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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1417
    ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    2

    स꣡ वाजं꣢꣯ वि꣣श्व꣡च꣢र्षणि꣣र꣡र्व꣢द्भिरस्तु꣣ त꣡रु꣢ता । वि꣡प्रे꣢भिरस्तु꣣ स꣡नि꣢ता ॥१४१७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । वा꣡ज꣢꣯म् । वि꣣श्व꣡च꣢र्षणिः । वि꣢श्व꣢ । च꣣र्षणिः । अ꣡र्व꣢꣯द्भिः । अ꣡स्तु । त꣡रु꣢꣯ता । वि꣡प्रे꣢꣯भिः । वि । प्रे꣢भिः । अस्तु । स꣡नि꣢꣯ता ॥१४१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स वाजं विश्वचर्षणिरर्वद्भिरस्तु तरुता । विप्रेभिरस्तु सनिता ॥१४१७॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सः । वाजम् । विश्वचर्षणिः । विश्व । चर्षणिः । अर्वद्भिः । अस्तु । तरुता । विप्रेभिः । वि । प्रेभिः । अस्तु । सनिता ॥१४१७॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1417
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 14; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 12; खण्ड » 5; सूक्त » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं।

    पदार्थ

    (विश्वचर्षणिः) सब मनुष्यों पर अनुग्रह करनेवाला (सः) वह अग्रणी जगदीश्वर (अर्वद्भिः) आक्रमणकारी क्षत्रिय योद्धाओं द्वारा (वाजम्) संग्राम को (तरुता) पार करानेवाला (अस्तु) होवे और (विप्रेभिः) मेधावी ब्राह्मणों द्वारा (सनिता) ज्ञान आदि को देनेवाला (अस्तु) होवे ॥३॥

    भावार्थ

    निराकार परमेश्वर ब्राह्मणों के माध्यम से ज्ञान का दान, क्षत्रियों के माध्यम से रक्षा, वैश्यों के माध्यम से पोषक पदार्थों का दान करता हुआ मनुष्यों का उपकार करता है ॥३॥

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    पदार्थ

    (सः) वह अग्रणायक परमात्मा (विश्वचर्षणिः) सर्वद्रष्टा८ (अर्वद्भिः-‘अर्ववन्तः’ तरुता-अस्तु) प्रेरणा वाले९ स्तुति वाले उपासकों को संसारसागर से तराने वाला हो। (विप्रेभिः-वाजं सनिता-अस्तु) ब्राह्मणों—ब्रह्म जानने वालों को अमृत अन्नभोग का सम्भाजन देने वाला हो॥३॥

    विशेष

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    विषय

    संग्राम-विजय

    पदार्थ

    (सः) = वह (विश्वचर्षणिः) = [चर्षणि=Seeing, observing] संसार को सूक्ष्मता से देखनेवाला प्रभुभक्त (अर्वद्भिः) = इन्द्रियरूप अश्वों के साथ निरन्तर चलनेवाले (वाजम्) = संग्राम को (तरुता अस्तु) = सफलता से पार करनेवाला हो । जीव का एक अध्यात्मसंग्राम निरन्तर चल रहा है । इन्द्रियाँ ग्रह हैं और विषय अतिग्रह । मनुष्य ने इन्हें जीतना है । ये अत्यन्त प्रबल हैं। मन को हर लेती हैं और मनुष्य हार जाता है, परन्तु यह प्रभुभक्त 'विश्वचर्षणि' है – विश्व को बारीकी से देखता हुआ उनमें फँसता नहीं, और इस प्रकार इन्द्रियों के साथ चल रहे संग्राम को जीत लेता है । इस संग्राम को जीतने के उद्देश्य से ही यह (विप्रेभिः) = अपना पूरण करनेवाले, न्यूनताओं को दूर करनेवाले विद्वान् ब्राह्मणों के साथ (सनिता) = [Worship, honour] आपका सम्भजन करनेवाला अस्तु होता है । प्रभुभक्ति ने ही तो संग्राम में विजय प्राप्त करानी है ।

    इस विजय को प्राप्त करके ही व्यक्ति बहिर्मुख न होकर अन्तर्मुख होता है—'आजीगर्ति' बनाता है और इस प्रकार सुख का निर्माण करनेवाला 'शुनः शेप' होता है ।

    भावार्थ

    विषयों के स्वरूप को गहराई तक देखकर हम उनके प्रति आसक्ति से बचें।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमेश्वरं प्रार्थयते।

    पदार्थः

    (विश्वचर्षणिः) विश्वे सर्वे चर्षणयः मनुष्याः अनुग्राह्या यस्य तथाविधः। [चर्षणयः इति मनुष्यनाम। निघं० २।३। ‘बहुव्रीहौ विश्वं संज्ञायाम्।’ अ० ६।२।१०६ इति पूर्वपदान्तोदात्तत्वम्] (सः) असौ अग्निः अग्रणीः जगदीश्वरः (अर्वद्भिः) आक्रामकैः क्षत्रियैः योद्धृभिः। [ऋ गतौ। ऋच्छति आक्रामतीति अर्वा। ‘स्नामदिपद्यर्तिपॄशकिभ्यो वनिप्।’ उ० ४।११४ इति वनिप् प्रत्ययः।] (वाजम्) संग्रामम् (तरुता) तारयिता, पारं गमयिता। [ग्रसितस्कभित०। अ० ७।२।३४ इथि तरतेस्तृनि उडागमो निपात्यते।] (अस्तु) भवतु। अपि च, (विप्रेभिः) मेधाविभिर्ब्राह्मणैः (सनिता) ज्ञानादिकस्य प्रदाता (अस्तु) भवतु ॥३॥२

    भावार्थः

    निराकारः परमेश्वरो विप्राणां माध्यमेन ज्ञानदानं, क्षत्रियाणां माध्यमेन रक्षां, वैश्यानां माध्यमेन पोषकद्रव्यप्रदानं कुर्वन् जनानुपकरोति ॥३॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May God, the Seer of mankind, make us victorious in the struggle of life through the forces of action. May He grant us extreme glory through expanded mental functions.

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    Meaning

    May he, protector of humanity, be the winner of battle for progress with the horses that run fast and reach the goal. With the scholars and sages, may he be the generous benefactor and saviour of the people. (Rg. 1-27-9)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (सः) તે અગ્રણી પરમાત્મા (विश्वचर्षणिः) સર્વદ્રષ્ટા (अर्वद्भिः अर्ववन्तः तरुता अस्तु) પ્રેરણાવાળા સ્તુતિવાળા ઉપાસકોને સંસાર સાગરથી તારનાર છે. (विप्रेभिः वाजं सनिता अस्तु) બ્રાહ્મણોબ્રહ્મને જાણનારાઓને અમૃત અન્ન ભોગનું સંભાજન દેનાર છે. (૩)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    निराकार परमेश्वर ब्राह्मणांच्या माध्यमातून ज्ञानाचे दान, क्षत्रियांच्या माध्यमातून रक्षण, वैश्यांच्या माध्यमाने पोषक पदार्थांचे दान करून माणसांवर उपकार करतो. ॥३॥

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