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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1256
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः स देवरातः कृत्रिमो वैश्वामित्रः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
3
ए꣣ष꣢ दे꣣वो꣡ अम꣢꣯र्त्यः पर्ण꣣वी꣡रि꣢व दीयते । अ꣣भि꣡ द्रोणा꣢꣯न्या꣣स꣡द꣢म् ॥१२५६॥
स्वर सहित पद पाठए꣣षः꣢ । दे꣣वः꣢ । अ꣡म꣢꣯र्त्यः । अ । म꣣र्त्यः । पर्णवीः꣢ । प꣣र्ण । वीः꣢ । इ꣣व । दीयते । अभि꣢ । द्रो꣡णा꣢꣯नी । आ꣣स꣡द꣢म् । आ꣣ । स꣡द꣢꣯म् ॥१२५६॥
स्वर रहित मन्त्र
एष देवो अमर्त्यः पर्णवीरिव दीयते । अभि द्रोणान्यासदम् ॥१२५६॥
स्वर रहित पद पाठ
एषः । देवः । अमर्त्यः । अ । मर्त्यः । पर्णवीः । पर्ण । वीः । इव । दीयते । अभि । द्रोणानी । आसदम् । आ । सदम् ॥१२५६॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1256
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
प्रथम मन्त्र में जीवात्मा की गति वर्णित है।
पदार्थ
(एषः) यह (अमर्त्यः) अमर, (देवः) कर्मफलों को भोगनेवाला जीवात्मा रूप सोम, कर्मों के अनुसार (द्रोणानि) देहरूप द्रोण कलशों में (अभि आसदम्) बैठने के लिए (पर्णवीः इव) पक्षी के समान (दीयते) उड़कर जाता है ॥१॥ यहाँ उपमालङ्कार है ॥१॥
भावार्थ
पक्षी जैसे उड़ता हुआ एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष पर जाता है, वैसे ही यह जीवात्मा पहले शरीर को छोड़कर कर्मफल भोगने के लिए माता के गर्भ में दूसरे शरीर को प्राप्त करता है ॥१॥
पदार्थ
(एषः-अमर्त्यः-देवः) यह अमर शान्तस्वरूप परमात्मदेव (पर्णवीः-इव) पक्षों से गति करने वाले पक्षी की भाँति (द्रोणानि-अभि-आसदं दीयते) द्रवण स्थानों—उपासक पात्रों के प्रति२ प्राप्त होने को गति करता है३ प्राप्त होता है॥१॥
विशेष
ऋषिः—आजीगर्तः शुनः शेपः (इन्द्रियभोगों की दौड़ में शरीरगर्त में गिरा उत्थान का इच्छुक)॥ देवता—सोमः (शान्तस्वरूप परमात्मा)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>
पदार्थ
(एषः) = यह आत्मा (देव:) = नानाविध क्रीड़ा करनेवाला है [दिव्-क्रीडा] (अमर्त्यः) = कभी नष्ट न होनेवाला है। यह (पर्णवी:) = [पंखों से गति करनेवाले] पक्षी की (इव) = भाँति, (दीयते) = गति करता है [soar, fly], उड़ता है । एक शरीर को छोड़ता है और (द्रोणानि) = विविध शरीर-कलशों में (अभ्यासदम्) = यह बैठता है। जैसे पक्षी एक वृक्ष अथवा डाल से उड़कर दूसरे वृक्ष पर या दूसरी डाल पर बैठता है, उसी प्रकार यह आत्मा एक शरीर से उड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करता है । अमर्त्य है, परन्तु यह निरन्तर शरीर-परिवर्तन ही इसकी मृत्यु हो जाता है । यह अभि=चारों ओर लोक-लोकान्तरों में विविध शरीरों को [द्रोणानि] प्राप्त होता रहता है । 'द्रु-गतौ' से बना हुआ द्रोण शब्द इस शरीर का वाचक होता है, क्योंकि यही इन सब क्रियाओं का आधार है । जैसे एक बच्चा अज्ञानवश व्यर्थ के खेलों में लगा रहता है, उसी प्रकार यह आत्मा भी अपनी अल्पज्ञता से इन शरीरों में क्रीड़ा करता रहता है [देव] । इन्हीं में सुख माननेवाला यह जीव 'शुन: शेप' है, नानाविध भौतिक सुखों का निर्माण कर रहा है । यह 'आजीगर्ति' है । इन सुखों में आसक्त होकर गर्त-गड्ढे की ओर गति कर रहा होता है [अज्]।
भावार्थ
जीव अल्पज्ञतावश भौतिक सुखों में फँसता है और उसे कर्मानुसार फल भोगने के लिए शरीर में आना पड़ता है।
संस्कृत (1)
विषयः
तत्रादौ जीवात्मगतिर्वर्ण्यते।
पदार्थः
(एषः) अयम् (अमर्त्यः) अमरः (देवः) कर्मफलभोक्ता जीवात्मरूपः सोमः [दिवु धातुः खादनार्थेऽपि पठितः।] कर्मानुसारम् (द्रोणानि) देहरूपान् द्रोणकलशान् (अभि आसदम्) अभ्यासत्तुम् (पर्णवीः इव) पक्षी इव। [पर्णाभ्यां पतत्त्राभ्यां वेति उड्डीयते इति पर्णवीः पक्षी।] (दीयते) उड्डीय गच्छति। [दीयते गतिकर्मा। निघं० २।१४] ॥१॥ अत्रोपमालङ्कारः ॥१॥
भावार्थः
पक्षी यथोड्डयमानो वृक्षाद् वृक्षान्तरं गच्छति तथैव जीवात्मा पूर्वं देहमुत्सृज्य कर्मफलानि भोक्तुं मातुर्गर्भे द्वितीयं शरीरं गच्छति ॥१॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।३।१, ‘दीयति’ इति पाठः।
इंग्लिश (2)
Meaning
This brilliant, immortal soul, flies fast like a bird to the bodies to reside in them.
Meaning
This Soma, spirit of divinity, eternal and immortal, expands to regions of the universe like soaring energy and pervades there as an imminent presence. (Rg. 9-3-1)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (एषः अमर्त्यः देवः) એ અમર શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મદેવ (पर्णवीः इव) પાંખોથી ગતિ કરનારા પક્ષીઓની સમાન (द्रोणानि अभि आसदं दीयते) દ્રવ્યસ્થાનો-ઉપાસક પાત્રો પ્રત્યે પ્રાપ્ત થવા માટે ગતિ કરે છે, પ્રાપ્ત થાય છે. (૧)
मराठी (1)
भावार्थ
पक्षी जसा (पंखांद्वारे) उडत उडत एका वृक्षावरून दुसऱ्या वृक्षावर जातो, तसेच जीवात्मपूर्वीचे शरीर सोडून कर्मफल भोगण्यासाठी मातेच्या गर्भात येऊन दुसरे शरीर प्राप्त करतो. ॥१॥
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