्पृहा को जन्म देकर हमें महान् बनाता है। हे प्रभो! हम इस सोम को (तनूषु) = अपने शरीरों में (आवृणीमहे) = वरते हैं । 'तनू’ का अर्थ सन्तति लें तो अर्थ यह होगा कि इसे हम अपनी सन्तानों के लिए भी वरते हैं ।

    भावार्थ

    सोम ही वास्तविक शरीर-धन है ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि परमात्मन आचार्यस्य च विषयो वर्ण्यते।

    पदार्थः

    हे (सुक्रतो) सुप्रज्ञ सुकर्मन् परमात्मन् आचार्य वा ! त्वम् (आ) आयाहि। वयम् त्वत् (रयिम्) धनम् (आ) आवृणीमहे। (सुचेतुनम्) सुज्ञानम्। [चिती संज्ञाने, भावे औणादिक उनन्प्रत्ययः।] (आ) आवृणीमहे, (तनूषु) शरीरेषु, शरीराणां हितायेत्यर्थः त्वाम् (आ) आवृणीमहे। (पान्तम्) रक्षकम् (पुरुस्पृहम्) बहुस्पृहणीयं च त्वाम् (आ) आवृणीमहे ॥१२॥

    भावार्थः

    परमात्मानमाचार्यं च संसेव्य सर्वैर्धनज्ञानजागरूकतास्वास्थ्यादिसम्पत्तिः प्रापणीया ॥१२॥ अस्मिन् खण्डे विदुष आचार्यस्य परमात्मनो ब्रह्मानन्दस्य च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिरस्तीति वेद्यम् ॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।६५।३०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, the Embodiment of knowledge and action, the Goader of all, we accept Thee for ourselves, as Wealth, fair Intelligence, our Guardian and Worthy of love by all!

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    Meaning

    O lord of holy action, we pray bring us the worlds wealth of enlightenment, protective, promotive and valued universally, for our body, mind and soul and vest it in our future generations. (Rg. 9-65-30)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (सुक्रतो) હે ઉત્તમ પ્રજ્ઞાન કર્મવાળા સોમ-શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! (रयिम् आ) તને ધનરૂપને અપનાવીએ છીએ. (सुचेतुनम् आ) તને-સમ્યક્ ચેતવનારને અપનાવીએ છીએ. (तनूषु आ) અમારા અંગોઅંગોમાં અપનાવીએ છીએ. (पान्तं पुरुस्पृहम् आ) તને રક્ષકને, અત્યંત સ્પૃહણીયને અપનાવીએ છીએ. (૧૨)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा व आचार्याचे सेवन करून सर्वांना धन, ज्ञान, जागरूकता, स्वास्थ्य इत्यादी संपत्ती प्राप्त केली पाहिजे. ॥१२॥ या खंडात विद्वान आचार्य, परमात्मा व ब्रह्मानंदाचे वर्णन असल्यामुळे या खंडाची पूर्व खंडाबरोबर संगती जाणली पाहिजे

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