Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1187
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
2
सो꣡मः꣢ पुना꣣नो꣡ अ꣢र्षति स꣣ह꣡स्र꣢धारो꣣ अ꣡त्य꣢विः । वा꣣यो꣡रिन्द्र꣢꣯स्य निष्कृ꣣त꣢म् ॥११८७॥
स्वर सहित पद पाठसो꣡मः꣢꣯ । पु꣣नानः꣢ । अ꣣र्षति । स꣣ह꣡स्र꣢धारः । स꣣ह꣡स्र꣢ । धा꣣रः । अ꣡त्य꣢꣯विः । अ꣡ति꣢꣯ । अ꣣विः । वायोः꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯स्य । नि꣣ष्कृत꣢म् । निः꣣ । कृत꣢म् ॥११८७॥
स्वर रहित मन्त्र
सोमः पुनानो अर्षति सहस्रधारो अत्यविः । वायोरिन्द्रस्य निष्कृतम् ॥११८७॥
स्वर रहित पद पाठ
सोमः । पुनानः । अर्षति । सहस्रधारः । सहस्र । धारः । अत्यविः । अति । अविः । वायोः । इन्द्रस्य । निष्कृतम् । निः । कृतम् ॥११८७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1187
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 1
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
प्रथम मन्त्र में परमात्मा का वर्णन किया गया है।
पदार्थ
(पुनानः) पवित्र करता हुआ, (सहस्रधारः) अनन्त आनन्द-धाराओंवाला, (सोमः) रस का भण्डार परमेश्वर (अत्यविः) पृथिवी को अर्थात् पार्थिवतत्त्वप्रधान अन्नमयकोश को अतिक्रान्त करके (वायोः) प्राण के या गतिशील मन के और (इन्द्रस्य) बुद्धि वा जीवात्मा के (निष्कृतम्) घर में, अर्थात् प्राणमयकोश, मनोमयकोश, विज्ञानमयकोश एवं आनन्दमयकोश में (अर्षति) पहुँचता है ॥१॥
भावार्थ
उपासक जब स्थूल शरीर से मन को हटाकर प्राण, मन बुद्धि और जीवात्मा में परमात्मा को प्रतिष्ठापित कर लेता है, तब उसके आनन्दरस की धार में मग्न हुआ वह परमानन्द का अनुभव करता है ॥१॥
पदार्थ
(सोमः सहस्रधारः पुनानः) शान्तस्वरूप परमात्मा बहुत आनन्दधाराओं वाला अध्येष्यमाण—स्तुति प्रार्थना में लाया हुआ१ (इन्द्रस्य) उपासक आत्मा के (निष्कृतं वायोः) संस्कृत२ ‘वायुम्’ मन को३ (अत्यविः) पार्थिव देह४ को लाङ्घता हुआ (अर्षति) प्राप्त होता है॥१॥
विशेष
ऋषिः—असितो देवलो वा (रागबन्धन से रहित या परमात्मा को अपने अन्दर लाने वाला उपासक)॥ देवता—सोमः (शान्तस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री।<br>
विषय
प्रभु को कौन प्राप्त करता है ?
पदार्थ
(वायोः) = सारे संसार को गति देनेवाले (इन्द्रस्य) = सम्पूर्ण ऐश्वर्य के स्वामी प्रभु के (निष्कृतम्) = परिष्कृत स्थान को (अर्षति) = प्राप्त होता है । कौन ? १. (सोमः) = सोमपान करनेवाला, अतएव शक्ति का पुञ्ज तथा सौम्य स्वभाववाला पुरुष । जो शक्ति को अपने अन्दर सुरक्षित नहीं करते वे शक्तिशाली तो क्या बनेंगे, उनका स्वभाव भी सौम्य नहीं होता। २. (पुनानः) = जो सोमरक्षा के द्वारा अपने जीवन को पवित्र बनाता है, ३. (सहस्त्रधारः) = [धारा = वाङ् ] = शतशः स्तुति-वाणियोंवाला होता है और सबसे बड़ी बात यह है कि ४. (अत्यविः) = [अव्-कान्ति= इच्छा] = इच्छों को जो लांघ गया होता है, अर्थात् जो निष्काम बनता है ।
भावार्थ
हम सौम्य, पवित्र, स्तोता व निष्काम बनकर प्रभु के धाम को प्राप्त करें।
संस्कृत (1)
विषयः
तत्रादौ परमात्मानं वर्णयति।
पदार्थः
(पुनानः) पवित्रीकुर्वन् (सहस्रधारः) अनन्तधारः (सोमः) रसनिधिः परमेश्वरः (अत्यविः) अविं भूमिम् पार्थिवतत्त्वप्रधानम् अन्नमयकोशमिति यावत् अतिक्रान्तः सन्। [अविम् अतिक्रान्तः इति अत्यविः। ‘प्रादयो गताद्यर्थे द्वितीयया’। अ० २।२।१८ वा० इत्यनेन तत्पुरुषसमासः।] (वायोः) प्राणस्य गतिशीलस्य मनसो वा (इन्द्रस्य) बुद्धेर्जीवात्मनश्च (निष्कृतम्) गृहम्, प्राणलोकं मनोलोकं विज्ञानलोकं जीवात्मलोकं चेत्यर्थः (अर्षति) गच्छति ॥१॥
भावार्थः
उपासको यदा स्थूलाद् देहान्मनो निवर्त्य प्राणे मनसि बुद्धौ जीवात्मनि च परमात्मानं प्रतिष्ठापयति तदा तद्रसधारामग्नः सन् स परमानन्दमनुभवति ॥१॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।१३।१।
इंग्लिश (2)
Meaning
The purifying soul, endowed with manifold merits, attains to the supreme dignity, having crossed the covering of breath.
Translator Comment
Having crossed-breath' means after controlling the breath.
Meaning
Soma, beauty, joy, power and divinity of life, pure, and purifying, vibrates everywhere and flows free in a thousand streams, inspiring, energising and protecting, it is released and sanctified by Vayu, cosmic energy and empowered by Indra, divine omnipotence, distilled by vibrant sages, received by creative humanity and spread abroad by ruling powers. (Rg. 9-13-1)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (सोमः सहस्रधारः पुनानः) શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા બહુજ આનંદધારાઓવાળા અધ્યેષ્યમાણસ્તુતિ પ્રાર્થનામાં લાવેલા (इन्द्रस्य) ઉપાસક આત્માને (निष्कृतं वायोः) સંસ્કૃત વાયુમ્ =મનને (अत्यविः) પાર્થિવ દેહને પાર કરીને (अर्षति) પ્રાપ્ત થાય છે. (૧)
मराठी (1)
भावार्थ
उपासक जेव्हा स्थूल शरीरापासून मनाला हटवून प्राण, मन, बुद्धी व जीवात्मा यांच्यात परमात्म्याला प्रतिष्ठित करतो, तेव्हा त्याच्या आनंदरसाच्या धारात तल्लीन होऊन परमानंदाचा अनुभव घेतो. ॥१॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal