Loading...

सामवेद के मन्त्र

  • सामवेद का मुख्य पृष्ठ
  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1265
    ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः स देवरातः कृत्रिमो वैश्वामित्रः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    3

    ए꣣ष꣢ उ꣣ स्य꣡ पु꣢रुव्र꣣तो꣡ ज꣢ज्ञा꣣नो꣢ ज꣣न꣢य꣣न्नि꣡षः꣢ । धा꣡र꣢या पवते सु꣣तः꣢ ॥१२६५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए꣣षः꣢ । उ꣣ । स्यः꣢ । पु꣣रुव्रतः꣢ । पु꣣रु । व्रतः꣢ । ज꣣ज्ञानः꣢ । ज꣣न꣡य꣢न् । इ꣡षः꣢꣯ । धा꣡र꣢꣯या । प꣣वते । सुतः꣢ ॥१२६५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष उ स्य पुरुव्रतो जज्ञानो जनयन्निषः । धारया पवते सुतः ॥१२६५॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । उ । स्यः । पुरुव्रतः । पुरु । व्रतः । जज्ञानः । जनयन् । इषः । धारया । पवते । सुतः ॥१२६५॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1265
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 10
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 10
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    आगे फिर उसी विषय का वर्णन है।

    पदार्थ

    (एषः उ) यह (स्यः) वह (पुरुव्रतः) ब्रह्मचर्याश्रम में बहुत व्रत पालन करनेवाला, (जज्ञानः) आचार्य से नवीन जन्म ग्रहण करता हुआ छात्र (सुतः) उत्पन्न होकर अर्थात् स्नातक बनकर (इषः) प्राप्त विद्याएँ (जनयन्) दूसरों को पढ़ाता हुआ (धारया) वाणी से (पवते) उन्हें पवित्र करे ॥१०॥

    भावार्थ

    आचार्य के मुख से सब विद्याएँ पढ़कर छात्र पवित्र आचरणवाला द्विज होकर स्नातक बना हुआ दूसरों को भी सब विद्याएँ पढ़ाता हुआ उन्हें पवित्र आचरणवाला करे ॥१०॥ इस खण्ड में परमात्मा, जीवात्मा तथा आचार्य से प्राप्त होनेवाले द्वितीय जन्म के विषय का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति जाननी चाहिए ॥ दशम अध्याय में प्रथम खण्ड समाप्त ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    पदार्थ

    (एषः-स्यः-उ) यह वही (पुरुव्रतः) बहुत कर्म आनन्द कर्म शक्तिवाला (जज्ञानः) उपासक के अन्दर प्रत्यक्ष हुआ (इषः-जनयन्) इच्छाओं को या इष्ट कमनीय वस्तुओं को प्रसिद्ध करता हुआ (धारया-सुतः-पवते) स्तुति धाराप्रवाह से साक्षात् कर्ताओं६ को प्राप्त होता है॥१०॥

    विशेष

    <br>

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    प्रेरणाओं को उत्पन्न करता हुआ

    पदार्थ

    (एषः स्यः) = यह वह परमात्मा (उ) = निश्चय से [प्रभु को 'एष: स्य: ' कहा है कि वह समीप-सेसमीप है और दूर-से-दूर] १. पुरुव्रतः = पालक और पूरक व्रतोंवाला है। यह प्राणिमात्र का पालन कर रहा है । २. (जज्ञान:) = यह सदा लोक-लोकान्तरों का निर्माण करनेवाला है। ३. (जनयन् इषः) = यह प्रेरणाओं को उत्पन्न कर रहा है – जीव को हृदयस्थरूप से सदा कर्त्तव्य की प्रेरणा दे रहा है । ४. यदि एक भक्त उस प्रभु को हृदय में देखने का प्रयत्न करता है तो (सुतः) = आविर्भूत हुआ-हुआ वह प्रभु (धारया) = वेदवाणी द्वारा हमारे जीवनों को (पवते) = पवित्र करता है ।

    भावार्थ

    हम प्रभु को हृदय में प्रकट करने का प्रयत्न करें, हमें अवश्य उत्तम प्रेरणा प्राप्त होगी ।
     

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनस्तमेव विषयं वर्णयति।

    पदार्थः

    (एषः उ) अयं खलु (स्यः) सः (पुरुव्रतः) ब्रह्मचर्याश्रमे बहुव्रतपालकः (जज्ञानः) आचार्याद् नवं जन्म गृह्णानः छात्रः (सुतः) उत्पन्नः सन् (इषः) प्राप्ता विद्याः (जनयन्) अन्येषाम् अध्यापयन् (धारया) वाचा। [धारा इति वाङ्नाम। निघं० १।११।] (पवते) तान् पुनातु ॥१०॥

    भावार्थः

    आचार्यमुखात् सर्वा विद्या अधीत्य छात्रः पवित्राचरणो द्विजो भूत्वा स्नातकः सन्नन्यानपि सकला विद्या अध्यापयन् पवित्राचरणान् विदध्यात् ॥१०॥ अस्मिन् खण्डे परमात्मनो जीवात्मन आचार्यात् प्राप्तव्यस्य द्वितीयजन्मनश्च विषयस्य वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिर्वेद्या ॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।३।१०।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The same soul, the performer of manifold noble acts, after entering the body, being the author of various acts, equipped with knowledge, treads on the right path through its steadiness.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    This spirit of divinity, power of infinite law and action, creating and providing food, energy and sustenance for life, flows on in continuum, self- sustained, self-revealed, discovered, self-realised. (Rg. 9-3-10)

    इस भाष्य को एडिट करें

    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (एषः स्य उ) એ તે જ (पुरुव्रतः) અનેક કર્મ-આનંદકર્મ શક્તિવાળી (जज्ञानः) ઉપાસકની અંદર પ્રત્યક્ષ થઈને (इषः जनयन्) ઇચ્છાઓને અથવા ઇચ્છિત મનોહર વસ્તુઓને પ્રસિદ્ધ કરીને (धारया सुतः पवते) સ્તુતિ ધારાપ્રવાહ સાક્ષાત્ કર્તાઓને પ્રાપ્ત થાય છે. (૧૦)
     

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    आचार्याकडून सर्व विद्या शिकून शिष्य पवित्र आचरणयुक्त बनतात, स्नातक होतात. इतरांनाही त्यांनी सर्व विद्या शिकवून त्यांना पवित्र आचरणयुक्त करावे. ॥१०॥ या खंडात परमात्मा, जीवात्मा व आचार्याकडून प्राप्त होणाऱ्या द्वितीय जन्माच्या विषयाचे वर्णन असल्यामुळे या खंडाची पूर्व खंडाबरोबर संगती जाणावी

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top