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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1239
    ऋषिः - अम्बरीषो वार्षागिर ऋजिश्वा भारद्वाजश्च देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
    2

    व꣣यं꣡ ते꣢ अ꣣स्य꣡ राध꣢꣯सो꣣ व꣡सो꣢र्वसो पुरु꣣स्पृ꣡हः꣢ । नि꣡ नेदि꣢꣯ष्ठतमा इ꣣षः꣡ स्याम꣢꣯ सु꣣म्ने꣡ ते꣢ अध्रिगो ॥१२३९॥

    स्वर सहित पद पाठ

    व꣣य꣢म् । ते꣣ । अस्य꣢ । रा꣡ध꣢꣯सः । व꣡सोः꣢꣯ । व꣣सो । पुरुस्पृ꣡हः꣢ । पु꣣रु । स्पृ꣡हः꣢꣯ । नि । ने꣡दि꣢꣯ष्ठतमाः । इ꣣षः꣢ । स्या꣡म꣢꣯ । सु꣣म्ने꣢ । ते꣣ । अध्रिगो ॥१२३९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वयं ते अस्य राधसो वसोर्वसो पुरुस्पृहः । नि नेदिष्ठतमा इषः स्याम सुम्ने ते अध्रिगो ॥१२३९॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वयम् । ते । अस्य । राधसः । वसोः । वसो । पुरुस्पृहः । पुरु । स्पृहः । नि । नेदिष्ठतमाः । इषः । स्याम । सुम्ने । ते । अध्रिगो ॥१२३९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1239
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 9; खण्ड » 8; सूक्त » 2; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अगले मन्त्र में फिर वही विषय है।

    पदार्थ

    हे (वसो) निवास देनेवाले परमात्मन्, राजन् वा आचार्य ! (वयम्) हम प्रार्थी लोग (ते) आपके (अस्य) इस (वसोः) निवासक, (पुरुस्पृहः) अतिशय चाहने योग्य, (इषः) अभीष्ट (राधसः) आध्यात्मिक ऐश्वर्य, सुवर्ण आदि ऐश्वर्य वा विद्याधन के (नि) अत्यधिक (नेदिष्ठतमाः) निकटतम (स्याम) होवें और, हे (अध्रिगो) बेरोक गतिवाले परमात्मन्, राजन् वा आचार्य ! हम (ते) आपके अर्थात् आपसे दिये हुए (सुम्ने) सुख में (स्याम) होवें ॥२॥

    भावार्थ

    परमात्मा से आध्यात्मिक धन, राजा से भौतिक धन और आचार्य से विद्या-धन पाकर सब लोगों को सुखी होना योग्य है ॥२॥

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    पदार्थ

    (अध्रिगो वसो) हे अधृतगमन४ निर्बाध व्याप्त गति वाले वासाधार परमात्मन्! (अस्य ते वसो पुरुस्पृहः-राधसः) इस तुझ बसाने वाले बहुत कामना करने योग्य सिद्धिप्रद के (सुम्ने) सुख शान्ति के निमित्त५ (वयम्-इषः-नेदिष्ठतमाः-निस्याम) हम प्रार्थी निरन्तर अत्यन्त निकट रहें॥२॥

    विशेष

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    विषय

    वसु-प्रेरण व स्तवन

    पदार्थ

    हे (वसो) = सबको निवास देनेवाले व सबमें बसनेवाले प्रभो ! १. (वयम्) = [वेञ् तन्तुसन्ताने] कर्मतन्तु का विस्तार करनेवाले हम लोग (ते) = आपके (अस्य) = इस (राधसः) = सब कर्मों को सिद्ध करनेवाले (वसोः) = धन की (पुरुस्पृहः) = प्रबल कामना करनेवाले हों । हम क्रिया के द्वारा [वयं] धन को प्राप्त करना चाहें, उस धन को जो कार्यसिद्धि के लिए आवश्यक है [राधस्] और जो धन हमारे उत्तम निवास का कारण है [वसु] । २. हे प्रभो ! हम (ते इषः) = आपकी प्रेरणा के (नेदिष्ठतमाः) = अत्यन्त समीप (निस्याम) = नम्रतापूर्वक हों । नम्रता को हृदय में धारण करते हुए हम आपकी प्रेरणा के समीप ही रहें, उससे दूर न हों । ३. हे (अध्रिगो) = अधृतगमन प्रभो ! जिन आपकी गति व कार्य में कोई भी रुकावट नहीं बन सकता (ते) = उन आपके (सुम्ने) = स्तवन, रक्षण तथा आनन्द में हम (स्याम) = निवास करें । हम प्रभु का स्तवन करनेवाले हों, प्रभु का रक्षण हमें प्राप्त हो और परिणामतः हमारा जीवन आनन्दमय हो ।

    यदि ‘सुम्ने' के स्थान में पाठ 'सम्ने' हो तो अर्थ इस प्रकार होगा कि हम आपकी शरण में 'अवैक्लव्य' में स्थित हो । हमारा जीवन शान्तिमय हो ।

    भावार्थ

    हमें प्रभु का यह धन, जो निवास के लिए आवश्यक है, प्राप्त हो । हम प्रभु की प्रेरणा सुनें तथा प्रभु का स्तवन करते हुए प्रभु के रक्षण को प्राप्त करें | हमारा जीवन शान्त हो ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनस्तमेव विषयमाह।

    पदार्थः

    हे (वसो) वासयितः परमात्मन् नृपते आचार्य वा ! (वयम्) प्रार्थिनः (ते) तव (अस्य) एतस्य (वसोः) निवासकस्य, (पुरुस्पृहः) अतिशयस्पृहणीयस्य, (इषः) अभीष्टस्य (राधसः) आध्यात्मिकस्य ऐश्वर्यस्य, सुवर्णादिधनस्य, विद्याधनस्य वा (नि) नितराम् (नेदिष्ठतमाः) निकटतमाः (स्याम) भवेम। अपि च, हे (अध्रिगो) अधृतगमन परमात्मन् नृपते आचार्य वा ! [अध्रिगो अधृतगमन। निरु० ५।११।] वयम् (ते) तव, त्वया प्रदत्ते (सुम्ने) सुखे (स्याम) भवेम ॥२॥

    भावार्थः

    परमात्मनः सकाशादाध्यात्मिकं धनम्, नृपतेः सकाशाद् भौतिकं धनम्, आचार्यसकाशाच्च विद्याधनं प्राप्य सर्वे सुखिनो भवितुमर्हन्ति ॥२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।९८।५, ‘व॒यं ते॑ अ॒स्य वृ॑त्रहन् वसो॒ वस्वः॑ पुरु॒स्पृहः॑। नि नेदि॑ष्ठतमा इ॒षः स्याम॑ सु॒म्नस्या॑ध्रिगो’ ॥ इति पाठः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Constant, Almighty Father, the Bestower of residence to all, may we Thy devotees live for long, nearest unto Thee in the bliss of salvation. May we also live nearest unto the worldly wealth and foodstuffs, desired by many men, and the source of existence!

    Translator Comment

    Both worldly prosperity and the happiness of salvation should be the aim of our life. We should not ignore any of these two ideals. Those who neglect this world in their search after God, cannot attain true happiness, and fall short of the Vedic ideal. The vedas preach the temporal prosperity along with the spiritual.

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    Meaning

    O spirit of instant mantra movement, lord of worlds wealth and shelter home of life, destroyer of evil, darkness and ignorance, let us be closest to you and the all desired worlds wealth, let us be closest to your treasure of food, energy, and knowledge and to your divine peace and comfort. (Rg. 9-98-5)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (आध्रिगो वसो) હે અમૃત ગમન નિર્બાધ વ્યાપ્ત ગતિવાળા વાસાધાર પરમાત્મન્ ! (अस्य ते वसो पुरुस्पृहः राधसः) એ તું વસાવનાર બહુજ કામના કરવા યોગ્ય સિદ્ધિપ્રદના (सुम्ने) સુખ શાંતિને માટે (वयम् इषः नेदिष्ठतमाः निस्याम) અમે પ્રાર્થી નિરંતર અત્યંત નિકટ રહીએ. (૨)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्म्याकडून आध्यात्मिक धन, राजाकडून भौतिक धन व आचार्याकडून विद्या-धन प्राप्त करून सर्व लोकांनी सुखी होणे योग्य आहे. ॥२॥

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