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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1263
    ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः स देवरातः कृत्रिमो वैश्वामित्रः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    3

    ए꣣ष꣢꣫ दिवं꣣ व्या꣡स꣢रत्ति꣣रो꣢꣫ रजा꣣ꣳस्य꣡स्तृ꣢तः । प꣡व꣢मानः स्वध्व꣣रः꣢ ॥१२६३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए꣣षः꣢ । दि꣡व꣢꣯म् । व्या꣡स꣢꣯रत् । वि꣣ । आ꣡स꣢꣯रत् । ति꣣रः꣢ । र꣡जा꣢꣯ꣳसि । अ꣡स्तृ꣢꣯तः । अ । स्तृ꣣तः । प꣡व꣢꣯मानः । स्व꣣ध्वरः꣢ । सु꣣ । अध्वरः꣢ ॥१२६३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष दिवं व्यासरत्तिरो रजाꣳस्यस्तृतः । पवमानः स्वध्वरः ॥१२६३॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । दिवम् । व्यासरत् । वि । आसरत् । तिरः । रजाꣳसि । अस्तृतः । अ । स्तृतः । पवमानः । स्वध्वरः । सु । अध्वरः ॥१२६३॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1263
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 8
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    आगे फिर जीवात्मा का विषय है।

    पदार्थ

    (एषः) यह (स्वध्वरः) शुभ उपासना-रूप यज्ञ का कर्ता, (अस्तृतः) विघ्नों से अहिंसित (पवमानः) पुरुषार्थी जीवात्मा (रजांसि) रजोगुणों और तमोगुणों को (तिरः) तिरस्कृत करके (दिवम्) तेजस्वी परमात्मा को (व्यासरत्) वेग से प्राप्त कर लेता है ॥८॥

    भावार्थ

    मनुष्य को विघ्न तभी मार्ग से डिगाते हैं, जब वह रजोगुण, तमोगुण से दबा रहता है ॥८॥

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    पदार्थ

    (एषः-पवमानः) यह पवित्रकर्ता सोम परमात्मा (अस्तृतः) अहिंसित अप्रतिबद्ध—बिना रुकावटवाला (रजांसि तिरः) भोगलोकों का तिरस्कार कर स्वयं भोगलोकों से परे हो (स्वध्वरः) उत्तम अध्यात्मयज्ञ आश्रय (दिवं व्यासरत्) मोक्षधाम में विशेष प्राप्त है॥८॥

    विशेष

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    विषय

    प्रभु सत्य में अवस्थित को प्राप्त होते हैं

    पदार्थ

    (एषः) = यह प्रभु (दिवम्) = सत्त्वगुण में अवस्थित प्रकाशमय जीवनवाले को (व्यासरत्) = विशेषरूप से प्राप्त होते हैं। सर्वव्यापकता के नाते प्रभु सर्वत्र हैं ही, परन्तु उनका प्रकाश सात्त्विक हृदय में होता है। प्रभु अपने प्रकाश से सात्त्विक पुरुष के हृदय में विद्यमान (रजांसि) = [रजः = रात्रि – नि० १.७.१२] रात्रि के समान अन्धकारों को (तिर:) = दूर कर देते हैं, परिणामतः यह भक्त १. (अ-स्तृतः) = अहिंसित होता है। यह वासनाओं से आक्रान्त नहीं होता । २. (पवमानः) = यह अपने जीवन को पवित्र करनेवाला होता है, ३. और (स्वध्वरः) = उत्तम अध्वरमय जीवन को प्राप्त करता है – इसका जीवन हिंसाशून्य कर्मों से परिपूर्ण रहता है ।

    भावार्थ

    हम सात्त्विक बनें, जिससे हमें प्रभु का प्रकाश प्राप्त हो और हमारा जीवन वासनाओं से अनाक्रान्त, पवित्र व हिंसाशून्य कर्मों से परिपूर्ण हो ।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि जीवात्मविषय उच्यते।

    पदार्थः

    (एषः) अयम् (स्वध्वरः) सूपासनायज्ञः, (अस्तृतः) विघ्नैरहिंसितः (पवमानः) पुरुषार्थी जीवात्मा (रजांसि) रजस्तमोगुणान्। [अत्र एकशेषः।] (तिरः) तिरस्कृत्य (दिवम्) द्युतिमन्तं परमात्मानम् (व्यासरत्) वेगेन प्राप्नोति ॥८॥

    भावार्थः

    मनुष्यं विघ्नास्तदैव मार्गात् प्रच्यावयन्ति यदा स रजस्तमोभ्यामभिभूतो भवति ॥८॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।३।८ ‘रजां॒स्यस्पृ॑तः’ इति पाठः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    This pure soul, unharassed by desires, performing virtuous deeds, casting aside the impediments arising out of passion, attains to salvation.

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    Meaning

    This spirit radiates to the heavens across the atomic oceans of skies and spaces, unhurt and unopposed, pure, purifying, performing the cosmic yajna of love, non-violence and creation of new life in evolution.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (एषः पवमानः) એ પવિત્રકર્તા સોમ પરમાત્મા (अस्तृतः) અહિંસિત અપ્રતિબદ્ધ અવરોધ રહિત (रजांसि तिरः) ભોગલોકોનો તિરસ્કાર કરીને સ્વયં ભોગલોકોથી પર છે. (स्वध्वरः) ઉત્તમ અધ્યાત્મયજ્ઞ આશ્રય (दिवं व्यासरत्) મોક્ષધામમાં વિશેષ પ્રાપ્ત છે. (૮)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जेव्हा रजोगुण, तमोगुण माणसाला दाबून टाकतात, तेव्हाच ती विघ्ने त्याला चांगल्या मार्गातून मागे खेचतात. ॥८॥

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